
तृणमूल कांग्रेस की फायर ब्रांड नेता महुआ मोइत्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच इगो की लड़ाई होने के सवाल पर जवाब दिया. उन्होंने इसे लड़ाई के बजाय भारत के संघीय ढांचे की खूबसूरती बताया, साथ ही भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर राज्यों को डरा-धमकाकर सरकार चलाने की भी बात कही.
ममता और मोदी दोनों मजबूत नेता
महुआ मोइत्रा ने कहा- अगर कोई व्यक्ति भारत का प्रधानमंत्री है या पश्चिम बंगाल जैसे राज्य का मुख्यमंत्री है तो वो मजबूत नेता होगा और दोनों का मजबूत नेता होना भी चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दोनों मजबूत नेता हैं. रही बात दोनों के बीच तनाव की तो मुझे नहीं लगता कि हमारे संघीय ढांचे में दो नेताओं के बीच तनाव किसी इगो की वजह से आता है. लेकिन हमें ध्यान रखने की जरूरत है कि हमारा संघीय ढांचा यूनियन और फेडरल दोनों का मिश्रण है. ये ढांचा काफी लचीला है और परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि ये किस तरह से काम करेगा. केंद्र की सत्ता में जब कोई ऐसी सरकार आती है जो इस लचीलेपन का फायदा सीमाओं को तोड़ने के लिए उठाती है, संघीय ढांचे में समस्या तब शुरू होती है.
नीति आयोग ने राज्यों का हक छीना!
देश के संघीय ढांचे को पहली चोट साल 2014 में तब लगी, जब मोदी सरकार सत्ता ने योजना आयोग को खत्म कर दिया और नीति आयोग लेकर आए. योजना आयोग की व्यवस्था को हम पिछले 65 साल से अपना रहे थे. जहां गाडगिल फॉर्मूला के हिसाब से राज्यों को अनुदान और राशि का आवंटन किया जाता था.
नीति आयोग के बनने के बाद अनुदान का आवंटन विवेकाधिकार पर होने लगा. वहीं केंद्र सरकार का राजकोषीय मैनेजमेंट काफी खराब रहा है, खासकर के कोरोना महामारी के दौरान, ऐसे में उसने क्या किया उसने सेस बढ़ाया, राज्यों का पैसा रोकना शुरू कर दिया. इसमें भी सबसे बड़ी दिक्कत जीएसटी में राज्यों के हक का पैसा देने में देरी और उसे जब दिया भी तो एक लंबी अवधि के कर्ज के तौर पर. इससे समस्या पैदा हुई.
इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने केंद्र की सभी योजनाओं में राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ा दी और उसका पेमेंट भी लेट करती है. साथ में ब्लैकमेल भी करती है कि अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो ये राशि भी चली जाएगी. मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से राष्ट्रीय विकास परिषद की एक भी बैठक नहीं हुई है. ऐसे में जब संघीय ढांचे के इन सभी स्तंभों को चोट पहुंच रही है, तो पश्चिम बंगाल की मजबूत मुख्यमंत्री जैसा नेता होने से तनाव तो होगा ही.
मेरी काली मां मांस-मदिरा स्वीकार करने वाली
महुआ मोइत्रा ने मां काली के हालिया विवादित पोस्टर को लेकर भी अपनी बात रखी. उन्होंने कहा-आप अपने भगवान को कैसे देखते हैं. अगर आप भूटान और सिक्किम जाओ तो वहां सुबह पूजा में भगवान को व्हिस्की चढ़ाई जाती है, लेकिन यही आप उत्तर प्रदेश में किसी को प्रसाद में दे दो तो उसकी भावना आहत हो सकती है. मेरे लिए देवी काली एक मांस खाने वाली और शराब पीने वाली देवी के रूप में है. देवी काली के कई रूप हैं. अगर आप तारापीठ जाएं तो काली के मंदिर के पास साधु आपको स्मोकिंग करते हुए मिलेंगे. और लोग ऐसी काली की पूजा भी करते हैं. हिंदू होते हुए भी मुझे मेरी काली को मेरे हिसाब से देखने की आजादी है और लोगों को भी होनी चाहिए. आपको अपने भगवान को अपने हिसाब से पूजने की आजादी होनी चाहिए. पूजा का अधिकार पर्सनल स्पेस में रहना चाहिए. जब तक मैं आपके क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं कर रही हूं मुझे नहीं लगता कि इसकी आजादी होनी चाहिए. मुझे काली के इस रूप से कोई परेशानी नहीं है.
नुपूर शर्मा और मोहम्मद जुबैर पर डबल स्टैंडर्ड नहीं
इंडिया टुडे के एक्जीक्यूटिव एडिटर कौशिक डेका के साथ DEMOCRATIC DISCOURSE: Power Reset: The New Structure of Indian Federalism सत्र में जब महुआ से डबल स्टैंडर्ड को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा-मेरे कोई डबल स्टैंडर्ड नहीं हैं. बल्कि इन दोनों मामलों में अंतर करने की जरूरत है. मोहम्मद जुबैर किसी पार्टी का प्रवक्ता नहीं है, वो एक फैक्ट चेकर है. उनके चैनल को इस फेक न्यूज के दौर में सही खबर के लिए कई अवार्ड मिले हैं. जुबैर ने क्या किया, उसने ऋषिकेश मुखर्जी की एक फिल्म 'किसी से ना कहना' का एक फोटो लिया. ये फिल्म 1983 में आई और इसे सेंसर बोर्ड ने पास किया था. उसने इस फिल्म के एक फोटो को 2018 ट्वीट किया. तब से अब तक क्या इस पोस्ट के बाद कोई हिंसा हुई या कहीं दंगा भड़का, जवाब मिलेगा-नहीं. हालांकि इसमें हिंसा भड़काने की क्षमता थी, लेकिन पिछले 4 साल में ऐसा कुछ हुआ नहीं. दूसरा हमें ये भी देखना होगा कि उसके खिलाफ शिकायत किसने की. 2021 में बने एक ट्विटर अकाउंट ने जब जिसका फॉलोअर भी एक था, तो क्या हम दोनों मामलों को एक तराजू में तोल सकते हैं. वहीं नुपूर शर्मा के बयान से क्या हुआ? हिंसा भड़की और लोगों की जान चली गई.