
गुजरात चुनाव अपने निर्णायक मोड़ पर आ गया है. कल पहले चरण की वोटिंग होने जा रही है. लेकिन उस वोटिंग से ठीक पहले एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. ये विवाद चुनावी चंदे को लेकर है और कांग्रेस द्वारा बीजेपी पर आरोप लगा दिया गया है. असल में देश के आठ राष्ट्रीय दलों में से चार की आय-व्यय रिपोर्ट निर्वाचन आयोग ने सार्वजनिक की है. आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल 2021-22 में केंद्र और कई राज्यों में सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी को 614.53 करोड़ रुपये चंदे के तौर पर मिले. अब कांग्रेस ने बीजेपी को मिले इस चंदे पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं.
चुनाव आयोग के पास क्यों गया कांग्रेस?
चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटा कांग्रेस ने कहा है कि वोटिंग पैटर्न को प्रभावित करने के लिए बीजेपी ऐसे हथकंडों का इस्तेमाल करती है. इस वजह से कोई लेवल प्लेइंग नहीं बची है, कहीं कोई समानता नहीं चल रही है. कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने तो इसे वसूली करार दे दिया है. वे कहते हैं कि कांग्रेस जो 137 साल से भी ज़्यादा पुरानी है, उसको कितना पैसा मिला है ? भाजपा को शायद 6 गुना ज़्यादा पैसा मिला है , ये तो वो पैसा है जो उन्होंने चेक के माध्यम से लिया है. विधायकों को खरीदने में, सरकार गिराने में जिस पैसे का इस्तेमाल होता है, उसका तो कोई स्त्रोत ही नहीं है. वो तो सारा पैसा अनअकाउंटेड है. राहुल गांधी बिल्कुल ठीक कहते हैं कि ये लोग मनी ट्रांसफर स्कीम चला रहे हैं जहां पर गरीबों से पैसा लिया जाता है और अमीरों को दे दिया जाता है.
चुनाव आयोग की रिपोर्ट में क्या है?
दूसके कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रसाद ने तो यहां तक कह दिया है कि बीजेपी चुनावी चंदे के लिए पुरखों की संपत्ति बेच रही है. जोर देकर कहा गया कि बीजेपी लोगों को डरा धमका कर वसूली कर रही है. अब जानकारी के लिए बता दें कि आठ राष्ट्रीय दलों में से चार की आय-व्यय रिपोर्ट जो निर्वाचन आयोग ने सार्वजनिक की है, उसमें कांग्रेस को सिर्फ 95.86 करोड रुपये बतौर चंदे में मिले हैं. यानी कि बीजेपी को उससे 6 गुना ज्यादा चंदा मिला है. दूसरी पार्टियों की बात करें तो आम आदमी पार्टी को 44.54 करोड़ रुपये मिले हैं, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को 43 लाख रुपये प्राप्त हुए हैं, वहीं केरल में सत्तारूढ़ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी (सीपीएम) को 10 करोड़ पांच लाख रुपये का चंदा मिला है. यहां ये समझना भी जरूरी है कि जब चंदा किसी पार्टी को 20 हजार से ज्यादा मिलता है, तब ही उसका ब्योरा चुनाव आयोग को दिया जाता है. ऐसे में चंदे को लेकर असल आंकड़े और बड़े हो सकते हैं.