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कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के किसान एकजुट होकर मोदी सरकार के खिलाफ 13 दिनों से दिल्ली के बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे हैं. पंजाब-हरियाणा किसानों के आंदोलन की तपिश ने देश भर के किसानों को एकजुट कर दिया है. किसान अपनी मांग से पीछे हटने को कतई राजी नहीं है. किसान आंदोलन के बीच हरियाणा की खट्टर सरकार के कृषि मंत्री ने हरियाणा के किसानों के लिए सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL) के पानी की मांग उठाकर एक बड़ा दांव चला है. हरियाणा और पंजाब के बीच यह ऐसा विवाद है, जो अगर सियासी तूल पकड़ता है तो दोनों राज्य के किसान बंट सकते हैं?
हरियाणा के कृषि मंत्री जेपी दलाल ने सोमवार को मांग उठाई कि सभी पार्टियों के नेता और खाप पंचायत सतलुज-यमुना लिंक नहर का समाधान निकालें. दक्षिण हरियाणा के किसानों के लिए सिंचाई के लिए पानी चाहिए. हमारी बस यही मांग है कि हरियाणा के लिए एसवाईएल नहर का निर्माण होना चाहिए. हरियाणा के लिए सबसे बड़ी समस्या पानी है, 44 सालों से अटका हुआ मुद्दा सुप्रीम कोर्ट से जीत चुके हैं, किसानों से कहना चाहते हैं कि वह अपने मांग पत्र में इस मांग को भी लिखवा दें.
पंजाब और हरियाणा के बीच सतलुज-यमुना लिंक नहर विवाद पिछले चार दशक के एक सियासी मुद्दा बना हुआ है. पंजाब हमेशा से एसवाईएल के पानी को हरियाणा को देने का विरोध करता रहा है और अभी भी अपने पुराने स्टैंड पर कायम है. सुप्रीम कोर्ट के हस्ताक्षेप के बाद केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने दोनों राज्यों के बीच विवाद सुलझाने की कवायद शुरू की थी. इस पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने केंद्र सरकार को चेताते हुए कहा था कि यदि सतलुज-यमुना नहर बनी तो पंजाब जल उठेगा. ऐसे में सरकार अभी तक कोई हल नहीं निकाल सकी और हरियाणा और पंजाब के बीच यह विवाद जस का तस बना हुआ है.
SYL पर 1966 से विवाद है
बता दें कि 1966 में पंजाब से जब अलग हरियाणा राज्य बना तभी से यह विवाद है. 10 साल के लंबे विवाद के बाद 1976 में दोनों राज्यों के बीच जल बंटवारे को अंतिम रूप दिया गया और इसी के साथ सतलुज यमुना नहर बनाने की बात कही गई. 24 मार्च 1976 को केंद्र सरकार ने पंजाब के 7.2 एमएएफ यानी मिलियन एकड़ फीट पानी में से 3.5 एमएएफ हिस्सा हरियाणा को देने की अधिसूचना जारी की थी, जिसके बाद पंजाब के किसान फिर सड़क पर उतर आए.
इसके बाद साल 1981 में समझौता हुआ और पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने 8 अप्रैल 1982 को पंजाब के पटियाला जिले के कपूरई गांव में एसवाईएल का उद्घाटन किया था. हालांकि, इसके बाद भी विवाद नहीं थमा बल्कि या यूं कहें कि विवाद और भी बढ़ता गया. 1985 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एसएडी प्रमुख हरचंद सिंह लोंगोवाल से मुलाकात की थी और फिर एक नए न्यायाधिकरण के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे.
हरचंद सिंह लोंगोवाल को समझौते पर हस्ताक्षर करने के एक महीने से भी कम समय में आतंकवादियों ने मार दिया था. 1990 में नहर से जुड़े रहे एक मुख्य इंजीनियर एमएल सेखरी और एक अधीक्षण अभियंता अवतार सिंह औलख को आतंकवादियों ने मार दिया था. नहर के पानी के चलते हरियाणा सरकार ने 1996 में सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी. इसके बाद 15 जनवरी 2002 को सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को एक साल में एसवाईएल बनाने का निर्देश दिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ 4 जून 2004 पंजाब सरकार ने अपनी याचिका दायर की, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया.
पंजाब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राजी नहीं
पंजाब ने पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट-2004 बनाकर तमाम जल समझौते रद कर दिए. इस तरह से पंजाब ने हरियाणा को पानी देने वाले समझौते को मानने से ही इनकार कर दिया था. पंजाब नहर के लिए अधिग्रहित जमीन किसानों को वापस करने की बात कही. इसके लिए एक विधेयक भी विधानसभा में पारित किया गया था, जिससे स्थिति और अधिक जटिल हो गई है और नहर को मिट्टी से भर दिया गया है. ऐसे में संघीय ढांचे की अवधारण पर चोट पहुंचने की आशंका को देखते हुए राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से रेफरेंस मांगा.
12 साल तक यह मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा और 2015 में मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में बनी बीजेपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति के रेफरेंस पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ गठित करने का अनुरोध किया. फरवरी 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने पांच जजों की पीठ गठित की, जिसने सुनवाई कर केंद्र सरकार से दोनों राज्यों के बीच के विवाद को जल्द से जल्द सुलझाने की बात कही.
केंद्र सरकार की समझौता कराने की कोशिश
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद अब जब केंद्र के जल शक्ति मंत्री और पंजाब व हरियाणा के मुख्यमंत्रियों की बैठक हुई तो यह विवाद फिर सामने आ गया. अमरिंदर सिंह ने कहा था कि पंजाब के विभाजन के बाद पानी को छोड़कर हमारी सभी संपत्तियां 60 और 40 के आधार पर बांटी गईं, क्योंकि उस पानी में रावी, ब्यास और सतलुज का पानी शामिल था, लेकिन यमुना का नहीं. मैंने सुझाव दिया है कि उन्हें यमुना का पानी भी शामिल करना चाहिए और फिर इसे 60 और 40 के आधार पर विभाजित करना चाहिए. हालांकि, पंजाब के इस फॉर्मूले पर हरियाणा राजी नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा बार-बार हरियाणा के पक्ष में फैसले दिए जाते रहे हैं. 2017 में तो एसवाईएल पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का मुकदमा भी पंजाब सरकार के खिलाफ दर्ज हुआ था, जब हरियाणा के पक्ष में आए फैसले के अगले ही दिन पंजाब सरकार ने कैबिनेट की बैठक बुलाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उलट फैसला लेते हुए आदेश जारी किए थे.
पंजाब ने यह भी कहा कि हम अदालती आदेश का पालन करना चाहते हैं, लेकिन अपने किसानों को नजरअंदाज कर ऐसा नहीं कर सकते. हमारे किसान भूख से मरें और हम सतलुज, यमुना और ब्यास नदी का पानी किसी और क्यों दें. पानी हमारी जरूरत हैं. पंजाब के इसी रुख के कारण वर्षों से इस मामले का समाधान नहीं निकल पा रहा. ऐसे अब फिर एक बार हरियाणा के कृषि मंत्री ने यह मामला उठाकर दोबारा से जिंदा कर दिया है, जो अगर तूल पकड़ता है तो दोनों राज्य के किसान आपस में बंट सकते हैं.