
असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का सोमवार को निधन हो गया है. गोगोई ने गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली. गोगोई के निधन से कांग्रेस को असम में एक बड़ा सियासी झटका लगा है. तरुण गोगोई ने सियासत में पचास साल की एक लंबी पारी खेलकर दुनिया को अलविदा कहा है. वो इंदिरा गांधी की लहर में पहली बार 1971 में सांसद पहुंचे थे, लेकिन अपने इस सियासी सफर में असम में सबसे ज्यादा लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे. असम से लेकर दिल्ली तक उनकी तूती बोलती थी.
उग्रवाद की समस्या से जूझते असम को अवसरों की धरती में बदलने का श्रेय तरुण गोगोई को जाता है. वह गोगोई ही थे, जिनके कार्यकाल में कॉरपोरेट ने असम की धरती पर कदम रखा. लगातार पंद्रह साल तक मुख्यमंत्री रहे, प्रदेश को पहचान दिलाई, पर अपनी सरकार के नंबर दो के नंबर एक बनने की राह में बाधा बनना उन्हें भारी पड़ा और हेमंत बिस्वा सरमा को गंवाने की कीमत उन्हें अपनी सरकार गंवाकर चुकानी पड़ी.
बता दें कि असम के मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई का जन्म 1 अप्रैल 1936 को असम के जोरहाट जिले के रंगाजन टी एस्टेट में हुआ था. उनके पिता डॉ कमलेश्वर गोगोई रंगाजन टी एस्टेट में डॉक्टर थे. वहीं उनकी माता ऊषा गोगोई कवयित्री थीं. उनके माता-पिता उन्हें प्यार से पुनाकोन कहा करते थे. तरुण गोगोई ने सिसायत में 50 के दशक में कदम रख दिया था, लेकिन सियासी तौर पर पहली बार 1968 में जोरहाट के म्युनिसिपल बोर्ड के सदस्य चुने गए.
6 बार रहे लोकसभा सांसद
तरुण गोगोई 6 बार कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा सांसद रहे, लेकिन पहली बार 1971 में इंदिरा गांधी की लहर में सांसद चुने गए और फिर पलटकर नहीं देखा. सियासी बुलंदी पर सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ते चले गए. साल 1971 से 85 तक वह जोरहाट लोकसभा सीट से जीते. इसके बाद 1991 से 96 और 1998-2002 तक उन्होंने कलियाबोर सीट का प्रतिनिधित्व किया. फिलहाल इस सीट से उनके बेटे गौरव गोगोई सांसद हैं.
तरुण गोगोई का कद उस वक्त बढ़ा जब साल 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अगुआई में वह ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के जॉइंट सेक्रेटरी चुने गए. साल 1985 से 1990 तक वह पार्टी के महासचिव भी रहे. तब प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे. जब पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने कैबिनेट में (1991-96) खाद्य प्रसंस्करण राज्यमंत्री का कार्यभार संभाला.
असम प्रदेश कांग्रेस को भी संभाला
वह 1986 से 90 तक असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे. इसके बाद 1996 में वह दोबारा इस पद के लिए चुने गए. गोगोई चार बार विधायक भी रहे. उन्होंने सबसे पहले मार्गेरिटा विधानसभा क्षेत्र से (1996-98) जीत हासिल की. इसके बाद 2001 से वह तिताबर विधानसभा सीट से चुने जाते रहे.
साल 2001 में हुए विधानसभा चुनावों में जब कांग्रेस ने शानदार जीत हासिल की तो तरुण गोगोई को मुख्यमंत्री बनाया गया. इसके बाद रिकॉर्ड तीन बार वह लगातार सीएम चुने गए. असम में 2001 से लेकर 2016 तक यानी इतने लंबे समय तक कोई दूसरा मुख्यमंत्री नहीं रहा. कांग्रेस हाईकमान से उनके रिश्ते हमेशा बेहतर रहे. यही वजह रही कि हेमंत बिस्वा सरमा और तरुण गोगोई के बीच कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने गोगोई को महत्व दिया. इसके चलते हेमंत बिस्वा सरमा कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में चले गए.
हालांकि, तरुण गोगोई की सरकार में हेमंत बिस्वा सरमा नंबर दो की हैसीयत में रहे. हर बाप की तरह तरुण गोगोई भी अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे और लोकसभा सांसद गौरव गोगोई को सौंपना चाहते थे, इसलिए, हेमंत बिस्वा सरमा कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए, जिसके चलते कांग्रेस को असम में सत्ता भी गवांनी पड़ गई.
2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन के बाद उनके नेतृत्व पर सवाल उठने लगे. असम की 14 लोकसभा सीट से कांग्रेस कुल 3 ही जीत पाई. जबकि बीजेपी ने 7 सीटें जीतीं, जो असम से किसी भी पार्टी द्वारा लोकसभा चुनाव में जीती गईं सबसे ज्यादा सीटें हैं. चुनाव से पहले गोगोई ने ऐलान किया था कि अगर कांग्रेस 14 सीटों में से 7 पर जीत हासिल नहीं कर पाई तो वे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे. गोगोई 2016 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का चेहरा थे, लेकिन मोदी लहर में कांग्रेस को जीत नहीं दिला सके.
मुख्यमंत्री के तौर पर तरुण गोगोई ने सभी को साथ लेकर चलने की कोशिश की. मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने मौलाना बदुरुद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ पार्टी को कभी तरजीह नहीं दी. साल 2016 में पार्टी के अंदर एक बड़ा तबका एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन की वकालत कर रहा था, पर तरुण गोगोई तैयार नहीं हुए. उनकी दलील थी कि इससे प्रदेश में हिंदू-मुस्लिम विभाजन बढ़ जाएगा, लेकिन वक्त और हालात ने ऐसी जगह खड़ा कर दिया था कि वो यूडीएफ के साथ हाथ मिलाने को भी तैयार हो गए थे. इस बार कांग्रेस और यूडीएफ मिलकर चुनाव लड़ने को तैयार है, लेकिन गोगोई नहीं नहीं रहेंगे.