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BJP से निपटने की रणनीति, INDIA गठबंधन को एक रखने की चुनौती... कांग्रेस के सामने अब आगे का रास्ता क्या है?

देश लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा है और कांग्रेस के साथ ही इंडिया गठबंधन के सामने सीट शेयरिंग से लेकर बीजेपी की मजबूत चुनौती से पार पाने तक, चुनौतियां ही चुनौतियां हैं. गठबंधन को एकजुट रखने की चुनौती भी है. ऐसे में कांग्रेस के सामने अब आगे का रास्ता क्या होगा?

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बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 28 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 5:00 PM IST

राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में कांग्रेस को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. कांग्रेस तेलंगाना में चुनावी बाजी जीतकर सरकार बनाने में जरूर सफल रही लेकिन वह दक्षिण भारत का राज्य है. हिंदी बेल्ट में करारी हार से कांग्रेस बैकफुट पर है. लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को मजबूत चुनावी चुनौती देने के लिए इंडिया गठबंधन के बैनर तले एक मंच पर 28 विपक्षी पार्टियां आईं. इस गठबंधन की धुरी कांग्रेस ही है. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव के दौरान भी बीजेपी और कांग्रेस की ही सीधी फाइट होनी है. ऐसे में कांग्रेस के सामने अब क्या चुनौतियां हैं? इसे लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है.

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I.N.D.I.A. गठबंधन को एक रखने की चुनौती

पटना में हुई विपक्षी पार्टियों की पहली बैठक में नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ड्राइविंग सीट पर थी. दूसरी बैठक से पहले कर्नाटक के चुनाव नतीजे आए जिसमें कांग्रेस को जीत मिली थी. कर्नाटक नतीजों के बाद कांग्रेस इस गठबंधन की ड्राइविंग फोर्स बन गई लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है. हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में हार के बाद इंडिया गठबंधन में कांग्रेस की बारगेनिंग पावर क्या होगी? इसे लेकर भी अटकलों और कयासों का दौर चल रहा है. इन सबके बीच अब इंडिया गठबंधन के सामने सीट शेयरिंग के लिए किसी फॉर्मूले पर पहुंचने की चुनौती भी आ खड़ी हुई है.

इंडिया गठबंधन के नेताओं ने सीट शेयरिंग को लेकर फैसले के लिए 31 दिसंबर की डेडलाइन तय की है. अखिलेश यादव यह साफ कह चुके हैं कि यूपी में इंडिया गठबंधन का नेतृत्व समाजवादी पार्टी करेगी तो वहीं बिहार में भी सीट बंटवारे का फॉर्मूला क्या हो और कैसे सभी गठबंधन सहयोगी इस पर सहमत होंगे? पश्चिम बंगाल में भी टीएमसी और लेफ्ट किस तरह से एक मंच पर आ पाएंगे? ये सवाल बना हुआ है. सीटों का पेच पंजाब और दिल्ली में भी है. कहा जा रहा है कि कांग्रेस के लिए फिलहाल लोकसभा चुनाव तक गठबंधन की एकजुटता बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती है.

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I.N.D.I.A. गठबंधन का चेहरा कौन होगा

इंडिया गठबंधन में शामिल पार्टियां भी बार-बार गठबंधन के चेहरे की बात उठा तो रही हैं, लेकिन घटक दलों के शीर्ष नेताओं की चार बैठकों के बाद भी चेहरे पर छाई धुंध नहीं छंट पाई है. दिल्ली की चौथी बैठक में टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम का प्रस्ताव रखा. अरविंद केजरीवाल ने भी इसका समर्थन किया लेकिन खुद खड़गे ने ही इस प्रस्ताव को यह कहकर एक तरह से टाल दिया कि पहले अधिक से अधिक सांसदों को जीत दिलाकर संसद में लाएं. प्रधानमंत्री पर फैसला बाद में भी हो जाएगा. ममता के इस प्रस्ताव से नीतीश कुमार के नारज होने की खबरें आईं तो वहीं एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने भी यह कह दिया है कि 1977 के चुनाव में भी विपक्ष प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित किए बिना ही चुनाव में उतरा था और जीत पाई थी.

बात केवल प्रधानमंत्री उम्मीदवार तक ही सीमित नहीं है. बहस का विषय गठबंधन संयोजक की खाली कुर्सी भी है. इंडिया गठबंधन ने घटक दलों के बीच सामंजस्य बनाए रखने के लिए कोऑर्डिनेशन कमेटी जरूर बनाई है. लेकिन संयोजक का सवाल है कि पीछा नहीं छोड़ रहा. संयोजक नहीं बनाए पर नीतीश कुमार की नाराजगी की खबरें आती हैं तो कभी शिवसेना यूबीटी की ओर से सारथी की बात. दिल्ली की बैठक से पहले शिवसेना यूबीटी ने मुखपत्र सामना के संपादकीय में लिखा था कि रथ तैयार है, घोड़े तैयार हैं लेकिन सारथी कहां हैं?

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पीएम कैंडिडेट से लेकर संयोजक तक, अगर कांग्रेस और इंडिया गठबंधन किसी चेहरे को आगे करने से परहेज कर रहे हैं तो उसके पीछे सामूहिक नेतृत्व के फॉर्मूले को वजह बताया जा रहा है. कहा ये भी जा रहा है कि लोकप्रियता से लेकर भाषण शैली तक, प्रधानमंत्री मोदी के बराबर कद के नेता का विपक्षी खेमे में अभाव है और इसीलिए विपक्षी गठबंधन प्रेसीडेंशियल स्टाइल वाली बीजेपी की पिच पर उतरने से परहेज कर रहा है.

दक्षिण के राज्य और क्षेत्रीय दलों के सवाल

दक्षिण के राज्यों में 130 लोकसभा सीटें हैं जिनमें से 29 बीजेपी के पास हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कर्नाटक की 28 में से 25 और तेलंगाना की 17 में से चार सीटें जीती थीं. तब कर्नाटक में बीजेपी और तेलंगाना में बीआरएस की सरकार थी. इन दोनों ही राज्यों में अब कांग्रेस की सरकार है. कांग्रेस की रणनीति इन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव में मिली जीत के मोमेंटम को लोकसभा चुनाव में भी बरकरार रखने और सहयोगी दलों के साथ मिलकर 130 में से अधिक से अधिक सीटें जीतने की होगी. कांग्रेस के सामने केरल में प्रतिद्वंदी लेफ्ट पार्टियों के साथ सामंजस्य का भी सवाल होगा. इंडिया गठबंधन में दोनों ही दल शामिल हैं लेकिन केरल की एक सीट पर हुए उपचुनाव में दोनों ही पार्टियों के उम्मीदवार एक-दूसरे को चुनौती देते नजर आए थे.

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हिंदी बेल्ट में बीजेपी से पार पाने के लिए क्या होगी रणनीति

हिंदी बेल्ट के उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे राज्यों में कांग्रेस के सामने बीजेपी से पार पाने की चुनौती है. यूपी की अमेठी सीट पर 2019 में कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी भी हार गए थे और सूबे में पार्टी एक सीट पर सिमट गई थी. राजस्थान और मध्य प्रदेश में तब सत्ता में रहते हुए भी कांग्रेस एक-एक सीट ही जीत सकी थी जबकि छत्तीसगढ़ में पार्टी को 11 में से दो सीटें मिली थीं. बिहार में भी कांग्रेस एक ही सीट जीत सकी थी. 2019 के लोकसभा और हाल के विधानसभा चुनाव में हिंदी बेल्ट में बीजेपी के प्रभुत्व को देखते हुए सवाल ये भी है कि कांग्रेस इससे पार पाने के लिए क्या रणनीति अपनाती है? ऐसा इसलिए भी है क्योंकि राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी फाइट रहती है.

यूपी, बिहार, बंगाल में अधिक सीटों के लिए क्या रणनीति

यूपी, बिहार, बंगाल जैसे राज्यों में गठबंधन सहयोगियों से अधिकतम सीटें पाने के लिए क्या रणनीति बनाएगी? इन राज्यों में सपा, जेडीयू, आरजेडी, टीएमसी जैसी पार्टियां अधिकतम सीटें अपने पास ही रखना चाहेंगी. इस स्थिति में कांग्रेस के पास इन राज्यों में अपनी उपस्थिति बनाए रखने के लिए  क्या तरीका होगा? कहा ये भी जा रहा है कि कांग्रेस की रणनीति यह हो सकती है कि सीट शेयरिंग के समय जीती सीटों के साथ ही रनरअप फॉर्मूले पर भी ध्यान दिया जाए.  

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सॉफ्ट हिदुत्व,राम मंदिर पर कांग्रेस का रुख क्या होगा?

हाल के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस भी सॉफ्ट हिंदुत्व की राह चलती नजर आई है. कर्नाटक चुनाव में जब बीजेपी बजरंगबली को लेकर कांग्रेस पर हमलावर थी, कांग्रेस की ओर से पूरे प्रदेश में हनुमान मंदिर बनाने का ऐलान कर दिया गया. पार्टी की जीत के लिए इसे भी श्रेय दिया गया था. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलती नजर आई. हालांकि, इन राज्यों में कमलनाथ और भूपेश बघेल के दांव कांग्रेस को जीत नहीं दिला सके. अयोध्या के नवनिर्मित राम मंदिर में 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और सोनिया गांधी को भी इसके लिए आयोजकों ने न्यौता भेजा है. ऐसे में देखना होगा कि बीजेपी की सियासत का आधार रहे राम मंदिर को लेकर कांग्रेस का रुख क्या रहता है?

न्याय यात्रा को लेकर क्या है कांग्रेस का प्लान

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पूर्वोत्तर के मणिपुर से पश्चिमी भारत के मुंबई तक न्याय यात्रा पर निकलेंगे. पूर्व से पश्चिम तक भारत जोड़ो यात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत के लिए कांग्रेस ने मणिपुर को चुना है. मणिपुर में मैतेई और कुकी के बीच भड़की हिंसा को लेकर कांग्रेस केंद्र सरकार पर हमलावर रही है. वहीं, जातिगत जनगणना की मांग को लेकर भी पार्टी पिछले कुछ समय से मुखर रही है. कांग्रेस ने राहुल गांधी की यात्रा के लिए मणिपुर को ही चुना है. 6200 किलोमीटर लंबी यह यात्रा मणिपुर, नगालैंड, मेघालय, असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र समेत कुल 14 राज्यों के 85 जिलों को कवर करेगी.

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संगठन को मजबूत करने के लिए क्या करेगी?

कांग्रेस ने भी ऐसा माना है कि पार्टी का संगठन कमजोर हो चुका है. जमीनी स्तर पर चुनौतियां और भी बड़ी हैं, खासकर तब और भी ज्यादा जब मुकाबला बीजेपी जैसी कैडर बेस्ड पार्टी से हो. कांग्रेस जमीनी स्तर पर संगठन का ढांचा मजबूत करने के लिए सक्रियता बढ़ाने के मंत्र पर चलती नजर आ रही है. उत्तर प्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के नेतृत्व में पार्टी पहले से ही यूपी जोड़ो यात्रा निकाल रही है. अब राहुल गांधी की यात्रा का कार्यक्रम आ गया है. देखना होगा कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा 2.0 कही जा रही यह न्याय यात्रा कांग्रेस के लिए हिंदी बेल्ट में संजीवनी बन पाएगी?

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