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पंजाब-दिल्ली में क्या होगा? AAP का सवाल आखिर कब तक टालता रहेगा INDIA गठबंधन

इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक में सीट शेयरिंग के लिए 31 दिसंबर तक की डेडलाइन तय की गई. 19 दिसंबर की बैठक में ये निर्णय हुआ और 20 दिसंबर से अरविंद केजरीवाल विपश्यना में चले गए जहां उन्हें 30 दिसंबर तक रहना है. अब सवाल ये उठ रहे हैं कि दिल्ली और पंजाब में क्या होगा?

इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 21 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 9:20 AM IST

विपक्षी इंडिया गठबंधन में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच तालमेल कैसे बनेगा? ये सवाल शुरुआत से ही उठते रहे हैं. सवाल उठते रहे हैं सीट शेयरिंग को लेकर भी. पंजाब की सियासत की दो मुख्य प्रतिद्वंदी पार्टियां 13 सीटों का गणित कैसे सुलझाएंगी, दिल्ली की सात सीटों पर तालमेल कैसे होगा? हाल के दिनों में ये सबसे बड़ा सवाल रहा है. इंडिया गठबंधन की दिल्ली में हुई चौथी बैठक में सीट शेयरिंग को लेकर बातचीत की गाड़ी आगे बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही थी.

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दिल्ली बैठक के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने जो कहा, उसे कुछ वैसे ही देखा जा रहा है जैसे इंडिया गठबंधन आम आदमी पार्टी से जुड़े दिल्ली-पंजाब में सीट शेयरिंग के सवाल टाल रही हो. इंडिया गठबंधन की बैठक में सीटों को लेकर सहमति बनाने के लिए 31 दिसंबर की डेडलाइन तो तय की गई लेकिन यह होगा कैसे? खड़गे ने कहा कि पहले राज्य स्तर पर सीटों का मसला सुलझाने की कोशिश होगी और वहां बात नहीं बन पाई तब इसे दिल्ली में सुलझाया जाएगा. उन्होंने साथ ही ये भी कहा कि दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में जहां दिक्कत है, वहां समस्या कैसे सुलझाना है, ये बाद में तय किया जाएगा.

इधर खड़गे का ये बयान आया और उधर पंजाब में बयानबाजियां तेज हो गईं. पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग ने कहा है कि हमें अब तक तो नेतृत्व ने यही कहा है कि सभी सीटों पर चुनाव लड़ना है. राजा वडिंग के बयान, इंडिया गठबंधन की बैठक से पहले आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल भी पंजाब पहुंचे थे. अरविंद केजरीवाल ने भी पंजाब की जनता से सभी सीटें आम आदमी पार्टी को देने की अपील की थी. आम आदमी पार्टी जनता से हर सीट पर जीत दिलाने की अपील कर रही है, पंजाब कांग्रेस हर सीट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. ऐसे में दोनों दलों के बीच समझौता कैसे होगा? इंडिया गठबंधन आम आदमी पार्टी के सवाल कब तक टालता रहेगा?

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ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं, क्योंकि इधर सीट शेयरिंग के लिए 31 दिसंबर तक की डेडलाइन तय हुई है तो वहीं उधर अरविंद केजरीवाल विपश्यना पर चले गए हैं. 19 दिसंबर को इंडिया गठबंधन की मीटिंग हुई और 20 दिसंबर को अरविंद केजरीवाल विपश्यना शिविर के लिए पंजाब के होशियारपुर जिले के महिलावली गांव स्थित धम्म ध्वज विपश्यना साधना केंद्र के लिए रवाना हो गए. केजरीवाल 30 दिसंबर तक विपश्यना में रहेंगे. ऐसे में ये सवाल और भी गहरा हो गया कि आम आदमी पार्टी का सबसे बड़ा नेता ही जब बातचीत के लिए उपलब्ध नहीं होगा तब फिर सीट शेयरिंग पर निर्णायक बातचीत कैसे संभव होगी?

दिल्ली-पंजाब में क्या दिक्कत है?

दिल्ली और पंजाब उन राज्यों में से हैं जिन्हें गठबंधन के लिए सबसे कम संभावना वाले राज्यों की लिस्ट में रखा जाता रहा है. इन दोनों ही राज्यों में एक कॉमन बात ये है कि कांग्रेस को सत्ता से हटाकर आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाई. कांग्रेस की लोकल लीडरशिप आम आदमी पार्टी के साथ आने को तैयार नहीं तो वहीं इन राज्यों की सत्ताधारी केजरीवाल की पार्टी भी कांग्रेस को सीटें देने के मूड में नजर नहीं आ रही. कहा तो ये भी जा रहा है कि केजरीवाल की पार्टी ने एक तरह से अपना स्टैंड क्लियर कर दिया है कि हम पंजाब में कांग्रेस को सीट नहीं देंगे. पंजाब में दोनों दलों का साथ आम आदमी पार्टी के सरकार बनाने के बाद कांग्रेस नेताओं के खिलाफ ताबड़तोड़ एक्शन ने भी मुश्किल की है. 

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क्या कहते हैं जानकार?

राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने इंडिया गठबंधन की अप्रोच पर ही सवाल उठाते हुए कहा कि मुश्किल सवाल आप अधिक देर तक नहीं टाल सकते. बीजेपी की रणनीति देखें तो वह सबसे पहले मुश्किल सवाल सुलझाते हैं और बाद में उनकी ओर जाते हैं जहां समस्याएं कम हैं. इंडिया गठबंधन के इस अप्रोच का कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है. इस गठबंधन में विरोधाभास बहुत हैं और अगर विपक्ष मजबूती से 2024 के चुनाव में उतरना चाहता है तो उसे ऐसे विरोधाभास को लेकर जल्द तस्वीर साफ करनी होगी. 

कहा ये भी जा रहा है कि इंडिया गठबंधन कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के विरोधाभास से मुंह मोड़ रहा है. जल्द फैसले से कम से कम कार्यकर्ता मानसिक तौर पर तैयार रहेंगे कि गठबंधन में जाना है या अकेले चुनावी तैयारी करनी है और नेतृत्व भी. फैसले में देरी का असर ये होगा कि नेता और कार्यकर्ता कनफ्यूज रहेंगे ही, गठबंधन की स्थिति में भी तालमेल बना पाना और वोट ट्रांसफर भी मुश्किल होगा.

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