
सोनिया गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ने का संकेत दे दिया है. कांग्रेस को 'गांधी परिवार' से मुक्त रखने की दिशा में भी कदम बढ़ा दिया है. राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी तक एक लकीर भी खींच दी है कि कांग्रेस का नया अध्यक्ष 'गांधी परिवार' के बाहर का हो. यह फैसला ऐसे समय में लिया जा रहा है जब कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. लोकसभा चुनाव की हार के बाद पार्टी पूरी तरह से मझधार में फंसी हुई नजर आ रही है. ऐसे सियासी माहौल में राजनीतिक प्रयोग के लिए कांग्रेस की कमान को 'गांधी परिवार' से बाहर पॉलिटिकल रिस्क तो नहीं बन जाएगा?
कांग्रेस नेतृत्व में बदलाव पर इतनी चर्चा इसलिए भी हो रही है कि पार्टी इस समय कई तरह के संकटों से गुजर रही है. सिर्फ लोकसभा चुनाव ही नहीं, पार्टी पिछले छह सालों में कई विधान सभा चुनाव भी हारी है और कई राज्यों में सत्ता भी गंवा चुकी है. इस वजह राज्यसभा में भी पार्टी की संख्या घटती जा रही है. पार्टी के अंदर कलह भी बढ़ रही है और नेता पार्टी छोड़कर भी जा रहे हैं. ऐसे में पार्टी को एक मजबूत नेतृत्व की जरूरत हो सकती है.
वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर कहते हैं कि कांग्रेस लगातार दो लोकसभा चुनाव हारने के बाद संकट से गुजर रही है और ऐसे में नए नेतृत्व पर विचार होना ही चाहिए. गांधी परिवार और कांग्रेस को एक-दूसरे का पर्याय माना जाता है. राज्यों में कांग्रेस के अंदर कई खेमे में मौजूद हैं, जिन्हें सिर्फ गांधी परिवार ही साधकर रख सकती है. ऐसे में गांधी परिवार से बाहर अगर किसी को कमान दी जाती है तो कांग्रेस कई टुकड़ों में बंट जाएगी. कांग्रेस की कमान गांधी परिवार के हाथों में होने के बावजूद पार्टी के अंदर राजनीतिक संकट लगातार बना हुआ है.
शकील अख्तर कहते हैं कि कांग्रेस अब कोई कैडर और विचारधारा केंद्रित नहीं है, जिस प्रकार बीजेपी है. बीजेपी की कमान भले ही किसी नेता के पास हो, लेकिन उसे नियंत्रण करने का काम संघ करता है. इस तरह से कांग्रेस के पास कोई व्यवस्था नहीं है. यहां कांग्रेस के लिए जमीन बनाने से लेकर सत्ता तक पहुंचाने का काम गांधी परिवार के हाथ में रहता है. कांग्रेस को एकसूत्र में पिरोए रखने का काम गांधी परिवार ही कर सकता है.
अख्तर कहते हैं कि इसके अलावा कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं की एक लंबी फौज है, जो गांधी परिवार से बाहर के किसी दूसरे नेता के नेतृत्व को स्वीकार करने को तैयार नहीं होंगे. कैप्टन अमरिंदर सिंह से लेकर भूपेंद्र सिंह हुड्डा और पी चिदंबरम जैसे नेता क्या दूसरे को अपना नेता स्वीकार करेंगे. कांग्रेस अगर ऐसा कोई राजनीतिक प्रयोग करती है तो उसका जख्म नासूर भी बन सकता है, जो फिर न तो राहुल के मरहम लगाने से ठीक होगा और न ही किसी दूसरे नेता से इलाज हो सकेगा.
बता दें कि कांग्रेस में जब भी गांधी परिवार से बाहर पार्टी की कमान सौंपने की बात की जाती है तब नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी जैसे पूर्व अध्यक्षों के बाद पार्टी का क्या हश्र हुआ, याद आ जाता है. और फिर यह धारणा ऊपर आ जाती है कि नेहरू-गांधी परिवार ही पार्टी को एकजुट रख सकता है. लेकिन फिलहाल पार्टी के लिए गांधी परिवार की भूमिका अब सिमटती जा रही है. गांधी परिवार के सदस्यों के अब ना तो पहले की तरह जनता के बीच करिश्माई लोकप्रियता है, ना वो वोट ही ला पा रहे हैं और ना ही पार्टी को जुटा पा रहे हैं. ऐसे में नेतृत्व परिवर्तन की बात उठ रही है.
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन कहते हैं कि कांग्रेस में नेहरू-गांधी परिवार के बाहर पार्टी की कमान संभालने की काबिलियत रखने वाले लोग तो बिलकुल हैं, लेकिन पार्टी ही उनका नेतृत्व स्वीकार करेगी या नहीं इस पर संदेह है. कांग्रेस विचारधारा वाली पार्टी नहीं रह गई है बल्कि परिवार-केंद्रित पार्टी बन गई है, ऐसे में यह तभी हो पाएगा जब ऐसे किसी व्यक्ति को अध्यक्ष पद के लिए नेहरू-गांधी परिवार की तरफ से पूरा समर्थन और पूरी स्वायत्तता दें. एक तरह से कांग्रेस का ढांचा ही अब कुछ ऐसा हो गया है कि परिवार के बाहर किसी को सत्ता सौंपनी है या नहीं इस निर्णय के केंद्र में भी गांधी परिवार ही रहता.
वह कहते हैं कि कांग्रेस की इस हालत के लिए नेहरू-गांधी परिवार ही जिम्मेदार है और अब उसे ये निर्णय ले लेना चाहिए कि अगर पार्टी की सत्ता उसे अपने पास ही रखनी है तो वो मजबूती से उसे संभाल लें और अगर ऐसा नहीं है तो रास्ते से हट जाए. हालांकि, गांधी परिवार अगर पार्टी की कमान छोड़ता है तो किसे सौंपी जाए यह एक बड़ा सवाल है, क्योंकि पार्टी कई धड़ों और खेमो में बटी हुई है.
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवाई भी इस बात से सहमत है कि गांधी परिवार से बाहर अगर किसी नेता को कमान सौंपी जाती है तो पार्टी बिखर जाएगी. वह कहते हैं कि सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी के होने बाद भी ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी छोड़कर चले गए और सचिन पायलट की बगावत सबके सामने रही है. अमरिंदर सिंह गांधी परिवार के सिवा किसी को कई तवज्जो नहीं देते हैं. ऐसे में कैसे किसी दूसरे के नेतृत्व को कांग्रेसी स्वीकार कर पाएंगे. इसके अलावा अगर गांधी परिवार से बाहर कोई बनता भी है तो वो गांधी परिवार का पंसदीदा होगा और ऐसे में वो हर काम के लिए दस जनपद और 12 तुगलक लेन की तरफ देखेगा तो फिर गांधी परिवार से बाहर होने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.
अरविंद सिंह कहते हैं कि पिछले तीस सालों में गांधी परिवार से बाहर के जो भी कांग्रेस अध्यक्ष रहे हैं, उसके अनुभव को देखें तो वह पार्टी को संभाल नहीं पाए हैं. नरसिम्हा राव के दौर में नारायण दत्त तिवारी जैसे कांग्रेस के दिग्गज नेता ने पार्टी से बगावत कर अलग पार्टी बना ली थी, जो बाद में सोनिया गांधी के दौर में वापस लौटे. इसके अलावा पार्टी में जिस तरह से नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं के बीच गुटबाजी है, उसे गांधी परिवार का सदस्य ही साधकर रख सकता है. हालांकि राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष नहीं रहने के बाद भी मास लीडर के तौर पर उनकी अहमियत रहेगी.
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार उमाकांत लखेड़ा कहते हैं कि गांधी परिवार इस बात को बखूबी समझते हैं कि कांग्रेस जिस हालत में है, उसका चाल, चरित्र और चेहरा बदले बगैर नरेंद्र मोदी और अमित शाह के तंत्र से मुकाबला नहीं किया जा सकता है. इसी के मद्देनजर वो कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए किसी गैर-गांधी परिवार के सदस्य को सौंपना चाहते हैं. इसके जरिए कांग्रेस एक तीर से कई निशाने साधना चाहती है. कांग्रेस में बने अलग-अलग पावर सेंटर की बेड़ियों को तोड़ने के साथ-साथ बीजेपी के नैरेटिव को भी तोड़ने की रणनीति है.