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पहले सनातन विरोध में बयानबाजी और अब अयोध्या से कन्नी... INDIA का सॉफ्ट हिंदुत्व से भी किनारा?

हाल ही में जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए हैं, वहां कांग्रेस ने सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड खेला, लेकिन उसे इस दांव के जरिए सफलता नहीं मिली है. मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ तीनों राज्यों में हार का सामना करना पड़ा है. जबकि दक्षिण के राज्यों में पहले कर्नाटक और फिर तेलंगाना में जबरदस्त जीत मिली है. इन दोनों राज्यों में एंटी सनातन और एंटी बिहार का मसला खूब चर्चा में रहा.

कांग्रेस के ज्यातादर सहयोगी दलों ने साफ कर दिया है कि वो राम लला की मूर्ति के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाएंगे. कांग्रेस के ज्यातादर सहयोगी दलों ने साफ कर दिया है कि वो राम लला की मूर्ति के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाएंगे.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 11 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 7:14 PM IST

अयोध्या में नए राम मंदिर में रामलला की मूर्ति का प्राण-प्रतिष्ठा समारोह चर्चा में है. 22 जनवरी को कार्यक्रम है और सामने देश में लोकसभा चुनाव हैं. लिहाजा, अभी से राजनीतिक दलों के बीच सियासत की पिच तैयार की जाने लगी है. बुधवार को जैसे ही कांग्रेस ने राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का न्योता ठुकराया, बीजेपी आक्रमण मोड में आ गई. देशभर से बीजेपी नेताओं की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं और कांग्रेस को हिंदू विरोधी साबित करने की होड़ मच गई है. हालांकि, यह भी सच है कि 90 के दशक में कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में कानूनी तरीके या बातचीत के जरिए राम मंदिर निर्माण के लिए हामी भरी थी. इस लिहाज से तो उसे अयोध्या के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जाना चाहिए था. लेकिन, यह दांव बताता है कि कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व से किनारा कर रही है. 

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दरअसल, हाल ही में जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए हैं, वहां कांग्रेस ने सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड खेला, लेकिन उसे इस दांव के जरिए सफलता नहीं मिली है. मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ तीनों राज्यों में हार का सामना करना पड़ा है. जबकि दक्षिण के राज्यों में पहले कर्नाटक और फिर तेलंगाना में जबरदस्त जीत मिली है. इन दोनों राज्यों में एंटी सनातन और एंटी बिहार का मसला खूब चर्चा में रहा. अयोध्या को लेकर यह बात निकलकर आई कि एक फैसले से पार्टी को केरल में झटका लग सकता है. उसे चुनाव में नुकसान उठाना पड़ेगा. कर्नाटक, तेलंगाना जैसे राज्यों में सीटें कम हो सकती हैं. यहां कांग्रेस को अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है. उत्तरी, पश्चिमी और अन्य मध्य राज्यों में पार्टी कोई खास फायदा नहीं होगा, जहां बीजेपी-कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई है.

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'कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व से किनारा, लेकिन अपवाद भी...'

फिलहाल, सारे प्रयोग के बाद कांग्रेस अब सॉफ्ट हिंदुत्व से किनारा करने लगी है. हालांकि, इसका अपवाद भी है. राज्य इकाइयों में स्थानीय स्तर पर अभी भी नेता राम या राम मंदिर और सॉफ्ट हिंदुत्व में भरोसा रख रहे हैं. जब कांग्रेस हाईकमान ने अयोध्या जाने से इंकार कर दिया तो गुजरात से लेकर यूपी और हिमाचल प्रदेश के नेताओं की प्रतिक्रियाओं ने हर किसी का ध्यान आकर्षित किया. गुजरात कांग्रेस के मीडिया विभाग के सह-संयोजक और प्रवक्ता हेमांग रावल कहते हैं कि मुझे गर्व है कि मैं धर्म, कर्म, वचन से हिंदू ब्राह्मण हूं. दुनिया में श्री राम के नाम से बड़ा कोई नाम नहीं है. राम मंदिर निर्माण के गौरवशाली क्षण पर अगर मुझे निमंत्रण मिलता तो मैं जरूर जाता. मैं जल्द ही रामचंद्र के दर्शन करने जाऊंगा. जय श्री राम.

'पार्टी कमान के खिलाफ बयान दे रहे कांग्रेस नेता'

गुजरात कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पोरबंदर से विधायक अर्जुन मोढवाडिया अपनी ही पार्टी को नसीहत देते हैं और कहते हैं कि भगवान श्री राम आराध्य देव हैं. यह देशवासियों की आस्था और विश्वास का विषय है. कांग्रेस को ऐसे राजनीतिक निर्णय लेने से दूर रहना चाहिए था.

इसी तरह, कांग्रेस नेता अंबरीश डेर कहते हैं कि देशभर में अनगिनत लोगों की आस्था इस नवनिर्मित मंदिर से वर्षों से जुड़ी हुई है. कांग्रेस के कुछ लोगों को उस खास तरह के बयान से दूरी बनाए रखनी चाहिए और जनभावना का दिल से सम्मान करना चाहिए. इस तरह के बयान से मेरे जैसे गुजरात कांग्रेस के कई कार्यकर्ताओं के लिए निराशाजनक हैं. 

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'करोड़ों कांग्रेस कार्यकर्ताओं का दिल टूटा'

यूपी में कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम कहते हैं कि राम मंदिर और भगवान राम सबके हैं. राम मंदिर को बीजेपी, आरएसएस, वीएचपी या बजरंग दल का मान लेना दुर्भाग्यपूर्ण है. मुझे पूरा भरोसा है कि कांग्रेस हिंदू विरोध पार्टी नहीं है. ना राम विरोधी है. कुछ लोग हैं, जिन्होंने इस तरह का फैसला करवाने में भूमिका अदा की है. आज मेरा दिल टूट गया है. इस फैसले से करोड़ों कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का दिल टूटा है. उन कार्यकर्ताओं और नेताओं का... जिनकी आस्था भगवान राम में है. 

'मध्य प्रदेश में कमलनाथ भी सॉफ्ट हिंदुत्व के भरोसे!'

बात यहीं खत्म नहीं हो जाती है. कांग्रेस नेता कमलनाथ मध्य प्रदेश में चुनावी साल में राम मय नजर आए. उन्होंने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत ही धार्मिक आयोजन से की. पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी को बुलाया. नर्मदा तट पर पूजा-अर्चना और आरती का कार्यक्रम रखा. उससे पहले सनातन के बड़े चेहरे धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को छिंदवाड़ा बुलाकर कथा का आयोजन करवाया. एक दिन पहले ही उनके बेटे और छिंदवाड़ा से सांसद नकुलनाथ ने एक्स पर एक वीडियो शेयर किया और लिखा, 4 करोड़ 31 लाख राम नाम लिखकर छिंदवाड़ा इतिहास रचने जा रहा है. आज उसी क्रम में पूर्व मुख्यमंत्री आदरणीय कमलनाथ जी के साथ सिमरिया हनुमान मंदिर पहुंचकर पत्रक में राम नाम लिखा. आप सभी से अपील करता हूं कि इस ऐतिहासिक कार्य में शामिल होकर पुण्य लाभ अर्जित करें. राम राम.

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'हाईकमान की NO, लेकिन अयोध्या जाएगी UP कांग्रेस की टीम'

यूपी में प्रदेश अध्यक्ष अजय राय कहते हैं कि वो मकर संक्राति पर अयोध्या जाएंगे और रामलला के दर्शन करेंगे. उनके साथ यूपी कांग्रेस के नेता भी अयोध्या पहुंचेंगे. राय ने नया नारा भी दिया- 'सबके राम, चलो अयोध्या धाम'. पोस्टर में उन्होंने सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे की तस्वीर लगाई है. अजय राय कहते हैं कि वे सबसे पहले सरयू में स्नान करके विधि विधान से पूजा करेंगे. अन्य नेता भी दर्शन पूजन में शामिल होंगे.

'शंकराचार्य के बहाने किनारा करने में जुट गई कांग्रेस'

गुजरात कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष शक्ति सिंह गोहिल कहते हैं कि हमारे कुछ सहयोगियों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं. हमारे पास आंतरिक लोकतंत्र है लेकिन ऊपर से कोई अन्य आवाज नहीं है. हाईकमान का निर्णय उचित है. यह स्पष्ट है कि हिंदू धर्म में अगर कोई सबसे बड़ा निर्णय ले सकता है तो जिसका उल्लेख हमारे ग्रंथों और हमारी परंपराओं में है, वो शंकराचार्य जी महाराज हैं. जब शंकराचार्य जी महाराज कह रहे हैं कि मंदिर अभी पूरा नहीं हुआ है, अभी प्राण-प्रतिष्ठा नहीं होनी चाहिए और बीजेपी चुनाव को देखते हुए सरकारी आयोजन करती है तो यह स्पष्ट है कि इसमें कौन शामिल होगा. मंदिर में दर्शन के लिए किसी आमंत्रण की जरूरत नहीं है. भगवान के घर बिना बुलाए हर कोई जा सकता है. जब मंदिर पूरा बन जाएगा तो आस्था रखने वाला हर कांग्रेसी जाएगा. सिर्फ भव्यता ही भगवान का आशीर्वाद नहीं लाती. रावण के पास बहुत वैभव था लेकिन उसे आशीर्वाद नहीं मिला. लेकिन शबरी मां के पास कुछ भी नहीं था, उसके दिल में भावनाएं थीं, इसलिए उसे भगवान का आशीर्वाद मिला. अब जब काम के नाम पर वोट नहीं मिल रहा तो राम के नाम पर रोटी पकाकर वोट बैंक करने निकले हैं. मैं वोटों की राजनीति में अपने भगवान का उपयोग नहीं करता हूं.

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'चुनाव लाभ के लिए अधूरे मंदिर का हो रहा उद्घाटन'

बुधवार को कांग्रेस ने एक बयान जारी किया और बताया कि पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी और अधीर रंजन को  22 जनवरी को राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता मिला था. चूंकि यह बीजेपी और आरएसएस का इवेंट है और चुनावी लाभ के लिए अधूरे मंदिर का उद्घाटन किया जा रहा है. इसलिए कांग्रेस पार्टी न्योते को सम्मान अस्वीकार करती है. कांग्रेस पार्टी से कोई नेता अयोध्या के कार्यक्रम में नहीं जाएगा. इसके साथ ही कांग्रेस ने कहा कि धर्म एक निजी मसला है. लेकिन आरएसएस / बीजेपी ने लंबे समय से अयोध्या में मंदिर को राजनीतिक प्रोजेक्ट बनाया है. बीजेपी और आरएसएस के नेताओं द्वारा अधूरे मंदिर का उद्घाटन स्पष्ट रूप से चुनावी लाभ के लिए किया जा रहा है.

'कांग्रेस के सहयोगी दलों की भी अयोध्या से दूरी'

कांग्रेस की तरह ही अयोध्या को लेकर उसके सहयोगी गठबंधन दलों का रुख भी देखने को मिला है. यानी कांग्रेस भी विपक्ष से अलग राय नहीं रखती है. इससे पहले अखिलेश यादव, लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी, सीपीएम नेता सीताराम येचुरी भी अयोध्या ना जाने का ऐलान कर चुके हैं. शरद पवार, अरविंद केजरीवाल, उद्धव ठाकरे को अब तक निमंत्रण नहीं मिला है. इसलिए उन्होंने अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है. बीजेपी को सत्ता से हटाने के इरादे से 28 विपक्षी दलों ने इंडियन नेशनल डेवेलपमेंट इन्क्लूसिव एलायंस (इंडिया) नाम से गठबंधन बनाया है. 

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'काउंटर अटैक की क्या तैयारी?'

अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या अयोध्या से दूरी बनाने से इंडिया गठबंधन और उसके भविष्य पर असर पड़ेगा. चूंकि, तीन महीने से भी कम समय में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. बीजेपी ने यह साफ कर दिया है कि वो राम मंदिर के मुद्दे को भुनाएगी और कांग्रेस समेत इंडिया अलायंस को घेरने के लिए 'हिंदू विरोधी' के रूप में प्रचारित करने में कसर नहीं छोड़ेगी. बीजेपी का जब यह एजेंडा साफ हो गया है तब विपक्ष के सामने बड़ी चुनौती यही है कि वो अयोध्या मुद्दे का काउंटर अटैक कैसे करेगा?

'कांग्रेस अयोध्या ना जाने की तीन वजहें गिनाएगी!'

इंडिया अलायंस में ज्यादातर पार्टियां खुद को धर्म निरपेक्ष कहती हैं. उनका अपना बड़ा वोट बैंक है. अंदरखाने यह भी डर है कि अगर वो अयोध्या जाएंगे, तब भी बीजेपी घेरेगी और ना जाने पर भी सवाल उठाएगी. ऐसे में बीजेपी के किसी एजेंडे में फंसने से बेहतर अयोध्या मसले पर किनारा कर लिया जाए. इसका काउंटर करने की भी स्क्रिप्ट तैयार कर ली है. कांग्रेस ने अयोध्या जाने से दूरी बनाने की तीन बड़ी वजह बताई हैं. पहला- चुनाव को देखते हुए अधूरे मंदिर का उद्घाटन करना. दूसरा- चारों शंकराचार्य का ना जाना और तीसरा- बीजेपी, आरएसएस, बजरंग दल और वीएचपी की इस पूरे कार्यक्रम में भूमिका? कांग्रेस का कहना है कि ये बीजेपी-आरएसएस का कार्यक्रम है.

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'रिजल्ट पक्ष में नहीं आया तो बदली रणनीति?'

पिछले कुछ वर्षों में पहली बार कांग्रेस का रुख इतना स्पष्ट रूप से सामने आया है. चूंकि, इससे पहले कांग्रेस चुनावों में बीजेपी को पटखनी देने के लिए उसी के एजेंडे पर काउंटर करने की कोशिश करती आई है. बीजेपी ने जब सनातन विरोधी का सवाल उठाया तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी तक मंदिर, गुरुद्वारा में पूजा-अरदास करते देखे गए. हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश समेत अन्य राज्यों में चुनावी अभियान की शुरुआत भी धार्मिक आयोजन के साथ हुई. लेकिन, परिणाम पक्ष में नहीं आए तो यह मान लिया गया कि रणनीति में बदलाव करना होगा.

'राम चरित मानस, हिंदू देवी-देवता और एंटी सनातन...'

इससे पहले कांग्रेस अपने सहयोगी दलों की वजह से विवादों में आई. दक्षिण में एंटी सनतान का मुद्दा गूंजा तो यूपी-बिहार-दिल्ली में राम चरित मानस और हिंदू देवी-देवताओं पर विवादित बयानों ने लोगों में नाराजगी बढ़ाने का काम किया. दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री और AAP नेता राजेंद्र पाल गौतम ने अक्टूबर 2022 में हिंदू देवी-देवताओं पर सवाल उठाए. गौतम ने लोगों को भगवान राम और श्रीकृष्ण की पूजा ना करने की शपथ दिलाई थी. उसके बाद राजद नेता और बिहार में शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने राम चरित मानस पर विवादित बयान देकर माहौल गरमा दिया. बाद में सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने इसे बड़ा रूप देने में कसर नहीं छोड़ी. यह दोनों नेता अभी भी अपने बयानों से पार्टियों की मुश्किलें बढ़ाते आ रहे हैं.

वहीं, तेलंगाना विधानसभा चुनाव में सनातन विरोधी बयानों ने कांग्रेस को अच्छा खासा नुकसान पहुंचाया. पहले डीएमके नेता उदयनिधि ने सनातन को लेकर विवादित बयान दिया. उसके बाद डीएमके से ही सांसद दयानिधि मारन ने यूपी और बिहार के लोगों के लिए अमर्यादित टिप्पणी की थी. कांग्रेस नेता प्रियांक खड़गे और कार्ति चिंदबरम भी सनातन के विरोध में बयान दे चुके हैं.

सनातन के विरोध में किसने क्या कहा था...

- पांच राज्यों में चुनाव से पहले तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन के बेटे और डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म की तुलना मलेरिया, डेंगू और कोरोना वायरस से की थी. उदयनिधि ने कहा था, कुछ चीजों को खत्म करना ही होगा जैसे- मच्छर, डेंगू, मलेरिया और कोरोना.इनका विरोध नहीं किया जा सकता. सनातन धर्म भी ऐसा ही है. बताते चलें कि उदयनिधि के दादा और तमिलनाडु के पूर्व सीएम एम करुणानिधि भी हिंदू देवी-देवताओं के अस्तित्‍व पर सवाल उठाते रहे हैं.
- कांग्रेस नेता कार्ति चिदंबरम (पी. चिदंबरम के बेटे) ने कहा, सनातन धर्म एक कास्ट हायरार्कियल सोसायटी के लिए कोड के अलावा और कुछ नहीं है. इसके लिए बैटिंग करने वाले सभी अच्छे पुराने दिनों के लिए उत्सुक हैं. जाति भारत का अभिशाप है. तमिलनाडु में आम बोलचाल की भाषा में 'सनातन धर्म' का अर्थ पदानुक्रमित समाज है. ऐसा क्यों है कि हर कोई जो सनातन धर्म के लिए बल्लेबाजी कर रहा है, वह विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग से आता है, जो 'पदानुक्रम' के लाभार्थी हैं. 
-  कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियांक खड़गे (कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे) ने कहा, कोई भी धर्म जो समानता को बढ़ावा नहीं देता, मानव की गरिमा सुनिश्चित नहीं करता- वह धर्म नहीं है. जो धर्म समान अधिकार नहीं देता या इंसानों जैसा व्यवहार नहीं करता, वह बीमारी के समान है.

यूपी-बिहार पर भी निगेटिव कमेंट....

- हाल ही में डीएमके सांसद दयानिधि मारन का एक वीडियो वायरल हो रहा है. इस वीडियो में दयानिधि कहते दिख रहे हैं कि यूपी और बिहार से तमिलनाडु आने वाले हिंदी भाषी निर्माण कार्य करते हैं या सड़कों और शौचालयों की सफाई करते हैं. उन्होंने कहा, अंग्रेजी वाले आईटी कंपनियों में चले जाते हैं, जबकि हिंदी वाले छोटी-मोटी नौकरियां करते हैं. ये वीडियो 2019 का बताया जा रहा है.
- तेलंगाना में जब कांग्रेस ने चुनाव जीता तो जोश में आए सीएम रेवंत रेड्डी ने के. चंद्रशेखर राव को घेरने के लिए जो बयान दिया, वो एंटी बिहार का संदेश लेकर चला गया. रेड्डी ने केसीआर को बिहार से जोड़ा और कहा, तेलंगाना का डीएनए, बिहार के डीएनए से बेहतर है. 

आम चुनाव में बीजेपी इस बयान को बिहार की अस्मिता से जोड़ने की तैयारी में है. बिहार की राजनीति में जदयू और राजद की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.

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