
India Today Conclave Mumbai 2023: इंडिया टुडे कॉन्क्लेव का बुधवार को मुंबई में आगाज हुआ. इस मंच पर पॉलिटिशियन, एक्टर्स से लेकर इकोनॉमिक, बिजनेस और साइंस से जुड़ी तमाम हस्तियों ने शिरकत की. इस दौरान AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी और बीजेपी नेता और सांसद सुशील कुमार मोदी के बीच 'समान नागरिक संहिता' के मुद्दे पर चर्चा हुई.
चर्चा के दौरान सुशील मोदी ने से पूछा गया कि सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड पर ड्राफ्ट कब लेकर आएगी? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा,'मैं कोई टाइमलाइन नहीं बता सकता हूं कि लॉ कमीशन कब अपनी रिपोर्ट देगा. और सरकार कब यूसीसी पर चर्चा के लिए ड्राफ्ट पेश करेगी. लेकिन समस्या बिल्कुल पारदर्शी है. मेरे हिसाब से यूसीसी के कई मु्द्दे हैं, पहला शादी और अधिकार का है. चाहे हिंदू हो या मुस्लिम सभी धर्मों में शादी के लिए एक उम्र सीमा होनी चाहिए. आज देखा जाए तो कोई भी कॉमन उम्र सीमा नहीं है. दूसरा मुद्दा तलाक का है. उसके लिए भी एक सामान्य कानून होना चाहिए. तीसरा मुद्दा शादी के बाद दिए जाने वाले गुजारा भत्ते का है.'
स्त्री-पुरुष में न हो भेदभाव: ओवैसी
सुशील मोदी ने आगे कहा,'चौथा मुद्दा एकल विवाह को लेकर है. चाहे हिंदू हों या मुस्लिम कहीं भी बहुविवाह का प्रचलन नहीं होना चाहिए. पांचवा मुद्दा शादियों के अनिवार्य रजिस्ट्रेशन का है. ये पांच मुद्दे हैं, जो मुझे लगता है कि ड्राफ्ट में होने चाहिए. हमारा मानना है कि स्त्री और पुरुष में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए. स्त्री और पुरुष दोनों को बराबर का अधिकार मिलना चाहिए. महिलाओं को उनका अधिकार मिलना चाहिए.'
सुशील मोदी बोले- शरिया ईश्वरीय कानून नहीं
उन्होंने आगे कहा कि मैं मुस्लिम लॉ का जानकार तो नहीं हूं, लेकिन मुझे जो जानकारी है, उसके हिसाब से शरियत कानून कोई ईश्वरीय कानून नहीं है. इसे ब्रिटिश शासनकाल में तैयार किया गया. और मिल्टन ने हादिया का जो ट्रांसलेशन किया. अगर यह ईश्वरीय कानून होता तो दुनिया के सभी देशों में तीन तलाक और बहुविवाह की अनुमति होती. मुझे लगता है इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है. अब इसकी कोई जरूरत नहीं है.
...तो सरकार को सुधार के लिए आगे आना चाहिए
सुशील मोदी ने आगे कहा कि हिंदू कोड बिल 1955 में आया था. तब मुस्लिम लॉ में कोई बदलाव इसलिए नहीं हो पाया, क्योंकि लोगों ने कहा कि अभी सही समय नहीं आया है. लेकिन मुझे लगता है कि अब समय आ गया है. देश की आजादी को 75 साल हो चुके हैं. अगर मुस्लिम समाज सुधार के लिए आगे नहीं आ रहा है तो ऐसी स्थिति में इसे लागू करने के लिए सरकार को आगे आना पड़ेगा. इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सती है कि एक शादी होनी चाहिए ना की चार. तीन तलाक नहीं होना चाहिए.
ओवैसी बोले- हमें BJP से शरिया नहीं समझना
सुशील मोदी को जवाब देते हुए असदुद्दीन ओवैसी ने कहा,'अगर शरिया कानून की बात की जाए तो हमें बीजेपी से इसे समझने की जरूरत नहीं है. हम अच्छे से जानते हैं कि शरिया कानून क्या है. वो (BJP) शरिया के बारे में कुछ भी नहीं जानते. वो उन अलग-अलग विचारों वाले स्कूलों के बारे में भी नहीं जानते, जो इस्लाम में प्रचलन में हैं. एक मुद्दा यह भी है, जिस पर सुशील मोदी ने चर्चा नहीं की. वह यह है कि ये लोग आदिवासियों को इससे दूर क्यों रख रहे हैं.'
80% हिंदुओं में बाल विवाह का चलन: ओवैसी
ओवैसी ने आगे कहा कि मुस्लिमों में बहुविवाह का प्रचलन सबसे कम है. उन्होंने बिलकिस बानो केस जिक्र करते हुए पूछा कि बीजेपी किस मुंह से लैंगिक समानता की बात कर रही है. उन्होंने कहा कि देश में बहुविवाह करने वालों की तादाद बेहद कम है. यह मोदी सरकार का ही सर्वे है. ओवैसी ने आगे कहा कि 80 प्रतिशत बाल विवाह हिंदुओं में ही होते हैं.
समझ नहीं पाते कैसे मदद करें: फ्लाविया
इसके बाद महिला अधिकार कार्यकर्ता और वकील फ्लाविया एग्नेस ने अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि सभी कानूनों को यूनिफॉर्म ही होना चाहिए. उन्होंने कहा कि परेशानी यह है कि यहां आए दोनों ही प्रवक्ता अपने-अपने धर्म के कानून के बारे में बात कर रहे हैं. इससे पता चलता है कि हमें यूनिफॉर्म सिविल कोड की जरूरत आखिर क्यों है. उन्होंने आगे कहा कि हमारे पास कई हिंदू महिलाएं भी आती हैं, जो दूसरी पत्नी हैं. हम समझ नहीं पाते की कैसे उनकी मदद करें.