
कर्नाटक की चुनावी जंग कांग्रेस ने भले ही फतह कर ली है, लेकिन मुख्यमंत्री पद का फैसला अभी तक नहीं कर सकी है. सीएम की रेस में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार हैं. कांग्रेस दस साल के बाद आज फिर उसी मुकाम पर आकर खड़ी है जैसा 2013 में देखने को मिला था. सिद्धारमैया विधायक दल की बैठक की अग्निपरीक्षा से गुजर कर सत्ता के सिंहासन पर काबिज होने के लिए तैयार बैठे हैं. लेकिन डीके शिवकुमार की नजर भी इसी सीएम की कुर्सी पर टिकी हुई है.
कर्नाटक में आज सब कुछ उसी तरह से हो रहा है, जिस तरह 10 साल पहले हुआ था. बात 2013 के चुनाव की है. कांग्रेस 122 सीटें जीतकर कर्नाटक में बहुमत हासिल किया था, लेकिन सभी के मन में सवाल था कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा? सीएम की रेस में एक तरफ कांग्रेस के दिग्गज नेता मल्लिकार्जुन खड़गे थे तो दूसरी तरफ थे जेडीएस से कांग्रेस में आए सिद्धारमैया. जिन्हें इस पार्टी में आए तब सात साल हुए थे.
10 साल पहले आई थी ऐसी ही नौबत
मल्लिकार्जुन खड़गे उस समय केंद्र में मंत्री थे और सिद्धारमैया ने खुद को कर्नाटक की सियासत तक सीमित कर रखा था. ऐसे में कांग्रेस हाईकमान ने उस समय खड़गे और सिद्धारमैया में किसी एक के नाम पर सीएम की मुहर लगाए जाने के बजाय विधायक दल की बैठक के जरिए नया नेता चुनने जाने का रास्ता निकाला. इसके लिए कांग्रेस विधायकों से सीक्रेट वोटिंग कराई गई.
तब पिछड़ गए थे खड़गे
विधायक दल की बैठक में सिद्धारमैया का पलड़ा भारी पड़ा. कांग्रेस विधायक दल की बैठक में ज्यादातर विधायकों की पसंद सिद्धारमैया बने और वे मुख्यमंत्री बन गए. जबकि, सीएम की रेस में इस तरह खड़गे पीछे रह गए थे. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो सिद्धारमैया कांग्रेस विधायक दल के लोकतांत्रिक तरीके से चुनने जाने वाले पहले नेता हैं, क्योंकि इससे पहले तक कांग्रेस में विधायक दल की बैठक जरूर होती थी, लेकिन फैसला कांग्रेस हाईकमान का ही होता था.
इस बार खड़गे को ही चुनना है सीएम
कर्नाटक की चुनावी जंग कांग्रेस एक बार फिर से जीतने में सफल रही. कांग्रेस 135 सीटें जीतकर भारी बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की है, लेकिन सवाल मुख्यमंत्री का है. इस बार सीएम पद के दो प्रमुख दावेदार हैं- सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार. दोनों ही नेता कर्नाटक की सियासत में खुद को सीमित कर रखे हुए हैं और सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होने की लिए अपनी-अपनी ताकत लगाए हुए हैं.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव नतीजे के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मुख्यमंत्री पद के फैसले के लिए महाराष्ट्र के पूर्व CM सुशील कुमार शिंदे, कांग्रेस के महासचिव जितेंद्र सिंह और पूर्व महासचिव दीपक बाबरिया को ऑब्जर्वर बनाकर भेजा. इसके साथ में कर्नाटक के प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला भी थे.
विधायकों से ली गई राय, लेकिन स्पष्ट नहीं हुई तस्वीर
कांग्रेस विधायक दल की बैठक में वोटिंग कराई गई, जिसमें मुख्यमंत्री के नाम पर पार्टी विधायकों से राय ली गई, लेकिन किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन सकी. हालांकि, पार्टी के ज्यादातर विधायकों की पसंद सिद्धारमैया बने, लेकिन कुछ विधायक डीके शिवकुमार के पक्ष में भी रहे. ऐसे में मुख्यमंत्री पद का फैसला कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे पर छोड़ दिया गया.
दोनों दावेदारों के अपने अपने तर्क
कांग्रेस में एक तबका डीके शिवकुमार के संगठन स्किल को देखते हुए उन्हें कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाने की वकालत कर रहा है. इसके पीछे उनका तर्क है कि सिद्धारमैया नेता प्रतिपक्ष और सीएम दोनों रह चुके हैं. उनकी उम्र भी 73 साल हो चुकी है. ऐसे में डीके शिवकुमार ने प्रदेश अध्यक्ष के पद कर रहकर कांग्रेस को जिस तरह से कर्नाटक में वापसी कराई है, उसे देखते हुए उन्हें सीएम बनाया जाना चाहिए.
वहीं, सिद्धारमैया की कर्नाटक में लोकप्रियता और सियासी अनुभव को देखते हुए कांग्रेस का एक तबका उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की पैरवी कर रहा है. सिद्धारमैया की लोकप्रियता पूरे कर्नाटक क्षेत्र में है. सिद्धारमैया ने कुरुबा जाति के वोट को कांग्रेस के वोट में बदलने के साथ ही ओबीसी और दलित वोटों को मजबूत किया. इससे कांग्रेस में सिद्धारमैया का कद काफी बढ़ गया. मुख्यमंत्री रहते हुए सिद्धारमैया ने कर्नाटक में काफी बदलाव किए जिसके चलते वे राज्य भर में पॉपुलर हैं.
सिद्धारमैया ने कर्नाटक के पावर शेयरिंग के लिए एक फॉर्मूला भी सुझाया है. वे पहले दो साल सीएम रहना चाहते हैं और बाकी के तीन साल डीके शिवकुमार को सीएम बनाना चाहते हैं. इस फॉर्मूले को शिवकुमार ने अस्वीकार कर दिया है. इसके बाद एक मुख्यमंत्री और तीन डिप्टीसीएम का फॉर्मूला सामना आया है, लेकिन अभी तक उस पर भी सहमति नहीं बन पाई है.
माना जा रहा है कि मल्लिकार्जुन खड़गे अब दोनों ही नेताओं के साथ बातचीत करके मुख्यमंत्री के नाम पर रास्ता निकालेंगे. इस तरह मुख्यमंत्री का नाम फाइनल करने से पहले बेंगलुरु में विधायकों की दोबारा मीटिंग होगी और वहीं से इसका ऐलान किया जाएगा. ऐसे में देखना है कि सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार में किस सिर मुख्यमंत्री का ताज सजता है?