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MCD: दिल्ली के तीनों नगर निगमों को एक क्यों करना चाहती है बीजेपी?

Delhi MCD: दिल्ली में तीनों नगर निगमों को एक करने वाले प्रस्ताव को मोदी कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है. अब इससे जुड़ा बिल संसद में पेश किया जाएगा. तीनों नगर निगमों के एक होने के बाद दिल्ली में तीन की बजाय एक ही मेयर होगा.

MCD के एकीकरण को लेकर केंद्र और राज्य सरकार आमने-सामने है. (फाइल फोटो-PTI) MCD के एकीकरण को लेकर केंद्र और राज्य सरकार आमने-सामने है. (फाइल फोटो-PTI)
Priyank Dwivedi
  • नई दिल्ली,
  • 23 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 6:33 AM IST
  • 2012 में नगर निगमों को 3 हिस्सों में बांटा था
  • तीनों नगर निगमों में 1.60 लाख कर्मचारी
  • एकीकरण से सीएम जितना पावरफुल होगा मेयर

Delhi MCD: दिल्ली में अब तीनों नगर निगम एक हो जाएंगे. मोदी कैबिनेट ने इस पर मुहर लगा दी है. अब इससे जुड़ा बिल संसद में पेश किया जाएगा. ये बिल इसी सत्र में पेश किए जाने की उम्मीद है. कानून बनने के बाद दिल्ली नगर निगम में फिर से वही व्यवस्था लागू हो जाएगी, जो 10 साल पहले थी. 

जनवरी 2012 में कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार ने दिल्ली नगर निगम को तीन हिस्सों में बांट दिया था. इसके बाद नॉर्थ दिल्ली (NDMC), साउथ दिल्ली (SDMC) और ईस्ट दिल्ली (EDMC) नगर निगम बन गई थी. बताया जा रहा है कि संसद की मुहर लगने के बाद तीनों नगर निगमों को भंग कर दिया जाएगा और फिर चुनाव कराए जाएंगे.

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तीनों नगर निगमों का कार्यकाल मई में खत्म हो रहा है. साउथ दिल्ली का कार्यकाल 18 मई, नॉर्थ दिल्ली का 19 मई और ईस्ट दिल्ली का 22 मई को खत्म हो रहा है. 18 मई से पहले नगर निगम के चुनाव कराने जरूरी है. हालांकि, चुनावों को ज्यादा से ज्यादा 6 महीनों तक टाला जा सकता है. जब तीनों निगम थे, तब चेयरमैन रहे जगदीश ममगई ने न्यूज एजेंसी को बताया है कि अगर केंद्र जल्दी इसका रास्ता साफ कर देता है तो 18 मई से पहले चुनाव कराए जा सकते हैं.

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तीनों निगमों के एक होने से क्या बदलेगा?

- वार्डः दिल्ली में तीन नगर निगम हैं, जिनमें 272 वार्ड हैं. इनमें से 104-104 वार्ड साउथ और नॉर्थ दिल्ली में हैं, जबकि 64 वार्ड ईस्ट दिल्ली में हैं. एक होने के बाद भी दिल्ली नगर निगम में 272 वार्ड ही रहने की संभावना है.

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- मेयरः तीन नगर निगम के अपने-अपने मेयर हैं. लिहाजा दिल्ली में तीन मेयर होते हैं. एक होने के बाद एक ही मेयर होगा. अभी तीनों नगर निगमों में 1-1 साल के लिए 5 मेयर बनते हैं, जिनमें से एक मेयर महिला और एक एससी-एसटी वर्ग का होता है. यानी, 5 साल में 15 मेयर. लेकिन इसके बाद एक ही मेयर होगा और उसका कार्यकाल भी बढ़ाकर ढाई साल किया जा सकता है.

- कर्मचारीः रिपोर्ट्स के मुताबिक, अभी तीनों नगर निगमों में 1.60 लाख से ज्यादा कर्मचारी काम कर रहे हैं. तीन कमिश्नर हैं और तीनों निगमों के अपने-अपने डिपार्टमेंट हैं. एकीकरण के बाद एक ही कमिश्नर होगा और डिपार्टमेंट से भी कई कर्मचारी हट सकते हैं. इससे निगम को अपने खर्च में कटौती करने में मदद मिलेगी.

लेकिन सवाल, बीजेपी तीनों को एक क्यों करना चाहती है?

- जब शीला दीक्षित की सरकार ने नगर निगमों को तीन हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव रखा था, तब भी बीजेपी ने इसका विरोध किया था. ऐसा माना जाता है कि तीनों निगमों के एक होने से एक ही मेयर होता था और उसकी पावर मुख्यमंत्री के लगभग बराबर होती है. इसी बात से शीला दीक्षित खुश नहीं थीं. 

- बीजेपी अक्सर तीनों नगर निगमों को फिर से एक करने का मुद्दा उठाती रही है. हालांकि, चुनाव से ठीक पहले इस मुद्दे को फिर से उठाने की टाइमिंग पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सवाल उठाए हैं. केजरीवाल का कहना है कि बीजेपी 7-8 साल से केंद्र की सत्ता में है तो फिर चुनाव से पहले इसे एक करने का फैसला क्यों लिया जा रहा है?

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- बीजेपी का आरोप है कि दिल्ली सरकार नगर निगमों को फंड जारी नहीं करती, जिस वजह से नुकसान हो रहा है. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का आरोप है कि केजरीवाल सरकार ने नगर निगम का 13 हजार करोड़ रुपये का फंड रोककर रखा है. 

- बीजेपी नेता और साउत दिल्ली के मेयर रह चुके सुभाष आर्या का कहना है कि तीनों नगर निगमों को एक करने से इनकी आर्थिक सेहत सुधरेगी. उनका कहना है कि 2012 से नगर निगम की आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही है.

- नई दिल्ली के मेयर रह चुके योगेंद्र चंदोलिया का भी कहना है कि तीनों को एक करना बहुत जरूरी है और इससे आर्थिक स्थिति में सुधार होगा. उनका कहना है कि कई बार कर्मचारी सैलरी नहीं मिलने पर हड़ताल कर रहे हैं और ये सब तीन नगर निगम होने से हो रहा है.

- CAG की रिपोर्ट बताती है कि 2012 में जब नगर निगम को तीन हिस्सों में बांटा गया था, तब नगर निगम पर 2,060 करोड़ रुपये का कर्ज था. ये कर्ज तीनों नगर निगमों में बांटा गया. लिहाजा साउथ दिल्ली पर 936 करोड़, नॉर्थ दिल्ली पर 730 करोड़ और ईस्ट दिल्ली पर 394 करोड़ रुपये का कर्ज आया. 

- CAG की रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च 2018 तक 2,037 करोड़ रुपये का कर्ज नॉर्थ दिल्ली पर था. वहीं, ईस्ट दिल्ली पर 1,396 करोड़ और साउथ दिल्ली पर 381 करोड़ रुपये का कर्ज था. इसके बाद से CAG की रिपोर्ट नहीं आई है, इसलिए अभी के कर्ज के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता.

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आर्थिक ही नहीं, राजनीतिक कारण भी!

- दिल्ली की कुर्सी से बीजेपी 1998 से ही दूर है. 1998 से 2013 तक कांग्रेस ने राज किया और उसके बाद आम आदमी पार्टी आ गई. हालांकि, नगर निगम पर बीजेपी पिछले 15 साल से है. 2017 में बीजेपी ने 272 वार्ड में से 181 में जीत हासिल की थी. लेकिन इस बार उसकी राह थोड़ी मुश्किल लग रही है.

- पिछले साल आम आदमी पार्टी ने दावा किया था कि बीजेपी के अपने सर्वे में उसे 272 में से 40 से 50 वार्ड में ही जीत मिलती दिख रही है. हालांकि, बीजेपी ने इसे खारिज कर दिया था. लेकिन पंजाब में बड़ी जीत के बाद अब बीजेपी को थोड़ा खतरा जरूर दिख रहा है. 

- तीनों नगर निगमों के एक होने से बीजेपी केजरीवाल सरकार पर फंड रोकने का आरोप लगा सकती है. इसके अलावा तीनों नगर निगमों में काम कर रहे कर्मचारियों को भी भुना सकती है. बीजेपी का आरोप है कि सैलरी नहीं मिलने से कर्मचारी अक्सर हड़ताल करते रहते हैं.

- एक बड़ी वजह ये है कि बीजेपी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ताकत कमजोर करना चाहती है. अगर तीनों नगर निगम एक हो जाते हैं और एक ही मेयर होता है तो उसकी ताकत मुख्यमंत्री के बराबर हो जाएगी. इतना ही नहीं, खबर ये भी है कि निगम में दिल्ली सरकार का दखल कम करने के लिए मेयर-इन-काउंसिल की व्यवस्था भी की जाएगी. 

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