
पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह का आज निधन हो गया. रघुवंश प्रसाद सिंह मौजूदा मुख्यधारा की राजनीति में कुछ गिने-चुने नेताओं में से थे, जो अपनी निजी जिंदगी में भी साफ, बेदाग और बेबाक थे. उन्हें ऐसे राजनेताओं में गिना जाएगा, जिन्होंने ग्रामीण विकास को नया आयाम दिया. अपनी साफ-सुथरी छवि के साथ ही रघुवंश प्रसाद सिंह एक ऐसी योजना को शुरू करने के लिए जाने जाएंगे जिसकी हर कोई सराहना करता है, जिस योजना ने गांवों के ढांचों को बदल दिया. वह योजना है महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा).
रघुवंश बाबू की मनरेगा को लेकर प्रतिबद्धता इस बात से समझी जा सकती है कि वह एम्स में बीमार हालत में भर्ती होने के बावजूद उसकी चिंता करते रहे. वह दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार योजना के जनक थे, जो अंतिम दिन तक उसके विस्तार के बारे में सोचते रहे.
अपने अंतिम दिनों में रघुवंश प्रसाद सिंह ने मनरेगा के मुद्दे पर ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखा था. इसमें उन्होंने मनरेगा में संशोधन करने की बात नीतीश कुमार से कही थी. रघुवंश बाबू जब यूपीए की सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री बने तब उन्होंने ही महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना की शुरुआत की थी.
कैसे शुरू हुआ मनरेगा
मनरेगा योजना के बनने के पीछे की कहानी दिलचस्प है. 2004 में केंद्र में कांग्रेस की वापसी हुई. डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने. सोनिया गांधी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय सलाहकार समिति बनी. इसमें देश के सामाजिक कार्यकर्ताओं को शामिल किया गया. इस समिति ने अपनी पहली ही बैठक में रोजगार गारंटी कानून बनाने का प्रस्ताव पास किया. कानून बनाने की जिम्मेदारी श्रम मंत्रालय को दी गई. श्रम मंत्रालय ने छह महीने में हाथ खड़े कर दिए. बाद में ग्रामीण विकास मंत्रालय को कानून बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गईं.
उस दौरान ग्रामीण विकास मंत्रालय की कमान रघुवंश प्रसाद सिंह संभाल रहे थे. रघुवंश प्रसाद सिंह ने इस कानून को बनवाने और पास कराने में अहम भूमिका निभाई. कहा जाता है कि इस कानून को लेकर उस दौरान कैबिनेट में कई लोग सवाल खड़े कर रहे थे. रघुवंश प्रसाद सिंह ने इस कानून को लेकर कैबिनेट में लंबी बातचीत की और सबको राजी किया. आखिर में रघुवंश बाबू इसे आलमीजामा पहनाने में कामयाब रहे. 2 फरवरी, 2006 को देश के 200 पिछड़े जिलों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना लागू की गई. 2008 तक यह भारत के सभी जिलों में लागू की जा चुकी थी. 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अपनी सत्ता बचाने में कामयाब रही. उस समय राजनीतिक विश्लेषकों का कहना था कि मनरेगा ने कांग्रेस की नाव पार लगा दी.
ग्रामीण युवाओं को उनके गांव में ही रोजगार मुहैया कराने वाली इस योजना के चलते ही शहरों की ओर हो रहा पलायन रुक गया था. राजनीतिक रूप से इसका फायदा यूपीए को मिला और वह दोबारा सत्ता में आई. कोरोना लॉकडाउन के दौरान भी जब प्रवासी श्रमिक अपने घरों को लौटे तो उन्हें रोजगार के विकल्प के तौर पर केंद्र सरकार ने मनरेगा के तहत काम देने का प्रयास किया.