
देश में इन दिनों बहुसंख्यक राजनीति और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर छिड़ी बहस के बीच मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड के. संगमा ने एक बड़ी बात कही. ईसाई समुदाय से आने वाले संगमा ने कहा कि निश्चित तौर पर देश में अल्पसंख्यकों के लिए चुनौतियां बढ़ रही हैं. इंडिया टुडे कॉनक्लेव ईस्ट 2022 में इस मुद्दे पर उन्होंने विस्तार से अपनी बात रखी.
जमीन पर अल्पसंख्यकों को हो रही दिक्कत
संगमा ने कहा- मैं लगभग रोजाना ईसाई समुदाय के नेताओं से बात करता हूं, विशेषकर कैथोलिक ईसाइयों से और मेरे सामने कई ऐसी परिस्थितियां सामने आती हैं जहां जमीनी स्तर पर अल्पसंख्यकों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन अल्पसंख्यकों की समस्याओं के दो-तीन पहलू हैं. ?
फ्रिंज एलीमेंट्स बने पहले से पॉवरफुल
कोनराड संगमा ने कहा- इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पूरे देश में एक माहौल है, फ्रिंज एलीमेंट्स हैं. पूरे देश में अगर ऐसा किसी नीति की वजह से हो रहा है, तो उस विषय पर बहस हो सकती है. लेकिन देश में जो राजनीतिक हालात उभर रहे हैं उसकी वजह से ये फ्रिंज एलीमेंट्स ज्यादा मुखर होकर सामने आ रहे हैं. ऐसा नहीं है कि ये एलीमेंट्स पहले मौजूद नहीं थे, ये पहले भी थे. लेकिन जिस तरह से राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति का व्यवहार बदल रहा है, उससे इन्हें पहल से ज्यादा ताकत मिली है.
इस मामले में किसी पार्टी का सीधा-सीधा नाम लेने से बचते हुए कोनराड संगमा ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में ऐसा नहीं है कि कोई इन एलीमेंट्स को ऐसा करने का निर्देश दे रहा है, लेकिन किसी पार्टी के उभरने से इन लोगों को सामूहिक ताकत मिल रही है. मेरे पास कई ऐसे मामले आते हैं जहां ईसाई समुदाय को सप्रेस किया जाता है, इनमें से कई मामलों को तो मैं निजी तौर पर देखता हूं.
कानून में बदलावों से हो रही परेशानी
जैसे कुछ कानूनों में बदलाव में से अल्पसंख्यकों को दिक्कत हुई है. इनके लागू होने से हजारों लोगों को परेशानी हो रही है. उदाहरण के लिए आप FCRA Act (विदेशी अनुदान विनियमन संशोधन कानून) को ले सकते हैं. इसकी वजह उन हजारों स्कूलों को समस्या आ रही है जिन्हें मिशनरीज चलाया करती थीं. उनको फंड की कमी से जूझना पड़ रहा है और कुछ तो स्कूल बंद होने की कगार पर हैं. मैंने खुद सैकड़ों मामलों में सरकार से अनुरोध किया और उन्हें एक्सटेंशन मिला, लेकिन ऐसे स्कूल देशभर में और भी जगह होंगी. खैर ऐसी परिस्थितियों में अल्पसंख्यकों को भी समझना होगा कि उन्हें एक प्रक्रिया को फॉलो करना है.
आदिवासी राष्ट्रपति बनने से नई पहचान मिलेगी
कोनराड संगमा ने देश में राष्ट्रपति पद के लिए आदिवासी समुदाय से द्रौपदी मुर्मू के चयन पर खुशी जाहिर की. गौरतलब है कि एनडीए ने द्रौपदी को अपना उम्मीदवार बनाया है और उनकी जीत के आसार साफ नजर आ रहे हैं. वहीं कोनराड संगमा के पिता पी. ए. संगमा भी राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी उम्मीदवार रह चुके हैं. एक सवाल के जवाब में कहा कि निश्चित तौर पर आदिवासी समुदाय से राष्ट्रपति बनने पर लोगों को एक नई पहचान मिलेगी. लेकिन निश्चित तौर पर आदिवासी लोगों के लिए ग्रास रूट लेवल पर और भी काम करने की जरूरत है. उन्होंने पूर्वोत्तर में एक प्रेसिडेंट रिट्रीट बनाने का भी सुझाव दिया, इससे लोगों के बीच नेशनल इंटीग्रेशन की भावना बढ़ेगी.
बीजेपी के साथ गठबंधन, लेकिन अपनी पहचान से समझौता नहीं
कोनराड संगमा ने बीजेपी के साथ अपने गठबंधन को लेकर भी बात कही. उन्होंने कहा कि हम साथ हैं, लेकिन कई मुद्दों पर हमारी अलग राय हो सकती है. उन्होंने कहा कि गठबंधन का मतलब ये नहीं है कि हम अपने मूल्यों, विचारधारा और पहचान से समझौता कर लें. इशारों-इशारों में उन्होंने ये भी कहा कि राजनीति में कुछ स्थायी नहीं होता.