
सिद्धारमैया 20 मई को कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. दक्षिण का द्वार कहे जाने वाले कर्नाटक में कांग्रेस ने 135 सीटों के साथ प्रचंड जीत हासिल की है. 2023 में 5 राज्यों में विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले इस जीत को कांग्रेस के लिए संजीवनी के तौर पर देखा जा रहा है. ऐसे में कांग्रेस ने इस शपथ ग्रहण समारोह को भव्य बनाने के लिए जोर-शोर से तैयारियां भी शुरू कर दी हैं. देशभर की तमाम पार्टियों के नेताओं को निमंत्रण भेजा गया है. कांग्रेस केंद्र में रहकर इस समारोह का विपक्ष के शक्ति प्रदर्शन के तौर पर आयोजन करना चाहती है. कांग्रेस की ओर से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, तेलंगाना के सीएम केसीआर को इसका न्योता नहीं भेजा गया है. माना जा रहा है कि कांग्रेस ने सियासी समीकरणों को देखते हुए इन दलों से दूरी बनाए रखने का फैसला किया है.
कर्नाटक में कांग्रेस की इस जीत ने न सिर्फ बीजेपी को सत्ता से बेदखल किया है, बल्कि देशभर में अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों में जोश भरने का काम भी किया है. कांग्रेस के थिंक टैंक का मानना है कि यह जीत 2024 लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नेताओं में ऊर्जा भरने का भी काम करेगी. कांग्रेस सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण को भव्य बनाकर विपक्षी एकता का भी संकेत देना चाहती है.
कांग्रेस ने इन नेताओं को भेजा निमंत्रण
- बिहार के सीएम नीतीश कुमार
- बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव
- तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन
- झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन
- पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती
- सीपीआई के महासचिव डी राजा
- सीपीआई (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी
- बंगाल की सीएम ममता बनर्जी
- सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव
- एनसीपी प्रमुख शरद पवार
- महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे
- अभिनेता और एमएनएम प्रमुख कमल हासन
कांग्रेस ने इन नेताओं को नहीं भेजा निमंत्रण
- दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल
- तेलंगाना के सीएम केसीआर
- केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन
- आंध्र प्रदेश के सीएम जगनमोहन रेड्डी
- ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक
कांग्रेस ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शपथ ग्रहण में शामिल होने का न्योता नहीं भेजा है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर देशभर में जब सभी विपक्षी दल 2024 चुनाव से पहले एकजुट होने की कवायद में जुटे हैं, तो फिर कांग्रेस AAP से दूरी क्यों बना रही है, जबकि आम आदमी पार्टी की दो अहम राज्यों दिल्ली और पंजाब में सरकार है?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए कुछ राजनीतिक घटनाओं पर ध्यान देना होगा. 2013 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए थे. इससे पहले वहां लगातार 15 साल से कांग्रेस की शीला दीक्षित सत्ता पर काबिज थीं. 2013 में आम आदमी पार्टी ने राजधानी की चुनावी राजनीति में एंट्री की और 28 सीटों पर जीत हासिल की. 2008 में 43 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 8 सीटों पर सिमट गई. 2015 में जब दोबारा चुनाव हुए तो आप का ग्राफ 67 सीटों पर पहुंच गया. बीजेपी को सिर्फ 3 सीटें मिलीं. वहीं कांग्रेस शून्य पर आ गई. 2020 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस अपना खाता नहीं खोल पाई.
- अब दिल्ली से पंजाब का रुख करते हैं. पंजाब में 2017 में हुए चुनाव में 77 सीटें जीतकर कांग्रेस ने सरकार बनाई थी. तब AAP वहां पैर पसार ही रही थी. पार्टी ने उस चुनाव में 20 सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन 2022 आते आते स्थिति पूरी तरह बदल गई. AAP 92 सीटों पर पहुंच गई, तो कांग्रेस सिर्फ 18 पर सिमट गई.
अब गुजरात की बात करते हैं. गुजरात में 2017 में कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी. तब बीजेपी 99 सीटों के साथ सत्ता में आई थी. जबकि कांग्रेस ने 77 सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन 2022 में आम आदमी पार्टी ने भी गुजरात में ताल ठोकी. आप भले ही सिर्फ 5 सीटों पर जीतने में सफल रही, लेकिन सीधे तौर पर उसने कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया. कांग्रेस 17 सीटों पर सिमट गई. 2017 में जहां कांग्रेस को 42.2% वोट मिला था. वही, 2022 में सिर्फ 27% रह गया. आप को 13.1% वोट मिला.
इसी तरह आम आदमी पार्टी ने 2022 गोवा विधानसभा चुनाव में भी दो सीटों पर अपना कब्जा जमाया. इतना ही नहीं पार्टी को 6.8 प्रतिशत वोट भी मिले. AAP ने अन्य राज्यों की तरह ही गोवा में भी कांग्रेस के वोटबैंक में सेंधमारी करके ही अपना राजनीतिक आधार खड़ा किया.
2023 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव होने हैं. इन तीनों राज्यों में AAP लंबे समय से सक्रिय है. ऐसे में कांग्रेस को डर है कि आप कहीं इन राज्यों में भी उसके वोट बैंक में सेंधमारी न कर दे. इसलिए कांग्रेस AAP को बीजेपी की तरह ही प्रतिद्वंदी के तौर पर रखकर मुकाबला करना चाहती है.
पिछले दिनों दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम और AAP में नंबर दो मनीष सिसोदिया की शराब घोटाले में गिरफ्तारी हुई थी. इस गिरफ्तारी के खिलाफ तमाम विपक्षी दलों ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखी थी. लेकिन कांग्रेस ने इससे दूरी बना ली थी. अरविंद केजरीवाल जब अन्ना के आंदोलन से राजनीतिक पार्टी बना रहे थे, तब उन्होंने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस को खूब घेरा. अब जब अरविंद केजरीवाल की पार्टी नेता भ्रष्टाचार के मामले में जेल गए तो कांग्रेस ने इसे भुनाते हुए AAP पर जमकर निशाना साधा.
कांग्रेस ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री और बीआरएस नेता चंद्रशेखर राव (केसीआर) को भी शपथ ग्रहण का न्योता नहीं भेजा है. दरअसल, केसीआर 2024 लोकसभा चुनाव से पहले बिना बीजेपी और बिना कांग्रेस वाले थर्ड फ्रंट बनाने की कोशिशों में जुटे हैं. तेलंगाना में इस साल चुनाव हैं. यहां कांग्रेस का सीधा मुकाबला केसीआर की पार्टी से ही है. 2018 चुनाव में भी कांग्रेस दूसरे नंबर की पार्टी थी. तब केसीआर को 47.4 प्रतिशत वोट के साथ 88 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस 28.7% वोट के साथ 19 सीटें जीती थी. ऐसे में कांग्रेस केसीआर को भी मुख्य विपक्षी के तौर पर ही देखती है. इतना ही नहीं केसीआर ने हाल ही में महाराष्ट्र में अपनी पार्टी के विस्तार का ऐलान किया है. अगर केसीआर अपनी कोशिशों में सफल होते हैं, तो कांग्रेस को राज्य में नुकसान उठाना पड़ सकता है.
इतना ही नहीं राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी कांग्रेस ने तमाम विपक्षी दलों को निमंत्रण दिया था. उस समय भी केसीआर को नहीं बुलाया गया था. इसके बाद केसीआर ने मकर संक्रांति के बाद एक रैली का भी आयोजन किया था, इसमें दिल्ली के CM अरविंद केजरीवाल, पंजाब के CM भगवंत मान, केरल के CM पिनाराई विजयन, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और CPI महासचिव डी. राजा शामिल हुए थे. उन्होंने कांग्रेस को इस रैली के लिए निमंत्रण नहीं भेजा था. इतना ही नहीं रैली में उन्होंने कांग्रेस पर खुलकर निशाना साधा था.
पी विजयन-जगन, पटनायक को न्योता क्यों नहीं?
कांग्रेस ने जिन नेताओं को न्योता नहीं भेजा है, उनमें केरल के सीएम पी विजयन और आंध्र के सीएम जगन मोहन रेड्डी का नाम भी शामिल है. दरअसल, इन दोनों राज्यों में भी कांग्रेस का सीधे तौर पर मुकाबला इन्हीं पार्टियों से होता है. केरल में 2021 में विधानसभा चुनाव में 62 सीटों के साथ CPI(M) सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. पार्टी को 25.5% वोट मिले थे. वहीं, कांग्रेस ने 21 सीटें जीती थीं. जबकि पार्टी को 25.2% वोट मिला था.
उधर, जगन मोहन रेड्डी पीएम मोदी के करीबी भी माने जाते हैं. कई मौकों पर उनकी पार्टी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर संसद में एनडीए सरकार की मदद भी करती है.
- इसी तरह ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक को भी न्योता नहीं भेजा गया है. दरअसल, पटनायक ने हाल ही में विपक्षी एकता की कवायद में लगे बिहार के सीएम नीतीश कुमार से मुलाकात की थी. हालांकि उन्होंने एक दिन बाद ही साफ कर दिया था कि वे किसी गठबंधन में शामिल नहीं होंगे. उन्होंने कहा था कि उनकी पार्टी बीजद लोकसभा और विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी.