
कृषि विधेयकों को लेकर रविवार को राज्यसभा में एक अलग तस्वीर देखने को मिली. सवाल है कि क्या विधेयकों को संसदीय समिति के पास भेजने की अपनी पुरानी सहयोगी अकाली दल सहित विपक्ष की मांग को सरकार ने खारिज कर दिया और बिल ध्वनिमत से पारित हो गए?.
किसानों और उनके प्रोटेस्ट की चिंता किसे है? विपक्ष का आरोप है कि राज्यसभा के उपसभापति ने कार्यवाही का दुरुपयोग किया. या फिर राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने 'गलत आचरण' को रोकने के लिए संख्याबल की परीक्षा के बजाय ध्वनिमत से विधेयकों को पारित कराने की नीति को सही समझा?
उस दिन सदन में पार्टियों की मौजूद संख्याबल को समझते हैं. इससे तस्वीर साफ हो जाएगी. अभी राज्यसभा में कुल 242 सदस्य हैं. दो सीटें रिक्त हैं. इसलिए बहुमत के लिए 122 वोटों की जरूरत होती.
राज्यसभा में विधेयकों को पारित किए जाने से पहले बीजेपी के सीनियर नेता का कहना था कि बिल आसानी से पास हो जाएंगे. सरकार के पास करीब 115 वोट हैं जबकि विपक्ष 75 के आंकड़े को पार नहीं कर पाएगा.
विेधेयकों के समर्थन में
राज्यसभा में बीजेपी 86, जदयू के 5 और नामित सदस्य तीन हैं. बीपीएफ, आरपीआई, एलजेपी, पीएमके, एनपीपी, एमएनएफ, निर्दलीय और एसडीएफ के एक-एक सदस्य हैं. कुल मिलाकर सरकार के पास 103 सदस्य हुए.
विपक्ष का संख्याबल
दूसरी तरफ कृषि विधेयकों के खिलाफ कांग्रेस के 40, AAP के तीन, टीएमसी के 13, बसपा के 4, सपा के 8, वामदलों के 6, डीएमके के 7, राजद के 5, एनसीपी के 4 और जेडीएस, आईयूएमएल, एमडीएमके, जेएमएम, एलजेडी, केसी और निर्दलीय सदस्य थे. अगर इसमें अकाली दल के 3 को मिला लिया जाए तो विपक्ष का संख्याबल 100 होता है.
तीसरा खेमा
कई सालों से ऐसा हो रहा है कि राज्यसभा में तीसरा खेमा बाजी पलटने वाला साबित हो रहा है. इनमें शिवसेना के 3, टीआरएस के 7, अन्नाद्रमुक के 9, वाईएसआर कांग्रेस के 6, पीडीपी के 2, बीजद के 9, टीडीपी, एजीपी, टीएमसी (एम) और एक नामित सदस्य है. इनकी संख्या 40 है.
कहां दिख रहे थे बदलाव
विधेयकों को राज्यसभा में लाने से एक दिन पहले टीआरएस ने इसका विरोध किया और कहा कि वह सदन में इसके खिलाफ वोटिंग करेगा. टीआरएस के 7 सदस्य हैं. इन्हें मिलाकर विपक्ष का आंकड़ा 107 हो गया. इसका मतलब था कि विपक्ष ने सरकार को पीछे छोड़ दिया.
जमीनी हकीकत
रविवार को जिस दिन कृषि विधेयक राज्यसभा में पेश किए गए, उस दिन यह संख्या का खेल जितना आसान लग रहा है, उतना आसान नहीं था. उस दिन राज्यसभा में पार्टियों की असली स्थिति जानने के लिए इंडिया टुडे ने अटेंडेस रजिस्टर की पड़ताल की. इसमें कागज पर दिखने वाली स्थिति से अलग हालत दिखे. रविवार को सदन में जितने सदस्य उपस्थित रहे उनका ब्योरा नीचे है.
पार्टी संख्याबल उपस्थित अनुपस्थित
बीजेपी 103 91 12
कांग्रेस 107 74 33
तीसरा खेमा 33 26 07
कुल 243 191 52
रिकॉर्ड से पता चलता है कि बड़े विपक्षी दलों के उन सदस्यों की बड़ी संख्या थी, जो उस दिन सदन में मौजूद नहीं थे. इनमें कांग्रेस के दर्जनों सदस्य शामिल हैं. इसका मतलब है कि विधेयकों पर बहस के दौरान उपस्थिति के आधार पर देखा जाए तो आंकड़े सरकार के पक्ष में दिख रहे थे.
विधेयकों के खिलाफ विपक्ष को तीसरे खेमे से 18 सांसदों की जरूरत पड़ती. लेकिन बहस के दौरान संकेत मिले कि इसके सहयोगी भी हताश थे, जबकि सरकार 'दूसरों' का समर्थन हासिल करने को तैयार थी. बीजेपी सूत्रों का आरोप है कि विपक्ष ने जानबूझ कर बाधा खड़ी की ताकि वोटिंग न हो और उनकी कमजोरी उजागर न हो जाए.
राज्यसभा में तीन सदस्यों वाली शिवसेना ने विधेयकों के खिलाफ सदन में खूब शोर मचाया. लेकिन उसने लोकसभा में विधेयकों के समर्थन में वोट किया और अगर इसी तरह राज्यसभा में वोट करती तो सरकार के पास 94 वोट होते. वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के 5 सदस्यों को मिलाकर सरकार का आंकड़ा 99 पर पहुंच जाता. बसपा के 4 वोट भी अगर विधेयक के पक्ष में जाते तो सरकार के आंकड़े 103 होते. अन्नाद्रमुक के 4, एजेपी, टीडीपी और टीएमसी (एम) के एक-एक सदस्य को मिलाकर सरकार का आंकड़ा 110 पहुंच जाता.
विधेयक पर बहस के बाद की टैली बताती है कि सरकार के पास 110 का आंकड़ा था जबकि विपक्ष 70 पर सिमट जाता. लिहाजा विपक्ष को पता था कि सरकार मजबूत है और उनका पक्ष कमजोर साबित होने वाला है.