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चरण सिंह-वीपी सिंह से BJP तक, कई सियासी खेमों में रह चुके हैं सत्यपाल मलिक

किसान आंदोलन के समर्थन में सत्यपाल मलिक के खड़े होने से लेकर गोवा में भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाने और जम्मू-कश्मीर डील में अंबानी और आरएसएस नेता का नाम लेने से सियासी बवाल मच गया है. चौधरी चरण सिंह के सानिध्य में अपनी सियासी पारी शुरू करने वाले सत्यपाल मलिक कांग्रेस से लेकर सपा और बीजेपी तक का राजनीतिक सफर तय कर चुके हैं.

मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 26 अक्टूबर 2021,
  • अपडेटेड 3:19 PM IST
  • बीजेपी पर सत्यपाल मलिक के आरोपों की बौछार
  • चौधरी चरण सिंह के सानिध्य में हुई थी सियासी एंट्री
  • कांग्रेस, जनता दल, सपा और बीजेपी में रहे मलिक

मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल ने मलिक इन दिनों बीजेपी सरकार के विपरीत रुख अख्तियार कर रखा है. वो एक के बाद एक ऐसे बयान दे रहे हैं, जो बीजेपी के लिए सिरदर्द बढ़ा रहा है. किसान आंदोलन के समर्थन में सत्यपाल मलिक के खड़े होने से लेकर गोवा में भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाने और अब जम्मू-कश्मीर डील में अंबानी और आरएसएस नेता का नाम लेने से सियासी केंद्र में आ गए हैं. सत्यपाल मलिक पहली बार इस तेवर में नहीं नजर आ रहे हैं बल्कि धारा के विपरीत चलने की अपनी पुरानी छवि को ही दोहरा रहे हैं. 

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छात्र जीवन में ही सियासत में कदम रखा

लोहिया के समाजवाद से प्रभावित होकर बतौर छात्र नेता के रूप में राजनीतिक सफर शुरू करने वाले सत्यपाल मलिक को खरी-खरी कहनी पुरानी आदत है. जाट परिवार से आने वाले सत्यपाल मलिक के पूर्वज यूं तो हरियाणा के हैं, लेकिन सत्यपाल मलिक की पैदाइश वेस्ट यूपी की है. सत्यपाल का जन्म बागपत के गांव हिसावदा में 24 जुलाई 1946 को हुआ था. उनके पिता स्व. बुद्ध सिंह उत्तर प्रदेश के राजस्व विभाग में नायाब तहसीलदार थे और सत्‍यपाल जब दो वर्ष के थे तभी पिता का निधन हो गया. 

पिता के देहांत के बाद सत्यपाल मलिक की मां उन्हें लेकर अपने मायके हरियाणा के चरखी दादरी चली गई थीं. ननिहाल में ही इनकी कक्षा चार तक की शिक्षा हुई थी और फिर बाद में यूपी के बागपत लौट आए और ढिकौली गांव के इंटर कालेज से माध्‍यमिक शिक्षा पूरी कर वह मेरठ कॉलेज पहुंचे, जहां उन्होंने सियासत में कदम रखा. 1968 में मेरठ कॉलेज के छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए.

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चौधरी चरण सिंह के शिष्य

70 के दशक में कांग्रेस विरोध की बुनियाद पर यूपी में नई ताकत बनकर उभर रहे चौधरी चरण सिंह का सत्यपाल मलिक ने साथ पकड़ा. तेज तर्रार और बिना लाग लपेट के अपनी बात कहने वाले सत्‍यपाल मलिक ने पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह के सानिध्य में आकर अपनी सियासत को नई ऊंचाई दी. 1974 में भारतीय क्रांति दल के टिकट पर युवा सत्यपाल मलिक 28 साल की उम्र में विधायक बने और फिर मुड़कर पीछे नहीं देखा. 1977 में इमरजेंसी का विरोध कर सत्यपाल मलिक जेल में रहे.

वक्त के साथ बदलते रहे हैं पार्टियां
1980 से 1985 तक लोकदल से राज्यसभा सांसद रहे, लेकिन उम्र और तजुर्बे से परिपक्व होते वक्त सत्यपाल को जब यह अहसास हुआ कि चौधरी चरण सिंह के साथ उन्हें पश्चिम यूपी की राजनीतिक तक ही सीमित रखेगा, तो वो कांग्रेस विरोध छोड़कर कांग्रेस में ही शामिल हो गए. 1985 से 1989 तक कांग्रेस से राज्यसभा सांसद रहे. इसके बाद अगले ही कुछ सालों के भीतर कांग्रेस के अंदर से ही कांग्रेस के खिलाफ एक नारा गूंजने लगा था, 'राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है.'

बोफोर्स के मुद्दे को लेकर सत्यपाल मलिक राज्यसभा सांसद के पद से त्यागपत्र देकर पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के जनता दल में शामिल हो गए. जनता दल से सांसद बने और वीपी सरकार में मंत्री भी बने. वीपी सिंह के साथ भी लंबी सियासी पारी नहीं खेल सके और लोकदल के दौर से साथी मुलायम सिंह यादव के साथ हो लिए. 1996 में जाट बहुल अलीगढ़ संसदीय सीट से सपा प्रत्याशी के रूप में लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके. 

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सपा के बाद बीजेपी में एंट्री की

सपा के साथ सत्यपाल मलिक लंबी सियासी पारी नहीं खेल सके और 2004 में बीजेपी का दामन थाम लिया. अपने सियासी गुरु चौधरी चरण सिंह के ही पुत्र चौधरी अजित सिंह के खिलाफ बागपत से चुनाव लड़े, पर हार मिली, लेकिन बीजेपी ने उन्हें अपने साथ बनाए रखा और 2012-13 में पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने. 2014 में मोदी सरकार आने के बाद उन्हें 2017 में पहले बिहार का राज्यपाल बनाया गया और फिर वो जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बने. 

सत्यपाल मलिक 23 अगस्त 2018 से 30 अक्टूबर 2019 में जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल रहे. उन्होंने जम्मू और कश्मीर में से अनुच्छेद 370 व 35 ए को हटाने में अहम भूमिका निभाई. सत्यपाल मलिक तीन नवंबर 2019 में गोवा के राज्यपाल बनें, लेकिन बहुत दिन नहीं रह सके. इसके बाद 18 अगस्त 2020 से सत्यपाल मलिक मेघालय के राज्यपाल हैं. इन दिनों वो खुलकर बीजेपी सरकार के खिलाफ आक्रामक रुख अपना रखा है. किसान आंदोलने के समर्थन में खड़े होने से लेकर गोवा में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सवाल खड़े करने और जम्मू-कश्मीर में डील कराने में अंबानी और आरएसएस नेता के नाम लेकर सियासी तापिश बढ़ा दी है. 


 

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