
पिछले कुछ दिनों से परिसीमन को लेकर देश में सियासी हलचल तेज है. ल ही में तमिलनाडु की सत्तारूढ़ डीएमके ने एक बैठक बुलाई थी, जिसमें दक्षिणी राज्यों के कई मुख्यमंत्री शामिल थे. इसमें केरल के सीएम पी विजयन, तेलंगाना, ओडिशा और कर्नाटक के नेता शामिल हुए थे. लेकिन ये जानना जरूरी है कि आखिर परिसीमन को लेकर कांग्रेस आरजेडी, सपा और आम आदमी पार्टी का क्या रुख है...
सपा का मिला समर्थन
हाल ही में डीएमके सांसदों ने संसद भवन परिसर में परिसीमन के मुद्दे पर प्रदर्शन किया था. इसपर प्रतिक्रिया देते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि मैं तमिलनाडु के लोगों के साथ हूं, क्योंकि भाजपा पता नहीं कैसा परिसीमन कर दे. ये लोग विधानसभा चुनाव कैसे लड़ते हैं? जाति के आधार पर नियुक्ति करते हैं." यह पहली बार है जब अखिलेश यादव ने परिसीमन के मुद्दे पर खुलकर डीएमके का समर्थन किया था.
वहीं, AAP ने भी डीएमके का समर्थन किया था. पंजाब के सीएम भगवंत मान ने स्टालिन से मुलाकात के दौरान कहा था कि बीजेपी उन राज्यों में सीटें कम करने का काम कर रही है जहां वह जीत नहीं सकती है. मान ने कहा था कि हम बीजेपी के मंसूबों को कामयाब नहीं होने देंगे.
यह भी पढ़ें: परिसीमन के मुद्दे पर ममता बनर्जी ने क्यों किया स्टालिन की बैठक से किनारा?
परिसीमन के मुद्दे पर चल रहे विवाद पर कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने कहा था कि नई जनगणना कराए बिना परिसीमन की प्रक्रिया शुरू नहीं की जा सकती. उन्होंने कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2002 में संविधान में संशोधन करके 2026 के बाद पहली जनगणना होने तक परिसीमन को स्थगित कर दिया था. वहीं, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने भी परिसीमन मुद्दे को लेकर बीजेपी की नीयत पर सवाल उठाए थे. हालांकि, उत्तर भारत के राजनीतिक दल खुलकर इस मुद्दे पर बोलने से कतराते हैं.
क्या होता है परिसीमन?
बढ़ती जनसंख्या के आधार पर वक्त-वक्त पर निर्वाचन क्षेत्र की सीमाएं दोबारा निर्धारित करने की प्रक्रिया को परिसीमन कहते हैं. ऐसा इसलिए किया जाता है कि हमारे लोकतंत्र में आबादी का सही प्रतिनिधित्व हो सके, सभी को समान अवसर मिल सकें. इसलिए लोकसभा अथवा विधानसभा सीटों के क्षेत्र को दोबारा से परिभाषित या उनका पुनर्निधारण किया जाता है.