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किसान आंदोलन के 180 दिन: 11 दौर की वार्ता, सुप्रीम कोर्ट का दखल, फिर भी नहीं निकला कोई हल

तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन बुधवार को 180 दिन पूरे हो रहे हैं.  इस दौरान किसान संगठन और मोदी सरकार के बीच 11 बार बातचीत हुई, लेकिन वो भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंची. आंदोलन के छह महीने पूरे होने पर किसान संगठन 26 मई को काला दिवस मना रहे हैं. 

किसान आंदोलन किसान आंदोलन
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 26 मई 2021,
  • अपडेटेड 11:23 AM IST
  • किसान और सरकार के बीच 11 बार वार्ता हुई
  • 28 जनवरी को किसान आंदोलन में आई तेजी
  • SC ने हल निकालने के लिए तीन सदस्यीय कमेटी बनाई

कोरोना महामारी का प्रकोप बढ़ने के बावजूद कृषि कानून वापसी की मांग को लेकर दिल्ली बार्डर पर धरना दे रहे किसानों के तेवर बरकरार हैं. तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन बुधवार को 180 दिन यानी छह महीने पूरे हो रहे हैं. इस दौरान किसान संगठन और मोदी सरकार के बीच 11 बार बातचीत हुई, लेकिन वो भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंची. आंदोलन के छह महीने पूरे होने पर किसान संगठन 26 मई को काला दिवस मना रहे हैं. 

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बता दें कि केंद्र सरका द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ 26 नवंबर 2020 से दिल्ली की सीमा पर किसानों का आंदोलन शुरू हुआ था. पंजाब और हरियाणा के बाद उत्तर प्रदेश के किसानों के सीमाओं पर पहुंचने के बाद आंदोलन ने शुरुआती दौर में रफ्तार पकड़ ली. मांगें पूरी होने तक घर न लौटने के फैसले पर अडिग किसानों को सीमाओं से बुराड़ी ग्राउंड पर प्रदर्शन के लिए जगह की सिफारिश की गई, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया था. 

आंदोलन को तितर-बितर करने की कोशिश

आंदोलनकारी किसानों को तितर-बितर करने के लिए 27 नवंबर को सिंघु बॉर्डर पर आंसू गैस के गोले छोड़ गए, लेकिन विरोध के स्वर और तेज होने लगे. 27 नवंबर को उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में किसान गाजीपुर बॉर्डर पहुंचे, जिसकी अगुवाई भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत और नरेश टिकैत कर रहे थे. पश्चिम यूपी के किसानों ने यहां अपना डेरा जमा दिया, जहां तमाम किसान संगठन भी जुड़ गए. 

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आखिरकार एक दिसंबर को केंद्र सरकार ने किसानों को पहले दौर की बातचीत के लिए बुलाया, जो बेनतीजा रही. इससे पहले पंजाब में विरोध के दौरान ही 14 अक्तूबर, 2020 को किसानों और सरकार की पहली बार वार्ता हुई थी. तीसरी बैठक तीन दिसंबर को हुई, लेकिन बेनतीजा रही. इसके बाद पांच दिसंबर को किसानों के साथ केंद्र सरकार की चौथे दौर की बैठक हुई. आठ दिसंबर को पांचवीं वार्ता हुई, इसी दिन किसानों ने भारत बंद का आह्वान किया था.

30 दिसंबर को छठे दौर, चार जनवरी को सातवें दौर की जबकि आठ जनवरी को आठवें दौर की किसानों और सरकार के बीच वार्ता हुई. 15 जनवरी को नौवीं बार सरकार के साथ वार्ता हुई. 20 जनवरी को 10वें दौर की वार्ता हुई, जिसमें सरकार ने कृषि कानूनों को डेढ़ से दो साल के लिए निलंबित करने और कानूनों पर विचार करने के लिए समिति के गठन का सुझाव दिया. हालांकि, किसानों ने इसे खारिज कर दिया. इसके बाद  22 जनवरी, 2021 को किसानों और सरकार के बीच 11वें दौर की वार्ता हुई. 

26 जनवरी को बिगड़ा माहौल

केंद्र की मोदी सरकार के साथ 11 दौर की वार्ता के सफल न होने पर किसान संगठन ने 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर रैली निकालने की चेतावनी दी. गणतंत्र दिवस के दिन बड़ी संख्या में ट्रैक्टर-ट्रॉली पर पहुंचकर किसानों ने विरोध जताया, जिसे कभी नहीं भूला जा सकता. जब पूरी दिल्ली में किसानों के हजारों ट्रैक्टर दौड़े थे. इससे पहले भी दिसंबर और जनवरी में किसानों की भीड़ हजारों की संख्या में यूपी गेट पर जमी रही.  

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किसान संगठनों ने दिल्ली में 26 जनवरी की ट्रैक्टर रैली के लिए पुलिस से इजाजत मांगी. दिल्ली पुलिस और किसान संगठनों के बीच हुई वार्ता में आउटर रिंग रोड पर रैली निकालने की अनुमति मिली. पुलिस ने टैक्ट्रर रैली के लिए बाहरी दिल्ली के रूट तय किए, लेकिन आंदोलनकारियों में से कुछ लोग उग्र हो गए. दिल्ली के आईटीओ, लालकिला, नांगलोई समेत दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में हुई हिंसा और उपद्रव हुआ. इस दौरान लाल किले पर धार्मिक झंडा भी फहराया गया, जिसे लेकर काफी विवाद हुआ.  

राकेश टिकैत के आंसुओं से मिली आंदोलन को धार
26 जनवरी की घटना के बाद किसान आंदोलन में यू-टर्न आया. उपद्रवियों के खिलाफ मामले दर्ज होने के बाद गिरफ्तारियां भी हुईं.  26 जनवरी को हुए उपद्रव के बाद दिल्ली पुलिस ने 59 मामले दर्ज, 158 किसान गिरफ्तार किए गए. घटना के बाद आंदोलन से कई किसान संगठनों ने 27 जनवरी को अपने आपको अलग कर लिया, जिसमें किसान नेता वीएम सिंह भी शामिल थे. 

वहीं, भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख नरेश टिकैत ने भी आंदोलन को समाप्त करने का मन बना लिया था, लेकिन 28 जनवरी की शाम होते-होते पूरा माहौल ही बदल गया. राकेश टिकैत की आंख से निकले आंसुओं ने आंदोलन को दोबारा से जिंदा कर दिया. इसके बाद किसान आंदोलन ने दिल्ली की सीमा तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि तमाम राज्यों में पहुंच गया. बड़ी संख्या में राकेश टिकैत के समर्थन में लोग गाजीपुर बॉर्डर पहुंचने लगे और पांच किलोमीटर तक तंबू लगा दिए गए.

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इसके बाद राजनीतिक दलों के नेताओं का भी पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया. संसद के बजट सत्र से पहले एक सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि किसानों के साथ बातचीत बस एक फोन कॉल की दूरी पर है. इस पर राकेश टिकैत ने कहा कि आपका क्या फोन नंबर है, हमें दीजिए.  

आंदोलन का रुख बदलते ही तीनों बॉर्डर पर सुरक्षा बढ़ा दी गई. बैरिकेडिंग मजबूत कर दी गई. सिंघु, टीकरी और गाजीपुर बॉर्डर के आंदोलन स्थल को बंद करने के लिए बैरिकेडिंग और कंटीली तारें लगाई गईं. जर्सी बैरियर के बीच कंक्रीट डलवाकर उसे पक्का कर दिया गया. सुरक्षा के लिए एहतियात बढ़ाए जाने पर भी सिंघु बॉर्डर पर पथराव की घटना हुईं. किसान संगठनों ने इसके लिए सरकार पर आरोप भी लगाए. 

दुनिया भर का ध्यान खींचा आंदोलन ने
किसान आंदोलन ने देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लोगों का ध्यान खींचा. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई नामचीन हस्तियां किसान आंदोलन का समर्थन कर रही थीं. चाइल्ड एक्टिविस्ट के तौर पर चर्चित रहीं ग्रेटा थनबर्ग ने किसान आंदोलन के पक्ष में ट्वीट किया, जिसमें एक टूलकिट नाम का एक डॉक्यूमेंट शेयर हो गया था. टूलकिट को लेकर देश में बहस छिड़ गई कि यह सब भारत के लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए किया जा रहा है. 

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बॉलीवुड सितारे, क्रिकेटर्स, राजनेताओं ने अपने हिसाब से इस टूलकिट एक्शन पर रिएक्शन दिया. विवाद को बढ़ता देख सुरक्षा एजेंसियों ने टूलकिट पर शिकंजा कसा. किसान समर्थकों पर एनआईए ने अपना शिकंजा भी कसा. 21 साल की छात्रा दिशा रवि को बेंगलुरू में गिरफ्तार किया गया और साथ निकिता जैकब और शांतनु को भी आरोपी बनाया गया था. इस पर दिशा रवि के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली गई, जिस पर 19 फरवरी को दिशा को इस मामले में जमानत मिल गई. किसान आंदोलन से जुड़े ये मामले भी देशभर में सुर्खियों में रहे.

सुप्रीम कोर्ट के पास है कमेटी की रिपोर्ट

पिछले छह महीने में केंद्र सरकार और किसानों के बीच कुल 11 बार वार्ता हुई, जो बेनतीजा रही. इस तरह से आखिरी दौर की बातचीत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंचा. अदालत ने 11 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों पर रोक लगाने के आदेश दिए थे. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी को बातचीत से समाधान निकालने के लिए चार सदस्यीय कमेटी बनाई, जिससे किसान नेता भूपिंदर सिंह मान ने इससे खुद को अलग कर लिया था. इस तरह से कमेटी में कृषि विशेषज्ञ अशोक गुलाटी, डॉ. प्रमोद कुमार जोशी और अनिल धनवत शामिल रहे. 

तीन सदस्यीय कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को मार्च 2021 बंद लिफाफे में जमा कर दी है. कमेटी ने इस मामले का हल निकालने के लिए करीब 85 किसान संगठनों से बात की है, जो अब सुप्रीम कोर्ट के पास है. कोरोना संक्रमण के चलते इस मामले में 5 अप्रैल को सुनवाई नहीं हो सकी है. कोरोना संक्रमण के चलते तमाम किसान अपने घर को लौट गए हैं, लेकिन अभी भी बड़ी संख्या में किसान दिल्ली की सीमा पर डटे हुए हैं. 18 अप्रैल को दिल्ली से गाजियाबाद जाने वाली लेन को पुलिस ने खोल दिया है. किसान आंदोलन के छह महीने पूरे होने पर किसान संगठन बुधवार यानी 26 मई को काला दिवस मना रहे हैं. 

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