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कर्नाटक: किसके सिर सजेगा काटों भरा ताज? नए मुख्यमंत्री के सामने होंगी ये चुनौतियां

कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा की जगह लेने वाले मुख्यमंत्री के सामने पार्टी के अंदर और बाहर दोनों जगह चुनौती हैं. बीजेपी की छवि को उबारने से लेकर पार्टी के भीतर विभिन्न गुटों को साथ लेकर काम करने और राज्य के जातीय समीकरण साधे रखने तक कई बड़ी चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं.

बीएस येदियुरप्पा बीएस येदियुरप्पा
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 27 जुलाई 2021,
  • अपडेटेड 9:59 AM IST
  • येदियुरप्पा की जगह कौन होगा नया मुख्यमंत्री
  • लिंगायत समुदाय को साधने की चुनौती होगी
  • बीजेपी में गुटबाजी को थामने का चैलेंज होगा

बीएस येदियुरप्पा ने सोमवार को कर्नाटक के मुख्यममंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है, जिसे राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने स्वीकार कर लिया है. येदियुरप्पा की विदाई के साथ ही सियासी फिजां में अब यह सवाल तैरने लगा है कि अगले दो साल के लिए यह कांटों भरा ताज किसके सिर सजेगा. बीजेपी शीर्ष नेतृत्व नए मुख्यमंत्री का नाम तय करने में जुट गया है. 

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कर्नाटक में येदियुरप्पा की जगह लेने वाले मुख्यमंत्री के सामने पार्टी के अंदर और बाहर दोनों जगह चुनौतियां हैं. बीजेपी की छवि को उबारने से लेकर पार्टी के भीतर विभिन्न गुटों को साथ लेकर काम करने और राज्य के जातीय समीकरण साधे रखने तक ऐसी ही कई बड़ी चुनौतियां नए सीएम और पार्टी के सामने मुंह बाए खड़ी हैं.

जातीय संतुलन बनाने की चुनौती
कर्नाटक के मुख्यमंत्री के लिए एक ऐसा चेहरा जो बीजेपी की बदल रही रणनीति पर भी खरा उतरे और बीएस येदियुरप्पा को भी रास आए, यह बड़ी सियासी पहेली है. ऐसा चेहरा जो राज्य में बीजेपी के सबसे प्रभावी समर्थक माने जाने वर्ग लिंगायत को थामकर अपने साथ रख सके और वोक्कालिगा, अनुसूचित जाति, ब्राह्मण सहित तमाम जातियों को आकर्षित कर सके.  

कर्नाटक की राजनीति में बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस का चुनावी जातिगत आधार लगभग बंटा हुआ है. साल 2011 में पद से हटने के बाद येदियुरप्पा की जगह बीजेपी ने वोक्कालिगा समुदाय से आने वाले सदानंद गौड़ा को अपनी पसंद बनाया था. वह दौर था जब येदियुरप्पा पार्टी में संभवत: कोई प्रतिस्पर्धी लिंगायत लीडर नहीं चाहते थे, लेकिन आज के दौर में वह चाहेंगे कि कमान लिंगायत के हाथ में ही रहे. वहीं, दलित सीएम बनाने की मांग भी उठ रही है. 

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येदियुरप्पा की तरह लोकप्रिय हों अगले सीएम
बीजेपी के लिए कर्नाटक महत्वपूर्ण राज्य हैं क्योंकि दक्षिण में इसे भाजपा का प्रवेश द्वार माना जाता है. ऐसे में बीजेपी के लिए फिलहाल बीजेपी के लिए सबसे मुश्किल काम यह है कि वह कर्नाटक के लिए एक ऐसे नेता की तलाश करें जो 78 वर्षीय लिंगायत के मजबूत नेता बीएस येदियुरप्पा की तरह जनता में लोकप्रिय हो. ऐसे में येदियुरप्पा की जगह लेने वाले नेता को अपनी छवि को मजबूत बनाए रखने के साथ-साथ लोकप्रियता भी हासिल करने की चुनौती होगी. 

लिंगायत समुदाय को साधने की चुनौती
लिंगायत समुदाय का कर्नाटक में सबसे ज्यादा दबदबा है., राज्य में सबसे ज्यादा करीब 17 फीसदी आबादी इसी समुदाय की है., इस समुदाय को बीजेपी और येदियुरप्पा का पक्का समर्थक माना जाता है. यह समुदाय समाज में समानता के लिए लड़ने वाले बसवन्ना को देवता मानता है. राज्य में करीब 35 से 40 फीसदी विधानसभा सीटों की हार-जीत का फैसला इस समुदाय के हाथ में है. 

साल 1990 में लिंगायत जाति के लोकप्रिय नेता वीरेन्द्र सिंह पाटिल को कांग्रेस पार्टी ने सीएम पद से हटा दिया था, जिसका खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ा था. ऐसे ही साल 2011 में बीजेपी ने येदियुरप्पा को हटाकर सदानंद गौड़ा को सीएम की कुर्सी सौंपी थी, जिसका खामियाजा भी पार्टी को उठाना पड़ा. ऐसे में नए सीएम के सामने लिंगायत समुदाय को साधकर रखने की बड़ी चुनौती होगी. 

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विभिन्न गुटों को साधने का चैलेंज
कर्नाटक बीजेपी कई गुटों में बंटी हुई है. पार्टी की इसी गुटबाजी के चलते बीएस येदियुरप्पा की सत्ता से विदाई हुई है. बीजेपी शीर्ष नेतृत्व येदियुरप्पा के विकल्प की तलाश में जुट चुका है, लेकिन नए मुख्यमंत्री के सामने सबसे बड़ा चैलेंज सभी को एक साथ लेकर चलने का है. इतना ही नहीं येदियुरप्पा के इशारे पर साल 2019 में कांग्रेस और जेडीएस छोड़कर बीजेपी में आने वाले नेताओं को भी मजबूती के साथ जोड़े रखने की चुनौती है. 

2023 का चुनाव जीतने की चुनौती
कर्नाटक में बीजेपी ने नेतृत्व परिवर्तन ऐसे समय कर रही है, जिसके दो साल के बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने है. नए मुख्यमंत्री के नेतृत्व में साल 2023 का चुनाव लड़ा जाएगा. ऐसे में मुख्यमंत्री के सामने बीजेपी को पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी कराने की चुनौती होगी. बीजेपी ने साल 2011 में सीएम का चेहरे बदलने का दांव चला था, लेकिन कामयाब नहीं रहा है. इससे पहले कांग्रेस भी सीएम बदलने का फॉर्मूला आजमा चुकी है, लेकिन हर बार उसे मात खानी पड़ी. ऐसे में नए मुख्यमंत्री के लिए पार्टी को जीत दिलाना बड़ी चुनौती होगी. 


 

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