Advertisement

गांधी परिवार के दबदबे को चुनौती देने वाला था प्रशांत किशोर का रिवाइवल फॉर्मूला, कांग्रेस को नहीं आया रास

Prashant Kishor congress: चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने की अटकलों पर विराम लग गया है. प्रशांत किशोर ने कांग्रेस का दामन थामने से इनकार कर दिया है. हालांकि, कांग्रेस पीके के अनुभव और रणनीति का 2024 लोकसभा चुनाव के लिए लाभ लेना चाहती थी, लेकिन जिस तरह के अधिकार और बदलाव का फॉर्मूला उन्होंने रखा था, कांग्रेस का उस दिशा में कदम बढ़ाना मुश्किल हो रहा था, जिसकी वजह से पीके के बात बनते-बनते बिगड़ गई.

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 27 अप्रैल 2022,
  • अपडेटेड 8:40 AM IST
  • प्रशांत किशोर और कांग्रेस के बीच नहीं बन सकी बात
  • पीके के फॉर्मूले पर कांग्रेस में क्यों सहमति नहीं बन सकी
  • कांग्रेस में प्रशांत किशोर यूपी वाला हश्र नहीं चाहते थे

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की कांग्रेस में एंट्री की महीनों से चल रही अटकलों पर आखिरकार विराम लग गया है, पीके ने खुद ट्वीट कर कांग्रेस में शामिल होने के ऑफर को ठुकराने का ऐलान कर दिया है. पीके के तेवर और कांग्रेस की कार्यशैली को समझने वाले लोगों को इस घटनाक्रम से बिल्कुल भी हैरानी नहीं है.

दरअसल, पीके ने कांग्रेस में शामिल होने के लिए पार्टी को पुनर्जीवित करने का जो फॉर्मूला रखा था, उसे स्वीकारना कांग्रेस के लिए कतई मुश्किल था. इस पर मुहर दरअसल कांग्रेस और गांधी परिवार के भविष्य को लेकर बड़ा जोखिम उठाने जैसा था, जिसके लिए न तो गांधी परिवार तैयार था, न पार्टी के दूसरी पंक्ति के कद्दावर नेता. 

Advertisement

प्रशांत किशोर ने मंगलवार को ट्वीट कर बताया, ''मैंने एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप 2024 का हिस्सा बनने, पार्टी में शामिल होने और चुनावों की जिम्मेदारी लेने के कांग्रेस का प्रस्ताव ठुकरा दिया है. मेरी राय में पार्टी की अंदरूनी समस्याओं को ठीक करने के लिए, कांग्रेस को मुझसे ज्यादा लीडरशिप और मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत है.''

वहीं, कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने भी ट्वीट कर बताया कि कांग्रेस अध्यक्ष ने एक एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप 2024 का गठन किया और प्रशांत किशोर को जिम्मेदारी देते हुए ग्रुप में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने स्वीकार करने से मना कर दिया. हम पार्टी को दिए गए उनके प्रयासों और सुझावों की सराहना करते हैं. 

प्रशांत किशोर की बात से साफ जाहिर होता है कि कांग्रेस में अभी बहुत ही ज्यादा सुधार की आवश्यकता है. यहां तक कि वह खुद इसके लिए अपने आप को कम मान रहे हैं. उनका मानना है कि पार्टी में नेतृत्व के अलावा बहुत कमियां हैं जिन्हें ठीक करने की जरूरत है. वहीं, पीके को कांग्रेस लेने के लिए पूरी तरह तैयार थी. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी में 2024 लोकसभा चुनावों के लिए एक एम्पार्वड एक्शन ग्रुप बनाकर प्रशांत किशोर को उसका सदस्य बनाकर पार्टी में शामिल होने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन पीके ने जिस तरह से पार्टी में बदलाव करने के लिए प्रस्ताव दिए थे, उन पर कांग्रेस पूरी तैयार नहीं थी. इसी के चलते दोनों के बीच बातचीत बनते-बनते बिगड़ गई.

Advertisement

बीते साल भी प्रशांत किशोर की कांग्रेस नेतृत्व के साथ कई दौर की बातचीत हुई थी. लेकिन तब भी उनकी कांग्रेस में एंट्री का रास्ता नहीं बन सका था. एक बार फिर 2022 के पांच राज्यों के चुनाव में करारी हार के बाद प्रशांत किशोर खुद कांग्रेस के पास आए और उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सहित कई बड़े नेताओं को प्रजेंटेशन दिए. माना जा रहा था कि इस बार प्रशांत किशोर की कांग्रेस में एंट्री तय है और बात सही दिशा में आगे बढ़ रही थी लेकिन ऐसा नहीं हो सका. इसके पीछे प्रशांत किशोर जिस तरह की भूमिका कांग्रेस में चाहते थे और पार्टी में बदलाव का फॉर्मूला रखा था,  उस पर पार्टी में रजामंदी नहीं थी. 

प्रशांत किशोर को चाहिए था फ्री हैंड

कांग्रेस प्रशांत किशोर के फॉर्मूले, रणनीतिक कौशल और चुनाव प्रबंधन का पूरा लाभ तो लेना चाहती है लेकिन उन्हें अपनी कार्ययोजना लागू करने के लिए वह आजादी नहीं देना चाहती है जिसकी प्रशांत किशोर को दरकार थी. माना जा रहा है कि कांग्रेस चाहती है कि पीके पार्टी में शामिल होकर अन्य नेताओं की तरह सीमित भूमिका और सीमित अधिकारों के साथ काम करें. जबकि प्रशांत अपने काम में किसी तरह का कोई हस्तक्षेप या बदलाव स्वीकार करने के मामले में एक इंच भी पीछे हटने को तैयार नहीं है. कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने इस बात से साफ इनकार कर दिया था कि प्रशांत किशोर अगर पार्टी में शामिल होते हैं तो उन्हें कोई विशेष ट्रीटमेंट दिया जाएगा. 

Advertisement

कांग्रेस ने सोमवार को 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी नेताओं की छह कमेटी गठित की थी. 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की क्या नीति रहेगी, इसके फैसला एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप ही करेगा. 10 जनपथ में हुई बैठक में कांग्रेस ने भविष्य को लेकर बड़ा फैसला लिया गया, जिसके तहत कांग्रेस ने 6 नई कमेटियां बनाई गईं. सभी 6 कमेटियों के अलग-अलग संयोजक के तौर पर मल्लिकार्जुन खड़गे, सलमान खुर्शीद, पी चिदंबरम, मुकुल वासनिक, भूपिंदर सिंह हुड्डा और अमरिंदर सिंह वाडिंग को जिम्मेदारी सौंपी गई गई. 

दरअसल, कांग्रेस का अपना काम करने का तरीका है, जिस पर चलते हुए पार्टी अपनी राजनीतिक दशा और दिशा तय करती है. वहीं, प्रशांत किशोर ने 2024 के चुनाव में कांग्रेस की वापसी के लिए जिस तरह का प्रस्ताव और पार्टी में बदलाव के सुझाव दिए थे, उन पर कांग्रेस के लिए अमल करना आसान नहीं था. कांग्रेस की अपनी एक विचारधारा है जबकि प्रशांत किशोर की कोई पॉलिटिकल कमिटमेंट आईडियोलॉजी नहीं है. किसी भी पार्टी के लिए  इतनी जल्दी अपनी विचारधारा बदलना किसी के लिए भी आसान नहीं है. इसीलिए प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल किए जाने पर पार्टी नेता एकमत नहीं थे तो दूसरी तरफ उनके प्रस्ताव पर आंख बंद करके चलना भी आसान नहीं था. 

Advertisement

गांधी परिवार से बाहर चाहते थे कांग्रेस का नेतृत्व

कांग्रेस की सियासत गांधी परिवार के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. प्रशांत किशोर के प्लान के मुताबिक कांग्रेस की कमान गांधी परिवार से बाहर के किसी सदस्य को सौंपने की थी. कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व इस पर राजी नहीं था, क्योंकि 2019 के बाद से इसीलिए कांग्रेस का अध्यक्ष का चुनाव अभी तक नहीं हो सका. राहुल गांधी ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था, जिसके बाद से सोनिया गांधी पार्टी की आंतरिम अध्यक्ष हैं. यूपीए अध्यक्ष के पद पर भी प्रशांत किशोर ने किसी सहयोगी दल का नेता देने का प्रस्ताव दिया था, जिस पर भी कांग्रेस राजी नहीं थी. कांग्रेस नेता हमेशा से विपक्षी गठबंधन की बात करते हैं, लेकिन नेतृत्व देने के लिए सहमत नहीं होते हैं. 

कांग्रेस में गांधी परिवार की साख को बचाए रखने का भी सवाल है. पीके के शामिल होने के बाद पार्टी में जो भी फैसला लिए जाते उसका श्रेय गांधी परिवार के बजाय प्रशांत किशोर को जाता. ऐसे में गांधी परिवार की साख को भी गहरा झटका लगता, क्योंकि कांग्रेस में हाईकमान का कल्चर है. यहां पर गांधी परिवार के प्रति वफादारी ही कांग्रेस की असल वफादारी मानी जाती है. प्रशांत किशोर के पार्टी में शामिल होने से सबसे ज्यादा असर गांधी परिवार के ऊपर पड़ने की संभावना थी, जिसके चलते पीके को पार्टी में सुझाव देने तक के ही अधिकार देने के पक्ष में दिख रही थी. बिना गांधी परिवार के कांग्रेस का अस्तित्व फिलहाल नहीं.

Advertisement

प्रशांत किशोर ने अपने प्लान में कांग्रेस संगठन में बड़े बदलाव का सुझाव रखा था तो राज्यों में गठबंधन का भी एक फॉर्मूला दिया था. सोनिया गांधी ने प्रशांत की प्रेजेंटेशन और उनके पार्टी में शामिल होने पर विचार करने के लिए कांग्रेस नेताओं की समिति का गठन किया था. इस कमेटी ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपनी रिपोर्ट सौंपी. इस रिपोर्ट में था कि प्रशांत किशोर कांग्रेस में एंट्री से पहले बाकी सभी राजनीतिक दलों से दूरी बना लें और पूरी तरह कांग्रेस के लिए समर्पित हो जाएं. 

KCR से IPAC का कॉन्ट्रैक्ट

इस बीच कांग्रेस में उनके शामिल होने की बात हो रही थी तो दूसरी तरफ तेलंगाना सीएम केसीआर के साथ बैठक कर रहे थे. यही नहीं टीआरएस के साथ IPAC ने अनुबंध किया है. ये IPAC वही कंपनी है, जिसके साथ प्रशांत किशोर चुनावी रणनीतिकार के तौर पर काम करते थे. केसीआर के साथ पीके की मीटिंग को लेकर कांग्रेस नेताओं ने नाराजगी भी जाहिर की थी, क्योंकि तेलंगाना में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है. 

केसीआर और ममता बनर्जी के साथ प्रशांत किशोर के संबंध जगजाहिर हैं जबकि ये दोनों ही नेता 2024 में पीएम मोदी के सामने विपक्ष का चेहरा बनने की कवायद में हैं. ऐसे में कांग्रेस कैसे पार्टी में प्रशांत किशोर को खुले तौर पर फैसला लेने की आजादी दे सकती थी, जिससे कांग्रेस की साख को बट्टा लग सके और गांधी परिवार के हाथो से पार्टी की कमान निकले. 

Advertisement

वहीं, पीके कांग्रेस नेताओं के किसी ग्रुप में बंधकर काम नहीं करना चाहते हैं, क्योंकि 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में वह कांग्रेस नेताओं के चलते अपने फॉर्मूले को अमलीजामा नहीं पहना सके. पीके यूपी में प्रियंका गांधी को चेहरा बनाना चाहते थे, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता तैयार नहीं हुए और कांग्रेस ने सपा के साथ गठबंधन कर लिया. ऐसे में कांग्रेस ने पीके को यूपी के बजाय पंजाब के चुनाव देखने का जिम्मा दे दिया था. यूपी में कांग्रेस का जो हश्र हुआ, वो जगजाहिर है जबकि पंजाब में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई थी.

इसलिए इस बार प्रशांत किशोर ने तय कर लिया था कि या तो उन्हें अपनी कार्ययोजना लागू करने की पूरी छूट मिले और उनके काम में किसी भी नेता का कोई दखल न हो, इसके बाद ही वह कांग्रेस में शामिल होंगे. वहीं, कांग्रेस नेतृत्व इसे लेकर उहापोह में था कि पीके या किसी भी एक व्यक्ति को इतनी छूट देना कांग्रेस और नेतृत्व दोनों के लिए ठीक नहीं होगा. इससे राहुल गांधी की छवि भी प्रभावित होगी और पीके एक नए सत्ताकेंद्र बन जाएंगे. ऐसे में पीके की कांग्रेस में शामिल होने के अरमानों पर एक बार फिर से पानी फिर गया है. 
 

Advertisement

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement