
मोदी सरकार ने 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाने का ऐलान किया है. पांच दिन के इस विशेष सत्र का एजेंडा क्या है? इसे लेकर सरकार की ओर से कोई जानकारी नहीं दी गई है. लेकिन इसे लेकर विपक्षी दलों में हलचल बढ़ गई है. इसको लेकर विपक्ष सरकार से सवाल भी पूछ रहा है. इस बीच ये सवाल उठ रहा है कि क्या संसद का अधिवेशन शुरू होने से पहले एजेंडे पर चर्चा के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई जा सकती है? इसको लेकर आजतक ने संविधान के विशेषज्ञों से चर्चा की.
संसद का अधिवेशन शुरू होने से पहले एजेंडे पर चर्चा के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाने की अनिवार्यता संविधान में तो नहीं है. विपक्ष चाहे जो कहे लेकिन संविधान इस बारे में कुछ नहीं कहता है. संविधान के विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 85 में संसद का सत्र आहूत करने से संबंधित सारे नियम कायदे वर्णित हैं. उसमें सत्र बुलाने से पहले विपक्ष सहित सभी राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों या नेताओं की बैठक बुलाने और एजेंडे पर चर्चा करने का जिक्र कहीं भी नहीं है.
द्विदेदी ने आजतक के साथ बातचीत में बताया कि ये एक अघोषित और अलिखित संसदीय परंपरा है जिसका पालन किया जाता रहा है. ये तो संसदीय और विधायी कार्य सुचारु रूप से चलाने के लिए किया जाता है. वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि लोकतांत्रिक परंपरा में विपक्ष की भी बराबर की भूमिका और अहमियत है. लिहाजा सरकार परंपरागत रूप से विपक्ष को होने वाले संसद सत्र में चर्चा के बिंदु यानी एजेंडा बताती है. मकसद तो ये होता है कि सर्वसम्मति ही बन जाए. लेकिन ऐसा न हो तो विपक्ष वैल्यू एड तो कर ही दे.
संविधान के जानकार और सुप्रीम कोर्ट में वकील ज्ञानन्त सिंह के मुताबिक संसद सत्र से पहले सर्वदलीय बैठक बुलाना पॉलिटिकल कट सी यानी संसदीय या राजनीतिक शिष्टाचार है लेकिन संवैधानिक अनिवार्यता नहीं. क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 85 में कहीं भी सर्वदलीय बैठक बुलाने का प्रावधान नहीं है. अनुच्छेद 85 में यह साफ साफ लिखा है कि संसद का सत्र बुलाने की कार्यपालक शक्ति सरकार के पास होगी. साल में कम से कम तीन सत्र होंगे. जरूरत के मुताबिक और भी सत्र सरकार चाहे तो बुला सकती है.