Advertisement

2024 के लिए BJP से ज्यादा कांग्रेस के विकल्प बनने में जुटे क्षत्रप?

दक्षिण भारत के तेलंगाना में केसीआर के नेतृत्व में विपक्षी एकता का शक्ति प्रदर्शन किया गया, जिसमें अखिलेश यादव से लेकर अरविंद केजरीवाल, पिनराई विजयन तक ने शिरकत की. केसीआर के मंच पर उन्हीं नेताओं को बुलाया गया था, जो बीजेपी और कांग्रेस दोनों के खिलाफ है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या 2024 के लिए बन रहा थर्ड फ्रंट बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस के लिए चिंता का सबब बनेगा?

केसीआर की रैली में अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल समते कई क्षत्रप केसीआर की रैली में अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल समते कई क्षत्रप
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 19 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 12:19 PM IST

लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी तानाबाना बुना जाने लगा है. पीएम मोदी ने 2024 में सत्ता की हैट्रिक लगाने के लिए अपना एजेंडा सेट कर दिया है तो राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के जरिए माहौल बनाने में जुटे हैं. बीजेपी से 2024 में मुकाबले के लिए कांग्रेस की कोशिशों से अलग बुधवार को केसीआर की अगुवाई में विपक्षी दल के छत्रप नेताओं ने तेलंगाना के खम्मम में एकजुट होकर शक्ति प्रदर्शन किया. ऐसे में क्षेत्रीय दलों की कोशिश अपने विस्तार के साथ-साथ कांग्रेस को यथास्थिति में बनाए रखने की है? 

Advertisement

तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर के नेतृत्व में हुई रैली में सपा प्रमुख अखिलेश यादव से लेकर आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल, भगवंत मान, केरल के सीएम पिनाराई विजयन और सीपीआई नेता डी राजा ने शिरकत की. विपक्षी दिग्गजों के इस जुटान को 2024 के लोकसभा चुनाव में केसीआर के तीसरे मोर्चे और कांग्रेस के विकल्प बनने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि तेलंगाना की रैली में कांग्रेस से जुड़े किसी भी दल के नेता को नहीं बुलाया गया था. हालांकि, केसीआर की रैली में विपक्ष के दो बड़े नेता नीतीश कुमार और ममता बनर्जी नदारद दिखीं. 

केसीआर ने अपनी महत्वाकांक्षा के तहत पिछले महीने अपने दल तेलंगाना राष्ट्र समिति का नाम बदलकर भारत राष्ट्र समिति किया है. इसी कड़ी में अब 2024 के चुनाव में बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता की कवायद तेज कर दी है. उनकी रैली में उन्हीं पार्टी के नेताओं को आमंत्रित किया गया था, जिन्होंने बीजेपी और कांग्रेस से समान दूरी बना रखी है. इसीलिए न तो नीतीश कुमार को बुलाया गया और न ही अपने करीबी लालू प्रसाद के पुत्र तेजस्वी यादव को. इससे समझा जा सकता है कि केसीआर किस तरह से कांग्रेस से अलग-थलग रहकर विपक्षी एकता बनाने में जुटे हैं.  

Advertisement

'सरकार बनने पर अग्निपथ योजना करेंगे खत्म'

केसीआर ने बुधवार को केंद्र सरकार और बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि 'मेक इन इंडिया' पहल 'जोक इन इंडिया' बन गई है. उन्होंने किसानों को मुफ्त बिजली देने के वादे के साथ ही केंद्र में बीआरएस प्रस्तावित सरकार बनने पर सेना में भर्ती के लिए शुरू की गई अग्निपथ योजना को भी खत्म करने का ऐलान किया. 'भाजपा को हटाएंगे, भारत को बचाएंगे' जैसे नारे लगाए गए. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा, 'बीजेपी 399 दिनों के बाद देश की सत्ता से बाहर होगी और 400वें दिन नई सरकार बनेगी.' 

अखिलेश ने कहा कि केसीआर ने खम्मम की इस ऐतिहासिक धरती पर इतनी भारी भीड़ इकट्ठी की है और पूरे देश को एक संदेश दिया है. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने अपने भाषण में कहा, 'अब देश बदलाव चाहता है. लोगों को पता चल गया है कि एनडीए सरकार देश को बदलने नहीं आई है. वे सिर्फ देश को बर्बाद करने आए हैं. वर्ष 2024 का चुनाव आपके (लोगों) लिए एक अवसर है. दस साल होने जा रहे...आप कब तक इंतजार करेंगे? पिनराई विजयन ने कहा, 'मुझे उम्मीद है कि जन प्रतिरोध की भूमि खम्मम में, हमारे एक नए प्रतिरोध की शुरुआत होगी. यह प्रतिरोध हमारी धर्मनिरपेक्षता, हमारे लोकतंत्र और देश की रक्षा के लिए है. 

Advertisement

बीजेपी विरोधी वोटो पर सबकी नजर

खम्मम में मंगलवार को रैली में शामिल होने वाले चारों नेताओं की राजनीति बीजेपी की लाइन से भले ही अलग है, लेकिन कांग्रेस के सियासी आधार पर उनकी सियासत खड़ी है. वह फिर चाहे यूपी में समाजवादी पार्टी हो या फिर दिल्ली-पंजाब में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी. इतना ही नहीं केरल में कांग्रेस और लेफ्ट पार्टी के बीच ही सीधी लड़ाई है. इससे एक बात स्पष्ट है कि सबकी नजर बीजेपी विरोधी वोटों पर है, लेकिन कांग्रेस को साथ लिए बिना. ये सभी छत्रप कांग्रेस को किसी भी सूरत में दोबारा से मजबूत नहीं होने देना चाहते हैं.  

वहीं, राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के जरिए कांग्रेस को फिर से ताकतवर बनाने और अपने खोए हुए सियासी जनाधार को वापस लाने का प्रयास कर रहे हैं. कांग्रेस की नजर यूपी में अपने पुराने वोटबैंक दलित और मुस्लिमों पर है तो तेलंगाना में भी कांग्रेस अपने पुराने मुस्लिम, दलित और रेड्डी वोटों को सहेजने में जुटी हैं. दिल्ली एमसीडी के चुनाव में मुस्लिम वोट कांग्रेस की तरफ लौटे दिखे तो उसका असर आम आदमी पार्टी के नतीजे पर भी पड़ा. 

कांग्रेस की वापसी की बेचैनी साफ दिखाई दे रही है, क्योंकि कांग्रेस का कद जितना बढ़ेगा तो इन सभी चारों क्षेत्रीय दलों का सियासी आधार घटेगा. अखिलेश यादव से लेकर केजरीवाल और केसीआर तक कांग्रेस से दूरी बनाए रखना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें आशंका है कि कांग्रेस को साथ रखने से उसे पुनर्जीवित होने का मौका मिलेगा. इसीलिए इन्हें यह डर है कि अगर उनका आधार कांग्रेस में लौटता है तो उनका राजनीतिक वजूद खतरे में पड़ जाएगा. 

Advertisement

ये चारो ही क्षेत्रीय दलों की कोशिश अपने विस्तार के साथ-साथ कांग्रेस को भी यथास्थिति में रखने की है. दक्षिण भारत में कांग्रेस की स्थिति कमजोर है और बीजेपी का भी उत्तर भारत की तरह प्रभुत्व नहीं है. ऐसे में हिंदी पट्टी के क्षेत्रीय दल अपने लिए संभावना तलाश रहे हैं. आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा मिलने के बाद से अरविंद केजरीवाल की लगातार कोशिश पार्टी विस्तार के लिए नए प्रदेशों की तलाश है. 

AAP कई राज्यों में करना चाहती है विस्तार

अरविंद केजरीवाल ने गुजरात, गोवा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के विधानसभा चुनावों में भी काफी जोर लगाया है और 2023 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. इन राज्यों में उन्हें कांग्रेस के बीच अपने आपको मजबूत करने की रणनीति है. अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश में अपने जनाधार को बचाए रखते हुए अपनी पार्टी का विस्तार भी करना है. केसीआर की रणनीति भी कुछ इसी तरह की है, जिसमें तेलंगाना की सत्ता को बचाए रखते हुए अपना सियासी आधार दूसरे राज्य में बढ़ाना चाहते हैं. 

लोकसभा चुनाव से पहले तेलंगाना में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव है. यहां कांग्रेस ही बीआरएस की मुख्य प्रतिद्वंद्वी है. बीजेपी भी तेलंगाना में अपना आधार बढ़ाने की कोशिश कर रही है. ऐसे में केसीआर राष्ट्रीय स्तर पर किसी ऐसे गठबंधन में शामिल होना चाहते हैं, जिसमें कांग्रेस या बीजेपी शामिल न हो. केसीआर की रणनीति से साफ है कि वह एक ऐसा मोर्चा बनाना चाहते हैं जो बीजेपी के खिलाफ हो, लेकिन उसमें कांग्रेस न शामिल हो. इसीलिए वो ऐसे दलों को साथ लेकर आगे बढ़ रहे हैं, जिनके कांग्रेस के साथ छत्तीस के आंकड़े हों. 

Advertisement

खम्मम में रैली के जरिए सीएम केसीआर ने यह संकेत देने की कोशिश कि वह तेलंगाना में बहुत मजबूत हैं और उन्हें बीजेपी या कांग्रेस के आक्रामक रुख से कोई खतरा नहीं है. वो 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ और कांग्रेस के विकल्प के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर तीसरा मोर्चा बनाने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं.  उन्होंने साफ कर दिया है कि कांग्रेस से इतर देश में एक थर्ड फ्रंट भी है, जो बीजेपी को हराने के लिए तैयार है.

ममता बनर्जी ने रैली से बनाई दूरी

कांग्रेस से इतर थर्ड फ्रंट बनाने की सिफारिश करने वाले नेताओं में ममता बनर्जी का नाम सबसे ऊपर आता है, खम्मम रैली में उन्होंने शिरकत न करके कई सवाल खड़े कर दिए हैं. माना जा रहा है कि ममता बनर्जी केसीआर के नेतृत्व में खड़े हो रहे थर्ड फ्रंट में वामदलों की एंट्री से खफा हैं. क्योंकि, पश्चिम बंगाल में टीएमसी और वामदल की सीधी लड़ाई है. लिहाजा, ममता बनर्जी नहीं चाहती कि थर्ड फ्रंट में वामदल की एंट्री हो. 

वहीं, नीतीश कुमार भी विपक्ष एकता की कवायद कर रहे हैं, जिसमें कांग्रेस को रखते हुए सभी विपक्षी दलों को साथ लाना चाहते हैं, जिस पर न केसीआर तैयार है और न ही अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव. ऐसे में देखना है कि 2024 के चुनाव में कांग्रेस के विकल्प बनने के लिए तेलंगाना से शुरू हुई तीसरे मोर्चे की कवायद कितनी जमीन पर उतर पाती है? 

Advertisement

कांग्रेस महासचिव तारिक अनवर ने कहा कि विपक्ष के जो भी दल बीजेपी को हराना चाहते हैं, वो कांग्रेस को लिए बिना कोई मोर्चा बनाने की कोशिश नहीं करेंगे. कांग्रेस ही एक पार्टी है, जो राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी को जवाब दे रही है और पीएम मोदी से सवाल पूछ रही है. कांग्रेस को अलग थलग कर कोई मोर्चा अगर बनाने का प्रयास होगा तो ये सीधे-सीधे बीजेपी की मदद होगी. विपक्ष का मतलब ही है की सभी लोग इसमें शामिल रहें. नीतीश कुमार और दूसरे नेताओं ने कहा है कि बिना कांग्रेस के कोई मोर्चा नहीं बन सकता है. 

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement