
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के शिवसेना पर दावे के बीच चुनाव आयोग ने शनिवार को बड़ा फैसला सुनाया. ECI ने शिवसेना के नाम और सिंबल पर अगले आदेश तक के लिए रोक लगा दी है. ऐसे में अंधेरी पूर्व उपचुनाव में दोनों पक्ष फ्री सिंबल्स में से अपनी पसंद प्राथमिकता के आधार पर बता सकेंगे. दोनों पक्ष अपने नाम के साथ चाहें तो सेना शब्द इस्तेमाल कर सकते हैं. शिवसेना के लिए तीर-कमान हमेशा लकी माना जाता रहा है. इससे पहले पार्टी ने जिन चुनाव चिह्नों पर चुनाव लड़ा, अक्सर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. शिवसेना ने पहला चुनाव 1971 में लड़ा था. हालांकि, 1985 में तीर-कमान चुनाव चिह्न मिलने के बाद ही पार्टी को जीत नसीब हो सकी थी.
दरअसल, बाला साहेब ठाकरे ने 19 जून 1966 को शिवसेना की नींव रखी थी. ठाकरे मूल रूप से कार्टूनिस्ट थे और राजनीतिक विषयों पर तीखे कटाक्ष करते थे. शिवसेना यूं तो कई राज्यों में सक्रिय है, लेकिन इसका राजनीतिक प्रभाव महाराष्ट्र तक ही सीमित है. राजनीतिक व्यंग्यकार और कार्टूनिस्ट बाला साहब ठाकरे ने 1966 में शिवसेना का गठन किया, तब कहा गया था कि ये संगठन 80 फीसदी ऊर्जा सामाजिक जागरण में लगाएगा. 20 फीसदी राजनीतिक जागरण में. इसके दो साल बाद शिवसेना ने राजनीतिक दल के तौर पर 1968 में रजिस्ट्रेशन कराया.
1985 में निकाय चुनाव में धनुष और बाण का सिंबल मिला
पहला चुनाव 1971 में लड़ा था, लेकिन तब उसे सफलता नहीं मिली. 1989 के लोकसभा चुनाव में पहली बार शिवसेना का सांसद चुना गया. शिवसेना ने 1971 से 1984 के बीच खजूर का पेड़, ढाल तलवार और रेल का इंजन जैसे चुनाव चिह्न से भी चुनाव लड़े. लेकिन मामला फुस्स रहा. साल 1984 में बीजेपी (BJP) के निशान कमल का फूल पर भी शिवसेना लोकसभा चुनाव लड़ चुकी है. साल 1985 में शिवसेना को मुंबई के नगर निकाय चुनाव के लिए पहली बार धनुष और बाण का सिंबल मिला. तब शिवसेना कांग्रेस की मदद से सत्ता में आई.
1989 से लेकर 2019 तक एनडीए गठबंधन का हिस्सा रही शिवसेना
पहली बार 1989 में शिवसेना के चार सांसद इसी तीर कमान चिह्न पर जीतकर संसद पहुंचे. शिवसेना का निशान दहाड़ता हुआ बाघ देश के मानचित्र पर छा गया. शिवसेना को तीर कमान यानी धनुष बाण रास आ गया था. ये निशान अब पार्टी का स्थायी चुनाव चिह्न बन गया. तब से 2019 तक शिवसेना की धमक केंद्र की एनडीए सरकार और महाराष्ट्र की शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार में तूती बोलती रही. अक्टूबर 2019 में कांग्रेस-एनसीपी के साथ गठबंधन कर महा विकास आघाड़ी सरकार बनाई और इस साल पार्टी में दरार पड़ी. फिर टूट की शुरुआत भी हो गई. आज तीर-कमान अलग अलग हो गए. धनुष भंग हो गया.
बिहार में 2020 के चुनाव में पार्टी को झटका लगा
इतिहास बताता है कि महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव शिवसेना ने पहली बार 1990 में लड़ा, जिसमें उसके 52 विधायक चुनकर आए. पार्टी का निशान दहाड़ता हुआ बाघ राज्यभर में लोगों के दिलो दिमाग में बैठ गया. पार्टी के तेवर और बाला साहब के बोल लोगों के सिर चढ़ कर बोलने लगे थे. उस वक्त शिवसेना के हर दफ्तर पर इसी चिन्ह का इस्तेमाल होता था. लेकिन, सन् 2020 के बिहार विधान सभा चुनाव में शिवसेना को झटका लगा.
झामुमो की वजह से दूसरे चिह्न पर चुनाव लड़े थे उम्मीदवार
पार्टी ने यहां अपने प्रत्याशी तो उतार दिए लेकिन चुनाव चिह्न पर पेंच फंसा. यहां पहले से झारखंड मुक्ति मोर्चा उसी धनुष बाण, उसी मुद्रा के चुनाव चिह्न पर मैदान में ताल ठोक रहा था. आयोग ने स्थानीय और पुराना होने की वजह से झारखंड मुक्ति मोर्चा का निशान रहने दिया, लेकिन शिवसेना को तुरही बजाता आदमी चुनाव चिह्न पर अपने उम्मीदवार उतारने पड़े. इस चुनाव में शिवसेना का एक भी उम्मीदवार नहीं जीत पाया.
साल 1989 में शिवसेना ने अपना मुखपत्र सामना लॉन्च किया और इसी साल शिवसेना को धनुष और बाण हमेशा के लिए चिन्ह के तौर पर मिल गया, तब से लेकर अब तक शिवसेना इसी सिंबल पर चुनाव लड़ती आ रही है.