
साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ तमाम विपक्षी दलों को एकजुट करने का जिम्मा इस बार बिहार के दो बड़े नेताओं नीतीश कुमार और लालू यादव ने उठाया है. इसी के तहत 23 जून को पटना में 17 विपक्षी दलों की बैठक भी हुई थी जिसमें 15 दलों ने एकजुट होकर सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ लड़ने का शुरुआती ऐलान किया था.
ये पहला मौका नहीं है जब लालू यादव और नीतीश कुमार ने विपक्ष को एकजुट किया है. इससे पहले साल 1988 में भी लालू और नीतीश की जोड़ी ने तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस के विरोध में विपक्ष को एकजुट कर दिया था जिसके बाद कांग्रेस की सत्ता चली गई थी. हालांकि, इस दौरान लालू-नीतीश के पहली बार केंद्रीय मंत्री बनने का सपना जरूर टूट गया था.
बीते दिनों पटना के ज्ञान भवन में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अध्यक्ष लालू यादव ने नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन पर लिखी गई किताब 'नीतीश कुमार, अंतरंग दोस्तों की नजर से' का विमोचन किया था. किताब के विमोचन के मौके पर लालू यादव ने नीतीश कुमार के साथ अपनी राजनीतिक यात्रा को याद करते हुए वीपी सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद के राजनीतिक घटनाक्रम का जिक्र किया था. उन्होंने बताया था कि कैसे नए कपड़े सिलवा लेने के बाद भी वो और नीतीश कुमार पहली बार केंद्रीय मंत्री नहीं बन पाए थे.
लालू यादव ने अपनी बायोग्राफी 'गोपालगंज से रायसीना' में भी उस वाकये का जिक्र किया है, जब केंद्र सरकार में पहली बार मंत्री बनने के लिए लालू यादव और नीतीश कुमार नया कुर्ता पायजामा पहनकर प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के बाहर घूमा करते थे.
कांग्रेस के खिलाफ विपक्ष को किया एकजुट
दरअसल 1988 में देश में कांग्रेस विरोधी राजनीति ने मुखर रूप ले लिया था जिसमें लालू यादव ने अहम भूमिका निभाई थी. विश्वनाथ प्रताप सिंह यानी वीपी सिंह ने राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया जिसमें उन्हें हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी देवी लाल का साथ मिला. फिर लालू यादव ने कुछ दलों को कांग्रेस के खिलाफ एकजुट कर जनता दल बनाया.
1989 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव बिहार के छपरा और नीतीश कुमार बाढ़ से चुनाव जीतकर सांसद बने. लालू यादव ने अपनी बायोग्राफी 'गोपालगंज से रायसीना' में बताया है कि चौधरी देवी लाल की लोकप्रियता ज्यादा होने के बाद भी प्रधानमंत्री पद के लिए उन्होंने विश्वनाथ प्रताप सिंह (वी पी सिंह) का समर्थन किया था.
लालू यादव ने अपनी बायोग्राफी में आगे बताया है कि उन्होंने जनता दल के तमाम नेताओं को भी प्रधानमंत्री पद के लिए वीपी सिंह के नाम पर राजी करने में अहम भूमिका निभाई. जब वी पी सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तो लालू यादव और उनके साथी नीतीश कुमार को लगने लगा कि अब केंद्र में उनका पहली बार मंत्री बनना तय है.
जब टूट गया मंत्री बनने का सपना
बायोग्राफी में लालू यादव ने लिखा है, 'प्रधानमंत्री पद के मुद्दे के समाधान के बाद नीतीश कुमार और मैंने मंत्री बनने का प्रयास शुरू किया. हम अपनी ओर वी पी सिंह का ध्यान खींचने की उम्मीद में प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के आसपास अपना सबसे अच्छा कुर्ता-पायजामा पहनकर घूमा करते थे.’ लालू यादव को लगता था कि चूंकि उन्होंने वी पी सिंह को प्रधानमंत्री बनाने में अहम भूमिका निभाई है इसलिए उनका और नीतीश कुमार का केंद्रीय मंत्री बनना तय है. हालांकि उनकी उम्मीद टूट गई और उन्हें कोई पद नहीं मिला. इसके बाद लालू यादव ने बिहार की राजनीति पर फोकस करने का फैसला कर लिया.
17-18 जुलाई को बेंगलुरु में अहम बैठक
सवाल उठता है कि लालू यादव और नीतीश कुमार ने जो करिश्मा 1989 के दौर में कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए किया था वो 2024 में बीजेपी के खिलाफ दोहरा पाएंगे. 17-18 जुलाई को बेंगलुरु में होने वाली विपक्षी दलों की अगली बैठक में इसकी झलक दिख जाएगी. इस बैठक में विपक्षी दलों के बीच सीट शेयरिंग के फॉर्मूले पर मंथन हो सकता है.