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राहुल गांधी का जलीकट्टू प्रेम! क्या इससे तमिलनाडु को लुभाया जा सकेगा?

राहुल के दौरे का मकसद एक तीर से कई निशाने साधना नजर आता है. उन्होंने मदुरै जिले के अवनियापुरम को पोंगल पर ‘जलीकट्टू’ का आयोजन देखने के लिए चुना. जलीकट्टू राज्य का पारंपरिक खेल है जिसमें सांडों पर इंसानों की ओर से काबू पाया जाता है.

मदुरै में पोंगल समारोह में शामिल होते राहुल गांधी मदुरै में पोंगल समारोह में शामिल होते राहुल गांधी
टी एस सुधीर
  • नई दिल्ली,
  • 14 जनवरी 2021,
  • अपडेटेड 4:25 PM IST
  • तमिलनाडु में इस साल होने वाला है विधानसभा चुनाव
  • वोटर को लुभाने में जुटे कांग्रेस और बीजेपी के नेता

पोंगल 2021 से तमिलनाडु में सियासी तीर्थ सीजन की आधिकारिक शुरुआत होगी. इसमें हैरानी की बात नहीं, क्योंकि तमिलनाडु में इसी गर्मी में विधानसभा चुनाव होने हैं. 14 जनवरी को बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा चेन्नई पहुंच रहे हैं. वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी तमिलनाडु की सियासी राजधानी माने जाने वाले मदुरै में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई.  

राहुल के दौरे का मकसद एक तीर से कई निशाने साधना नजर आता है. उन्होंने मदुरै जिले के अवनियापुरम को पोंगल पर ‘जलीकट्टू’ का आयोजन देखने के लिए चुना. जलीकट्टू राज्य का पारंपरिक खेल है जिसमें सांडों पर इंसानों की ओर से काबू पाया जाता है. राहुल का ये दौरा तमिलनाडु की सांस्कृतिक चेतना से जुड़ने की कोशिश के तहत है. 

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जलीकट्टू तमिलनाडु के लिए लंबे अर्से से भावनात्मक मुद्दा रहा है. इसी खेल के हक में चेन्नई के मरीना बीच की रेत पर 2017 में बड़ी संख्या में लोगों ने प्रदर्शन किया था. राहुल की ये कवायद खुद को ऐसे नेता के तौर पर पोजीशन करने की है, जिसे पोंगल के महत्व की अच्छी तरह समझ है. खास तौर पर तमिलनाडु के दक्षिणी हिस्से में.       

लेकिन क्या तमिलनाडु राहुल और कांग्रेस पार्टी के जलीकट्टू प्रेम पर अपने समर्थन की मुहर लगाएगा? 

सवाल का जवाब मुश्किल है. क्योंकि ये कांग्रेस नेता जयराम रमेश ही थे, जिन्होंने यूपीए कार्यकाल में पर्यावरण मंत्री के नाते जलीकट्टू पर बैन सुनिश्चित किया था. उन्होंने तब साफ किया था कि सांडों का शर्त लगाने या परफॉर्म करने वाले पशुओं के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. रमेश ने ऑन रिकॉर्ड जलीकट्टू को बर्बर खेल बताया था.  

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कांग्रेस के इसी ‘दोहरेपन’ का हवाला देकर बीजेपी निशाना साध रही है. साथ ही बीजेपी जलीकट्टू को 2017 में वापस लाने के लिए अपनी पीठ भी ठोक रही है.  

हालांकि ऐसा करते हुए बीजेपी ये भूल गई कि उसकी अपनी गांधी- पशु अधिकार एक्टिविस्ट और पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी- भी जलीकट्टू की सख्त आलोचक रही हैं. अगर सांडों से जुड़े इस पारंपरिक खेल को वापस शुरू कराने के लिए श्रेय ले सकता है तो वो हैं राज्य के लोग जो बड़ी संख्या में प्रदर्शन के लिए बाहर आए और इसके लिए काफी दबाव बनाया. साथ ही जलीकट्टू पर बैन को उन्होंने तमिल संस्कृति पर हमला बताया था.   

लेकिन राहुल के दौरे को सिर्फ जलीकट्टू मुद्दे से जोड़ना गलत होगा. पोंगल तमिलनाडु में फसलों की कटाई का त्योहार है और राहुल इस मौके को इस तरह भी इस्तेमाल करना चाहते हैं कि वो किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हुए दिखें. ऐसी स्थिति में जब केंद्र सरकार और पंजाब-हरियाणा के किसानों के बीच कृषि से जुड़े नए कानूनों को लेकर ठनी हुई है. किसान प्रदर्शन से पीछे हटने का कोई संकेत नहीं दे रहे हैं. राहुल गांधी मदुरै के कार्यक्रम का इस्तेमाल भारतीय किसान के प्रति अपनी पार्टी के प्रेम को जताने के लिए करना चाहते हैं.  

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ये भी तथ्य है कि तमिलनाडु के किसानों के एक वर्ग ने 2017 में किसानों का कर्ज माफ करने की मांग को लेकर कई हफ्तों तक प्रदर्शन किया था. साथ ही कावेरी प्रबंधन कमेटी और संशोधित सूखा राहत पैकेज की मांग की थी. लेकिन तब केंद्र सरकार ने उनकी कोई सुनवाई नहीं की थी और उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा था.  

जलीकट्टू युवा ग्रामीण खेल है और कांग्रेस पार्टी के मैनेजर्स राहुल की मौजूदगी को तमिलनाडु के युवा वोटरों से जुड़ने की कोशिश के तौर पर मार्केट करना चाहते हैं.  

यह नहीं भूलना चाहिए कि मदुरै में विश्व प्रसिद्ध मीनाक्षी मंदिर भी मौजूद है. जैसे कि गुजरात और कर्नाटक के पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल ने कई हिन्दू पूजा स्थलों का दौरा किया था, और खुद को शिवभक्त घोषित किया था. पोंगल को मंदिरों के दौरे के तमिलनाडु संस्करण की शुरुआत के तौर पर देखा जा सकता है.  

लेकिन क्या राहुल का तमिलनाडु दौरा सिर्फ बीजेपी को टारगेट कर राजनीतिक संदेश देने के लिए है?  इसका जवाब नहीं है. जमीन से आने वाली रिपोर्ट्स की मानें तो डीएमके के नेतृत्व वाला गठबंधन (जिसका कांग्रेस भी एक हिस्सा है) से आगामी विधानसभा चुनाव में बहुत अच्छा प्रदर्शन करने जा रहा है. 2019 लोकसभा चुनाव में भी इस गठबंधन ने स्वीप किया था और 39 में ले 38 सीट पर विजय हासिल की थी. ऐसे में विधानसभा चुनावों को लेकर भी ग्रैंड ओल्ड पार्टी की उम्मीदें ऊंची हैं. ऐसे में दौरे से ये संदेश देने की कोशिश है कि अगर मई 2021 विधानसभा चुनाव में पिछले लोकसभा चुनाव जैसा प्रदर्शन दोहराता है तो इसका सिर्फ डीएमके सुप्रीमो एमके स्टालिन को ही नहीं कांग्रेस नेता को भी जाए.

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यह बिहार के संदर्भ में भी अहम है. इस उत्तरी राज्य में कांग्रेस पर गठबंधन की कमजोर कड़ी होने के आरोप लगे. 2016 तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 41 सीटें दिए जाने को लेकर स्टालिन पर ज्यादा ही उदार होने के आरोप लगे थे. कांग्रेस को तब महज 8 सीट पर जीत मिली थी. इस बार, स्टालिन कड़ी सौदेबाजी पर उतर कर कांग्रेस को आवंटित की जाने वाली सीटों की संख्या सीमित रख सकते हैं.  

एक और कारण है कि क्यों मदुरै में राहुल गांधी की मौजूदगी मायने रखती है. इन गर्मियों में पांच राज्यों में चुनाव होने हैं. दक्षिण भारत में कांग्रेस का बहुत कुछ दांव पर है. तमिलनाडु के अलावा पुड्डुचेरी और केरल में भी चुनाव होने हैं. पुड्डूचेरी में सत्ता को अपने पास ही बरकरार रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी. वहीं केरल में पांच वर्ष बाद सत्ता में वापसी के लिए वोटरों को लुभाने के कड़े पापड़ बेलने होंगे. केरल के वायनाड से ही अब राहुल सांसद हैं. अगर कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ ने केरल में दिसंबर 2020 में हुए स्थानीय निकाय चुनाव में पिछड़ने जैसा ही प्रदर्शन दिखाया तो ये राहुल की छवि के लिए अच्छा नहीं रहेगा.

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