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दिल्ली में केजरीवाल का क्लीन स्वीप, गुजरात मोदी के नाम तो हिमाचल में सियासी दुविधा...Exit poll से निकले पांच बड़े सियासी संदेश

गुजरात, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली नगर निगम चुनाव को लेकर सोमवार को वोटिंग खत्म हो गई. इसी के साथ ही Exit Poll भी जारी कर दिए गए. गुजरात में जहां बीजेपी पूरे दम के साथ रिपीट करती दिख रही है, AAP का MCD में कब्जा हो सकता है और हिमाचल में कांटे की टक्कर रहेगी. जानते हैं इन Exit poll से निकले पांच बड़े सियासी संदेश...

गुजरात, हिमाचल प्रदेश और एमसीडी चुनाव के लिए एग्जिट पोल जारी (फाइल फोटो) गुजरात, हिमाचल प्रदेश और एमसीडी चुनाव के लिए एग्जिट पोल जारी (फाइल फोटो)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 06 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 11:14 AM IST

तीन राज्य, अनेक समीकरण... गुजरात-हिमाचल और दिल्ली एमसीडी चुनावों के नतीजों का भले ही इंतजार हो लेकिन एग्जिट पोल ने इन राज्यों में बदले सियासी समीकरणों का संकेत दे दिया है. एग्जिट पोल के मुताबिक गुजरात में बीजेपी अपना दबदबा कायम रखने में सफल रही है तो हिमाचल में कांटे की टक्कर होने के बावजूद सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड देखने को मिल रहा है. दिल्ली में तीनों एमसीडी के विलय के कार्ड के बावजूद बीजेपी बेअसर दिख रही है तो AAP की आंधी बीजेपी के सारे समीकरण फेल करती दिख रही है. 

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एग्जिट पोल के ये आंकड़े अगर चुनाव नतीजों में तब्दील होते हैं तो ये साफ जाएगा कि भविष्य की सियासत का मार्ग किस ओर जाएगा? तीन राज्यों के एग्जिट पोल के बड़े संदेश क्या हैं, किन बदलावों का ट्रेंड दिख रहा है और इनके दूरगामी संकेत क्या हैं हम आपको पांच बड़े सियासी संदेशों को समझाएंगे.

बीजेपी के लिए क्या संदेश

गुजरात में बीजेपी का किला वक्त के साथ और मजबूत होता जा रहा है. यह बात इंडिया टुडे एक्सिस माय इंडिया के एग्जिट पोल के नतीजों ने साबित कर दी. पिछले 27 सालों से काबिज बीजेपी एक बार फिर से गुजरात में रिकॉर्ड तोड़ तरीके से भले ही सत्ता में वापसी करती दिख रही है, लेकिन हिमाचल और दिल्ली एमसीडी की सत्ता उसके हाथों से निकलती नजर आ रही है.

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यह बीजेपी के लिए सियासी तौर पर बड़ा झटका है. हिमाचल में पांच साल से सत्ता में है जबकि दिल्ली एमसीडी में बीजेपी 15 सालों से काबिज थी. इस बार दिल्ली की तीनों एमसीडी का एकीकरण कर चुनाव लड़ी थी. इसके बाद भी बीजेपी अपना वर्चस्व कायम नहीं रख सकी. 

हिमाचल और एमसीडी चुनाव के एग्जिट पोल के सियासी संदेश साफ हैं कि बीजेपी हर चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम और चेहरे पर नहीं जीत सकती है. राज्यों और निकायों को भी काम करना होगा. एक बात साफ है कि पीएम मोदी के नाम पर भीड़ तो जुटा सकते हैं, लेकिन वोट सरकार के काम पर ही मिलेगा.

दिल्ली एमसीडी पर बीजेपी 15 साल से काबिज है, लेकिन अपने काम की उपलब्धि गिनाने के लिए उसके पास कुछ भी नहीं था. दिल्ली की गंदगी, आवारा पशु और कूड़े के पहाड़ को आम आदमी पार्टी ने मुद्दा बनाया, जो बीजेपी के हार का कारण बनी. इसके अलावा बीजेपी के पास केजरीवाल के कद का कोई चेहरा भी नहीं है, जिसके नाम पर वोट मांग सके.

ऐसे ही हिमाचल में  जयराम ठाकुर अपनी सरकार के काम से ज्यादा मोदी के नाम और राष्ट्रीय मुद्दों पर वोट मांग रहे थे.  बीजेपी को यह समझने की जरूरत है कि हर चुनाव पीएम मोदी के चेहरे पर नहीं जीता जा सकता. जनता यह बात जानती है कि विधानसभा और निकाय चुनाव में पीएम मोदी न तो जीतकर उनका नेतृत्व करने वाले हैं और ना ही नगर निकाय में वो मेयर बनने वाले हैं. ऐसे में पीएम मोदी के चेहरे पर वोट देने से कोई फायदा नहीं होना है.

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यूपी में देखें तो बीजेपी की सत्ता में वापसी ऐसे ही नहीं हुई थी. मोदी के नाम पर जरूर चुनाव लड़ा गया, लेकिन योगी सरकार के पांच साल के काम भी थे. इस तरह से उत्तराखंड और हरियाणा देखें तो भी वहां की राज्य सरकारों ने काम किया था, जिसके दम पर सत्ता में वापसी हुई है. 2014 के बाद से बीजेपी जिन राज्यों में हारी है, वहां पर स्थानीय मजबूत नेतृत्व की कमी एक बड़ी वजह रही है.

कांग्रेस का विकल्प AAP

गुजरात, हिमाचल और दिल्ली के चुनाव में सबसे बड़ा सियासी झटका कांग्रेस को लगा है. कांग्रेस भले ही हिमाचल की सत्ता में फिर से वापसी करती दिख रही हो, लेकिन वहां पर साढ़े तीन दशक से हर पांच साल पर सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड रहा है. हिमाचल में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर बताई जा रही है, लेकिन उसके लिए सबसे बड़ी चिंता आम आदमी पार्टी बन गई है. देश में एक के बाद एक राज्य में कांग्रेस की सियासी जमीन को आम आदमी पार्टी कब्जा करती जा रही है. राज्यों में लोगों के लिए बीजेपी के सामने कांग्रेस का विकल्प आम आदमी पार्टी बन रही है. 

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दिल्ली नगर निगम में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ रहा है तो गुजरात में शिकस्त खानी पड़ रही है. दिल्ली में कांग्रेस का सियासी आधार पूरी तरह से आम आदमी पार्टी में शिफ्ट होता जा रहा है. दिल्ली में बीजेपी का अपना 35 फीसदी वोट उसके साथ है, लेकिन कांग्रेस का वोट AAP में पूरी तरह से शिफ्ट हो गया है. ऐसे ही गुजरात में पहली बार उतरी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का वोट खाकर अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराने में सफल होती दिख रही है. आप को गुजरात में 20 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है. इस तरह से गुजरात में हर पांचवां वोट केजरीवाल की पार्टी को मिला है. 

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केजरीवाल इसी तरह से राज्यों में अपना कदम रखते हैं और पहले विपक्ष की जगह लेते हैं और फिर सत्ता में आते हैं. दिल्ली एमसीडी में 2017 में इसी तरह से आम आदमी पार्टी ने जगह बनाई थी और अब पूर्ण बहुमत के साथ वापसी कर रही है. इससे पहले दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के हाथों से सत्ता छीना है.

हरियाणा के निकाय चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. इस तरह से कांग्रेस की जगह आम आदमी पार्टी लेती जा रही है. ऐसी ही स्थिति रही तो कांग्रेस के लिए आगे की सियासी राह काफी मुश्किलों भरी हो जाएगी, क्योंकि आम आदमी पार्टी ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में भी चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. इन सभी राज्यों में अभी तक कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी लड़ाई होती रही है, लेकिन अब आम आदमी पार्टी भी किस्मत आजमाने के लिए उतर रही है.

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ब्रांड केजरीवाल मजबूत

दिल्ली एमसीडी चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ आम आदमी पार्टी को मिल रही जीत ब्रांड केजरीवाल को सियासी तौर पर मजबूत करेगा. केजरीवाल ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद दिल्ली में बीजेपी को मात दी और गुजरात में 20 फीसदी के करीब वोट हासिल करने में कामयाब रहे, उससे ब्रांड केजरीवाल को और भी मजबूती मिलेगी व उनका सियासी कद विपक्षी मंच पर और भी बढ़ने की संभावना है. देश में पीएम मोदी के बाद अरविंद केजरीवाल ही सबसे बड़े चेहरे के तौर पर उभरे हैं. आम आदमी पार्टी ने दिल्ली एमसीडी की सत्ता के सिंहासन पर ऐसे समय काबिज हुई है जब डेढ़ साल के बाद लोकसभा का चुनाव होने है.

एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी ने केजरीवाल का नाम और काम पर वोट मांगे हैं. आम आदमी पार्टी ने दिल्ली एमसीडी चुनाव में सीएम अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर चुनाव लड़े थे और पूरा प्रचार भी उन्हीं के नाम पर केंद्रित था. 'दिल्ली में केजरीवाल के पार्षद', 'एमसीडी में केजरीवाल लाओ दिल्ली से कचरे के पहाड़ हटाओ' और 'अब एमसीडी में भी केजरीवाल'. इस तरह से गुजरात में आम आदमी पार्टी ने भी केजरीवाल के नाम पर चुनाव लड़ा था और उनके नाम पर ही वोट मांगे हैं. वो भी तब जब दिल्ली में बीजेपी ने हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के लिए मस्जिद के इमाम को सैलरी देने से लेकर दिल्ली दंगे तक के मुद्दे उछाले गए, लेकिन केजरीवाल की रणनीति के आगे एक भी काम नहीं आ सके. 

'गुजरात का भाई केजरीवाल, का नारा दिया था. सीएम केजरीवाल ने भी कहा था, मैं आपका भाई हूं, आपके परिवार का हिस्सा हूं.इसके अलावा केजरीवाल के दिल्ली विकास मॉडल के नाम पर वोट मांगे गए थे. ऐसे ही पंजाब में भगवत मान भले ही सीएम का चेहरा थे, लेकिन पूरा चुनाव केजरीवाल के नाम पर लड़ा गया था और जीत का श्रेय भी उन्हें दिया गया था. इससे समझा जा सकता है कि केजरीवाल का कद सियासी तौर पर काफी बढ़ गया है.

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गुजरात बीजेपी का अभेद किला

एग्जिट पोल से यह भी संदेश निकला है कि गुजरात बीजेपी का एक अभेद किला है, जहां सेंधमारी आसान नहीं है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह के रहते गुजरात का किला कोई नहीं हिला सकता. वक्त के साथ यह और मजबूत होता जा रहा है. सर्वे के आंकड़े बता रहे हैं कि 27 सालों से सत्ता पर काबिज बीजेपी इस बार रिकार्ड तोड़ सीटों के साथ सत्ता में वापसी करती हुई नजर आ रही है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के कोई भी सियासी प्रयोग बीजेपी को विजयरथ को रोक नहीं सके.

गुजरात बीजेपी की सियासी प्रयोगशाला है और पार्टी जो भी एक्सीप्रिमेंट करती है, वो सफल रही है. बीजेपी ने चुनाव से एक साल पूर्व पूरी सरकार बदल दी थी और अपने तमाम दिग्गज नेताओं को चुनाव नहीं लड़ाया. इसके बावजूद विपक्ष बीजेपी को सत्ता से बेदखल नहीं कर सके. ऐसे में बीजेपी को गुजरात की सत्ता से हटाना आसान नहीं है.

हिमाचल में सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड 

एग्जिट पोल के मुताबिक हिमाचल में कांग्रेस और बीजेपी की बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है, लेकिन हर पांच साल पर सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड भी देखने को मिल रहा है. हिमाचल चुनाव के नतीजे बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए है. कांग्रेस भले ही सत्ता में वापसी करती दिख रही हो, लेकिन आंकड़े बता रहे हैं कि बीजेपी बहुत ज्यादा पीछे नहीं है. ऐसे में सरकार बनाने के लिए श-मात का खेल देखने को मिल सकता है.  हालांकि, एक बात यह भी है कि हिमाचल की सत्ता जाना बीजेपी के लिए सियासी तौर पर बड़ा झटका है, जो ये बता रहा है कि नरेंद्र मोदी के भरोसे चुनाव जीतने की उम्मीद राज्य ईकाई को नहीं रखनी चाहिए. बीजेपी के लिए दलबदलू नेताओं को अहमियत देना और अपने नेताओं पर नो रिपीट फॉर्मूला जरूरी नहीं है कि हर बार सफल हो जाए. 
 

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