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वो इकलौता चुनाव जिसमें मुलायम सिंह यादव फैमिली के गढ़ करहल से जीती थी बीजेपी

करहल विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी का गढ़ रही है. 1993 में चुनावी डेब्यू के बाद से लेकर अब तक, समाजवादी पार्टी इस सीट पर केवल एक चुनाव हारी है. तब बीजेपी ने करहल में सपा का विजयरथ रोक दिया था.

सपा प्रमुख अखिलेश यादव और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सपा प्रमुख अखिलेश यादव और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 05 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 12:07 PM IST

उत्तर प्रदेश की करहल विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव 2022 में विधायक निर्वाचित हुए थे. हालिया लोकसभा चुनाव में लोकसभा सदस्य निर्वाचित होने के बाद अखिलेश यादव ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. अखिलेश यादव के इस्तीफे से रिक्त हुई सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं.

उपचुनाव में अखिलेश यादव की पार्टी ने मुलायम सिंह यादव के परिवार के ही तेजप्रताप यादव को उम्मीदवार बनाया है. वहीं, सूबे की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इस सीट से मुलायम सिंह यादव के भाई अभयराम यादव के दामाद अनुजेश यादव को उतारा है. मुलायम सिंह यादव के परिवार के बेटे और दामाद की लड़ाई ने यादव बाहुल्य करहल की चुनावी फाइट को रोचक बना दिया है.

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करहल मुलायम सिंह यादव के परिवार का गढ़ रहा है और सपा का किला भेदने की कोशिश में जुटी बीजेपी ने भी इस सीट पर परिवार का सदस्य नहीं तो रिश्तेदार ही सही, परिवार से ही कैंडिडेट दिया है. करहल का चुनावी ट्रेंड सपा के पक्ष में दिख रहा है तो वहीं एक बार इस सीट पर कमल भी खिल चुका है. आइए नजर डालते हैं करहल के चुनावी अतीत पर.

सपा का गढ़ है करहल

साल 1992 में सपा का सियासी मानचित्र पर राजनीतिक दल के रूप में उदय हुआ और 1993 के चुनाव से ही मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि रहा करहल पार्टी का गढ़ बनकर उभरा. साल 1992 के चुनाव में सपा ने करहल सीट से बाबूराम यादव को उम्मीदवार बनाया और जनता ने विजयी बनाकर उन्हें विधानसभा भी भेजा. 1996 के यूपी चुनाव में भी बाबूराम यादव विधानसभा पहुंचने में सफल रहे. सपा ने बतौर सियासी दल यूपी में डेब्यू के बाद शुरुआती दो विधानसभा चुनावों में करहल सीट पर जीत हासिल की लेकिन तीसरे चुनाव में बीजेपी ने हैट्रिक रोक दी थी.

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जब बीजेपी ने रोका था विजयरथ

साल 2002 के यूपी चुनाव में सपा करहल सीट पर हैट्रिक लगाने की कोशिश में थी. पार्टी ने इस सीट पर बाबूराम यादव के बेटे अनिल यादव पर दांव लगाया. वहीं, बीजेपी ने भी करहल की जंग जीतने के लिए पूरा जोर लगा दिया. बीजेपी ने मुलायम सिंह यादव का किला भेदने, सपा का विजयरथ रोकने के लिए यादव कार्ड ही चला.

बीजेपी ने मुलायम सिंह यादव के धुर विरोधी माने जाने वाले दर्शन सिंह यादव के भाई सोबरन सिंह यादव को करहल के रण में कमल निशान पर उतार दिया. कड़े मुकाबले में बीजेपी के सोबरन 925 वोट के नजदीकी अंतर से चुनावी बाजी जीत विधानसभा पहुंचने में सफल रहे थे. यही जीत इस सीट पर बीजेपी के लिए अब तक की इकलौती जीत भी है. इसके बाद से अब तक बीजेपी को करहल में कमल खिलने का इंतजार है.

2007 से ही करहल पर सपा का कब्जा

साल 2007 के यूपी चुनाव से लेकर अब तक इस सीट पर सपा का कब्जा है. 2002 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर जीते सोबरन बाद में सपा में शामिल हो गए थे. सपा ने 2007, 2012 और 2017 में सोबरन सिंह यादव को उम्मीदवार बनाया और वे जीते भी. 2022 के चुनाव में पहली बार करहल सीट से मुलायम सिंह यादव के परिवार के किसी सदस्य ने चुनाव लड़ा. करहल सीट से खुद सपा प्रमुख अखिलेश यादव मैदान में उतरे और चुनावी बाजी जीतकर विधानसभा पहुंचे. अखिलेश यादव लोकसभा सदस्य चुने जाने तक करहल सीट से विधायक और यूपी विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे.

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बीजेपी को जीत की उम्मीद क्यों

करहल सीट पर बीजेपी को जब इकलौती जीत मिली थी, तब भी पार्टी ने यादव कैंडिडेट दिया था- सोबरन सिंह यादव. बीजेपी ने इस बार अनुजेश यादव को उम्मीदवार बनाकर भी यादव कार्ड ही चला है. अनुजेश यादव मुलायम सिंह यादव के परिवार के रिश्तेदार भी हैं, ऐसे में इस सीट पर पार्टी को यादव वोटबैंक में सेंधमारी की उम्मीद है.

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अगड़ी जातियां, वैश्य और ओबीसी के साथ थोड़े-बहुत यादव वोट के सहारे बीजेपी को जीत का भरोसा है. बहुजन समाज पार्टी ने इस सीट पर शाक्य उम्मीदवार उतारा है. यादव वोट बंटे और शाक्य-दलित वोट बसपा के साथ गया तो सपा की चुनावी राह मुश्किल हो सकती है. 

करहल सीट के जातीय समीकरण

करहल विधानसभा सीट के जातीय समीकरणों की बात करें तो यह यादव बाहुल्य सीट है. अनुमानों के मुताबिक करहल विधानसभा क्षेत्र में करीब सवा लाख यादव वोटर हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में दूसरे नंबर पर शाक्य वर्ग के मतदाता हैं जिनकी अनुमानित आबादी करीब 40 हजार है. अनुमानित आंकड़ों के मुताबिक करहल में 30-30 हजार जाटव और राजपूत, 25-25 हजार पाल-धनगर, 18-18 हजार कठेरिया और लोधी के साथ 15-15 हजार ब्राह्मण और मुस्लिम मतदाता हैं.

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