
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के शोरगुल से दूर कांग्रेस इन दिनों चुपचाप एक अलग चुनाव की तैयारी कर रही है. ये ऐसा चुनाव है जिसके बाद कांग्रेस को अपना पूर्णकालिक अध्यक्ष मिलने वाला है. कांग्रेस अपने अध्यक्ष पद के लिए इलेक्टोरल कॉलेज तैयार कर रही है ताकि इस साल सितंबर में प्रस्तावित पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव हो सके. सवाल यह है कि क्या इस चुनाव से 87वें AICC अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी की वापसी होगी या फिर कोई 'दूसरा' कांग्रेस की कमान संभालेगा?
कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए कई विश्वसनीय नामों के इर्द-गिर्द चर्चा हो रही है. इनमें कुछ 'पुराने चावल' हैं तो कुछ युवा नेता भी. इनमें से छत्तीसगढ़ के CM भूपेश बघेल, सचिन पायलट, कमलनाथ, पी चिदंबरम और शशि थरूर जैसे नाम हैं. अपेक्षाकृत युवा नेताओं की बात आती है तो बघेल और पायलट दोनों बैकवर्ड क्लास से आते हैं, इनमें पार्टी के लिए समर्थन लाने की क्षमता है और ये गांधी परिवार के प्रति निष्ठावान माने जाते हैं.
'पुराने चावल' या युवा नेता
जबकि कमलनाथ और पी चिदंबरम का एक साबित ट्रैक रिकॉर्ड है और उन्हें 'पुराने चावल' के रूप में देखा जाता है. असंतुष्टों की कैटेगरी में आने वाले थरूर गुटबाजी को तोड़ने और पार्टी में नए मतदाताओं को आकर्षित करने वाले माने जाते हैं. हाल ही में, तिरुवनंतपुरम के लोकसभा सदस्य थरूर ने कथित तौर पर असंतुष्टों के एक समूह के साथ अपने जुड़ाव को 'निरर्थक' बताया है. राजनीतिक हलकों में इस ग्रुप को 'जी 23' के रूप में जाना जाता है.
हाल ही में कांग्रेस को बगैर गांधी सरनेम वाले अध्यक्ष मिलने से जुड़ी चर्चाएं बढ़ी हैं. हाल ही में एक इंटरव्यू में प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा था कि अगर गांधी परिवार से इतर कोई कांग्रेस की बागडोर संभालता है तो उन्हें खुशी होगी. प्रियंका ने इस इंटरव्यू में कहा था, "मुझे नहीं लगता कि हमारी ओर से, मेरी मां या मेरे भाई, या मैं, हमारे पास इस बारे में कोई विचार है... या कांग्रेस पार्टी के नेता होने का कोई अधिकार नहीं है...हमें नहीं पता है, मुझे पता है कि मेरा भाई नहीं चाहता है, मुझे पता है मेरी माँ नहीं चाहती है, हमें केवल तभी बहुत खुशी होगी जब कोई और रैंक से उठे और सभी को उन पर विश्वास हो और वो नेतृत्व करें." हालांकि अपनी बातों को कहते हुए कांग्रेस की महासचिव ने एक caveat यह भी लगा दिया कि कई सामान्य कांग्रेस कार्यकर्ताओं को गांधी तिकड़ी यानी कि सोनिया-राहुल और प्रियंका में यकीन है.
कांग्रेस उस समस्या का सामना कर रही है जिसे कई लोग 'अस्तित्व के संकट' का भी नाम दे रहे हैं. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनावों के नतीजे पार्टी की आंतरिक राजनीति पर महत्वपूर्ण असर डालेंगे.
अधिकांश पोल सर्वेक्षणों ने '0-5' की संभावनाएं दी हैं, जिसका अर्थ है कि पार्टी के पंजाब में सत्ता वापसी की संभावना कम है, और उत्तराखंड को भाजपा से नहीं छीन सकती है. हालांकि कांग्रेस तो छह जनमत सर्वेक्षणों के निष्कर्षों को खारिज कर रही है. लेकिन निजी तौर पर पार्टी दिल्ली के बाहर यानी पंजाब और गोवा में आम आदमी पार्टी के उदय की संभावना से इनकार करती है. कांग्रेस को डर है कि इसी तरह का ट्रेंड गुजरात और हिमाचल में भी देखने को मिल सकता है. जहां इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं.
हालांकि कांग्रेस में सभी निराशावादी या हताश नहीं है. पार्टी के वर्ग को प्रियंका गांधी के नेतृत्व में बड़ा यकीन है. ये लोग उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का नेतृत्व करने के लिए प्रियंका के 'साहसी' उदाहरण को देख रहे हैं, जहां पार्टी की संभावनाएं 'शून्य' के रूप में दिखाई देती है.
मायावती के निशाने पर प्रियंका क्यों?
प्रियंका की स्कीम में यूपी में कांग्रेस का पहला लक्ष्य अपने वोट शेयर को बढ़ाना और 'तीसरी ताकत' के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना है. 2017 में, कांग्रेस को करीब 6 फीसदी वोट मिले थे, जबकि बसपा को 20 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे. लेकिन यह याद रखने की जरूरत है कि 2017 में कांग्रेस ने केवल 105 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जबकि इस बार पार्टी के लगभग 400 सीटों पर चुनाव लड़ने की संभावना है. यदि कांग्रेस का वोट शेयर 10 प्रतिशत तक बढ़ जाता है, या कांग्रेस बसपा को पीछे छोड़ देती है (यह समाजवादी पार्टी के लिए बुरी खबर हो सकती है), तो यह उत्तर प्रदेश में पार्टी की कुछ उपस्थिति को चिह्नित करेगी. शायद यही वजह है कि बीएसपी सुप्रीमो मायावती प्रियंका गांधी को खारिज कर रही है, जबकि पारंपरिक दृष्टिकोण से देखें तो मायावती के प्रतिद्वंदी योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव होने चाहिए.
लोगों के मुद्दों को उठाने की प्रियंका की क्षमता, लखीमपुर खीरी पर उनका आक्रामक रुख, महिलाओं को 40 प्रतिशत टिकट देना, एक ऐसे एजेंडे का संकेत देता है जिसकी सियासी फसल बाद में काटी जा सकती है.
अक्टूबर 1984 में अपनी मृत्यु से तीन दिन पहले, इंदिरा गांधी श्रीनगर में थीं. नेहरू गेस्ट हाउस में, भारत की प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा ने अपने भरोसेमंद सहयोगी एम एफ फोतेदार से कहा, "फोतेदार जी, हो सकता है मैं लंबे समय तक नहीं जी पाऊं, लेकिन जैसे-जैसे वह बढ़ती है, आपको प्रियंका का ध्यान रखना चाहिए.
प्रियंका चमकेगी अगली सदी उसकी होगी
अपनी जीवनी The Chinar Leaves– A Political Memoir में फोतेदार पेज नंबर 191 में लिखते हैं, "मैंने कहा क्या आपको लगता है कि मैं इतने देर तक जीवित रहूंगा? 'हां' इंदिरा ने उत्तर दिया." फिर इंदिरा के जवाब को फोतेदार ने आश्वासन और निश्चितता से भरी आवाज के रूप में अपनी किताब में वर्णित किया, उन्होंने इंदिरा के जवाब को लिखा, "लोग मुझे उसमें देखेंगे और जब वे उसे (प्रियंका) देखेंगे तो मुझे याद करेंगे. वह चमकेगी और अगली सदी उसकी होगी, तब लोग मुझे भूल जाएंगे. इंदिरा ने ये टिप्पणी तब की थी जब प्रियंका मुश्किल से 12 साल की थीं.
सितंबर 2017 में फोतेदार का निधन हो गया लेकिन कांग्रेस में कई ऐसे नेता हैं जो इंदिरा गांधी की भविष्यवाणी के सच होने का इंतजार कर रहे हैं.
(पत्रकार रशीद किदवई ‘24 अकबर रोड’ और ‘सोनिया ए बायोग्राफी’ के लेखक हैं.)