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नेहरू का वो तीसरा संशोधन जो बना कृषि कानूनों का आधार, 66 साल बाद अब SC में चुनौती

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के मुताबिक नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा पारित तीनों कृषि कानून संविधान के अनुच्छेद 246 का उल्लंघन है. बता दें कि कृषि को संविधान में राज्य सूची में रखा गया है. इसका मतलब ये है कि कृषि से जुड़े मुद्दों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य की सरकारों को है. फिर सवाल उठता है कि क्या मोदी सरकार ने कृषि पर कानून बनाकर गलती की है?

सिंघु बॉर्डर पर कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर प्रदर्शन जारी है (फोटो- पीटीआई) सिंघु बॉर्डर पर कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर प्रदर्शन जारी है (फोटो- पीटीआई)
पन्ना लाल
  • नई दिल्ली,
  • 11 जनवरी 2021,
  • अपडेटेड 9:30 AM IST
  • 1954 में किया गया था संविधान का तीसरा संशोधन
  • कृषि को संविधान की समवर्ती सूची में डाला गया
  • संविधान का तीसरा संशोधन बना कृषि कानूनों का आधार

कृषि कानूनों की लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट में चली गई है. सरकार और किसानों के बीच 8वें दौर की वार्ता का कोई नतीजा न निकलने के बाद अब देश की सर्वोच्च अदालत के सामने ये मामला चला गया है. इस बीच 26 नवंबर 2020 को शुरू हुए इस आंदोलन को डेढ़ महीने से ज्यादा समय गुजर चुका है.
 
संविधान के दायरे में ये कानून कितना सही है, आज सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई है. गौरतलब है कि अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने इन तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है. एमएल शर्मा का तर्क है कि केंद्र को संविधान के तहत इन कानूनों को बनाने का अधिकार नहीं है.

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एक नहीं 6-6 याचिकाएं

कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती हुई कम से कम 6 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट के सामने लंबित हैं.  इन सभी याचिकाओं पर आज सुनवाई है.  

नेहरू के संशोधन को 66 साल बाद चैलेंज

दरअसल मनोहर लाल शर्मा ने देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा 66 साल पहले 1954 में किए गए संविधान के तीसरे संशोधन को चुनौती दी है. एमएल शर्मा ने इस संशोधन को ही गलत करार दिया है. एमएल शर्मा ने दावा किया है 1954 में किया गया संविधान का तीसरा संशोधन ही गलत और अनुचित है. एमएल शर्मा ने अपनी याचिका में कहा है कि कृषि जैसे विषय को समवर्ती सूची में शामिल करना असंवैधानिक है. 

'मोदी सरकार का कृषि कानून अनुच्छेद 246 का उल्लंघन'

याचिका के मुताबिक नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा पारित तीनों कृषि कानून संविधान के अनुच्छेद 246 का उल्लंघन है. बता दें कि कृषि को संविधान में राज्य सूची में रखा गया है. इसका मतलब ये है कि कृषि से जुड़े मुद्दों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य की सरकारों को है. फिर सवाल उठता है कि क्या मोदी सरकार ने कृषि पर कानून बनाकर गलती की है? दरअसल संविधान की पेचीदगियां यहीं खत्म नहीं हो जाती हैं. एमएल शर्मा ने ऐसा क्यों कहा है ये हम आपको आगे बताएंगे. 

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एमएल शर्मा की याचिका से सुप्रीम कोर्ट भी हैरत में

6 जनवरी को जब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही थी तो इतने पुराने संशोधन को चुनौती से सुप्रीम कोर्ट के जज भी हैरान से दिखे थे. इस याचिका को स्वीकार करते हुए चीफ जस्टिस एस बोबडे, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यन की बेंच ने कहा था, "एमएल शर्मा हमेशा चौंकाने वाली याचिकाएं दाखिल करते हैं, इस पीआईएल का हैरान करने वाला पक्ष ये है कि उन्होंने 1954 के संवैधानिक संशोधन को चुनौती दी है, जिसकी वजह से कृषि जैसे विषय समवर्ती सूची में रखे गए, इसी की वजह से अभी संसद को कृषि कानून बनाने का अधिकार मिल पाया है." 

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किस विषय पर कौन बना सकता है कानून

देश के संविधान की सातवीं अनुसूची राज्यों और संघ के बीच के अधिकारों का वर्णन करती है. इस अनुसूची में तीन लिस्ट हैं. इन्हें संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची कहते हैं. संघ सूची में वे विषय हैं जिन पर सिर्फ केंद्र यानी कि संसद ही कानून बना सकती है, राज्य सूची में वे विषय हैं जिन पर राज्य की विधायिका कानून बना सकती है, लेकिन समवर्ती सूची में ऐसे मुद्दे हैं जिन पर संसद और राज्य की विधायिका दोनों ही कानून बना सकती है.  

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अनुच्छेद 246 में विषयों का है स्पष्ट वर्णन

अनुच्छेद 246 में उन विषयों का वर्णन है जिन पर केंद्र सरकार यानी कि संसद, राज्य सरकारें यानी कि राज्य विधानमंडल कानून बना सकती है. समवर्ती सूची में आने वाले मुद्दों का जिक्र भी इसी अनुच्छेद में है. 

राज्य सूची की प्रविष्टि संख्या 14 में कृषि का जिक्र है. इसका मतलब साफ है कि राज्य को कृषि से जुड़े मुद्दों पर कानून बनाने का अधिकार है. 

राज्य सूची में ही आगे प्रविष्टि संख्या 26 में जिक्र है कि विधानसभा राज्य की सीमा के अंदर व्यापार और वाणिज्य (trade and commerce) से जुड़े नियम बना सकेगी.

संविधान की राज्य सूची की प्रविष्टि संख्या 27 कहती है कि राज्य की सीमा के अंदर वस्तुओं और सेवाओं के प्रोडक्शन, सप्लाई और डिस्ट्रीब्यूशन यानी कि उत्पादन, आपूर्ति और वितरण और को लेकर कानून बनाने का अधिकार उस राज्य की विधायिका को है. इन वस्तुओं में कृषि के उत्पाद भी आते हैं.

इस तरह से हम देखते हैं कि कृषि से जुड़े सभी मुद्दों पर कानून बनाने की शक्ति राज्य की विधानसभा को है. 

क्या होगा जब एक ही विषय पर केंद्र और राज्य दोनों ने कानून बना दिया

सवाल उठता है कि अगर समवर्ती सूची के किसी मुद्दे पर केंद्र और राज्य दोनों ने कानून बना दिया तो क्या होगा? हमारे संविधान निर्माता इस संभावित झगड़े का भी समाधान कर गए हैं. इस कानूनी झगड़े का समाधान जानने के लिए हमें संविधान के अनुच्छेद 254 को पढ़ना होगा. अब जब ये मामला सुप्रीम कोर्ट में आएगा तो अनुच्छेद 254 के मुताबिक संसद का कानून प्राथमिक माना जाएगा और राज्य का कानून उस सीमा तक शून्य माना जाएगा, जहां तक कि वह केंद्र के कानून से टकराता हो.

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सोनिया ने अनुच्छेद  254(2) के तहत कानून बनाने क्यों कहा

लेकिन हमारे संविधान निर्माताओं ने संघवाद को पूरा सम्मान दिया है. संघवाद का मतलब ये है कि राज्य और केंद्र दोनों अपने अपने दायरे में रहकर कानून बनाएं. हमारे सुप्रीम कोर्ट ने संसद की सर्वोच्चता का सिद्धांत (Doctrine of federal supremacy) जरूर दिया है, लेकिन राज्यों के हाथ भी खाली नहीं हैं. 

अनुच्छेद 254(2) राज्यों को विशेष शक्ति देता है. मान लिया जाए कि समवर्ती सूची के किसी विषय पर राज्य और केंद्र दोनों ने कानून बना दिया है और राज्य के द्वारा बनाए गए कानून के कुछ उपबंध केंद्र के कानून के खिलाफ हैं. ऐसी स्थिति में राज्य के इस कानून को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखा गया है और राष्ट्रपति इस कानून पर अपनी सहमति दे देते हैं तो राज्य के कानून को ही प्रभावी माना जाएगा और उस राज्य में संबंधित केंद्रीय कानून प्रभावहीन होगा.

भारत के संविधान में किए गए प्रमुख संशोधन

बता दें कि कुछ दिन पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने संविधान की इसी धारा का जिक्र करते हुए कांग्रेस शासित राज्यों को सलाह दी थी कि वे अपने अपने राज्यों में नरेंद्र मोदी सरकार के कृषि कानून को प्रभावहीन करने के लिए कानून लाएं.   

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हालांकि, ये अनुच्छेद इसी विषय पर संसद द्वारा बनाए गए कानून को लागू करने से भी नहीं रोकता है. यानी कि अगर कोई राज्य अनुच्छेद 254(2) का इस्तेमाल करते हुए कोई कानून पास भी कर देता है तो संसद द्वारा बनाया गया कानून बाकी राज्यों में पहले की तरह ही प्रभावी रहता है. 

भूमि सुधार, खाद्य संकट...नेहरू को जब कृषि पर कंट्रोल की जरूरत हुई 

अब तक साफ हो चुका है कि कृषि और कृषि उपज के व्यापार विपणन पर कानून बनाने का हक राज्यों को ही था. 26 जनवरी 1950 को जब देश का संविधान लागू हुआ तो मूल संविधान में प्रावधान ऐसा ही था. लेकिन 4 साल तक संविधान के विभिन्न धाराओं के कार्यान्वयन को परखने के बाद नेहरू को कई अनुभव हुए.  
 
आजादी के बाद पंडित नेहरू के सामने देश में कई चुनौतियां थीं. उन्हीं में चुनौतियां थी भूमि सुधार (Land reforms), खाद्य संकट, अनाज का विपणन और वितरण, अनाज की कालाबाजारी, जमाखोरी मूल्य वृद्धि. देश में तब खाद्य पदार्थों की आपूर्ति सीमित थी, कालाबाजारी के जरिए कुछ लोग इसका फायदा उठा रहे थे.

नेहरू इन समस्याओं का प्रभावी तरीके से समाधान कर सकें इसलिए ये जरूरी था कि इससे जुड़े कानून का नियंत्रण वह केंद्र के पास रखना चाहते थे.  एक बात और थी, समाजवादी विचारधारा से प्रभावित नेहरू भूमि सुधार लागू करना चाहते थे, लेकिन कई राज्य सरकारें इसके लिए तैयार नहीं थीं. हालांकि उस वक्त देश के ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस का ही शासन था, लेकिन इन राज्यों की अपनी आकांक्षाएं, जातीय समीकरण, भौगोलिक स्थिति थी, जिससे उनका ये एजेंडा प्रभावित हो रहा था. 

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1954 में हुआ संविधान का तीसरा संशोधन

आखिरकार तत्कालीन पीएम नेहरू के काल में संविधान का तीसरा संशोधन हुआ. इस संशोधन के जरिए समवर्ती सूची की प्रविष्टि संख्या 33 में एक प्रावधान डाला गया. इसके अनुसार उत्पादन, आपूर्ति, वितरण, व्यापार और वाणिज्य पर केंद्र सरकार भी कानून बना सकती है. इस कानून के उपबिंदुओं में खाद्य पदार्थ, खाद्य तेल, समेत कई चीजें शामिल हैं.

यानी समवर्ती सूची की प्रविष्टि संख्या 33 के आधार पर कृषि से जुड़े उत्पादन, आपूर्ति, वितरण, व्यापार और वाणिज्य पर केंद्र सरकार भी कानून बना सकती है. केंद्र सरकार इन मुद्दों पर उत्पादन एवं आपूर्ति को लोकहित में समझने पर इस पर नियंत्रण लगा सकती है. ये संविधान संशोधन 22 फरवरी 1954 को किया गया. 

संविधान के तीसरे संशोधन से समवर्ती सूची में कृषि को डाला गया.

कैसे होगी कानून की व्याख्या

अब सवाल है कि इस संशोधन से राज्यों को भी कृषि पर कानून बनाने का अधिकार मिल गया और केंद्र को भी. फिर इसकी व्याख्या कैसे होगी? यानी कि किसका कानून प्रभावी होगा. इसका भी समाधान संविधान में है. राज्य सूची की प्रविष्टि संख्या 26 और 27 में लिखा है कि समवर्ती सूची की प्रविष्टि संख्या 33 के उपबंधों के अधीन रहते हुए ही राज्य की विधानसभा  उत्पादन, आपूर्ति, वितरण पर और व्यापार और वाणिज्य पर कानून बना सकती है. 

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यानी कि कृषि के विषय पर बनाए गए कानूनों में संसद के कानून प्राथमिक होंगे, मुख्य होंगे. न कि राज्य विधानसभा के द्वारा बनाए गए कानून. 

बता दें कि नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले साल सितंबर में जो तीन कृषि कानून बनाए हैं, वो इसी समवर्ती सूची की प्रविष्टि संख्या 33 के आधार पर बनाए हैं. इसी कृषि कानून को लेकर पिछले पांच महीने से देश की राजनीति में घमासान छिड़ा हुआ है. इस तरह से 66 साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के एक संशोधन के आधार पर पीएम मोदी ने नए कृषि कानूनों का आधार तैयार किया है.  


 

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