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IAS-IPS in Politics: VRS के राजनीतिक घोल की ऐसी रही है सियासी केमिस्ट्री और हिस्ट्री

VRS लेकर राजनीति (Asim Arun Kumar VRS BJP) में जाने का चलन आम तो नहीं है, लेकिन नया भी नहीं है. देश के किसी न किसी हिस्से में, चुनावी सीजन में ऐसा देखने को मिल जाता है जब कोई सिविल सेवा से जुड़ा अधिकारी (IAS IPS officer in Politics) अपनी नौकरी छोड़कर चुनावी राजनीति में उतर आता है.

ओपी चौधरी, असीम अरुण और भारती घोष ओपी चौधरी, असीम अरुण और भारती घोष
जावेद अख़्तर
  • नई दिल्ली,
  • 10 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 10:06 AM IST
  • कानपुर पुलिस कमिश्नर असीम अरुण बीजेपी में शामिल
  • सत्यपाल मलिक भी VRS लेकर बीजेपी में गए थे
  • बंगाल में VRS लेकर आमने-सामने चुनाव लड़े थे दो अफसर

देश की पहली महिला IPS अफसर किरण बेदी से लेकर जम्मू-कश्मीर से आने वाले पहले UPSC टॉपर तक, मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह से छत्तीसगढ़ के युवा IAS ओपी चौधरी तक, पीएम नरेंद्र मोदी के करीबी ए.के शर्मा से लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ के करीबी असीम अरुण तक, ऐसे तमाम IAS, IPS या अन्य अधिकारी रहे हैं जिन्होंने सिविल सेवा छोड़कर राजनीति का पथ चुना और VRS ले लिया.

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जब रिटायरमेंट की निर्धारित उम्र से पहले कोई ऑफिसर रिटायरमेंट ले लेता है तो उसे VRS (Voluntary Retirement Scheme) यानी वॉलेंटियरी रिटायरमेंट लेना कहा जाता है. आमतौर पर जब भी कोई अधिकारी VRS लेता है, तो उसका कोई न कोई रीज़न यानी कारण जरूर होता है. 

जैसे अभी कानपुर के पुलिस कमिश्नर IPS असीम अरुण कुमार ने VRS लिया. असीम अरुण ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन्हें भारतीय जनता पार्टी में शामिल होना था और मुमकिन है विधानसभा चुनाव लड़ना था.

असीम अरुण कुमार कोई पहले अधिकारी नहीं हैं, जिन्होंने ऐसा किया है, इनसे पहले भी कई नाम इस फेहरिस्त में आए हैं. 1996 बैच के PPS और ईडी में कार्यरत अधिकारी राजेश्वर सिंह का नाम तो अरुण कुमार के साथ ही चर्चा में चल रहा है. 

राजेश्वर सिंह प्रवर्तन निदेशालय (ED) में थे, और अगस्त 2021 में उन्होंने वीआरएस के लिए आवेदन किया था. अब उनके वीआरएस को मंजूरी मिल गई है. राजेश्वर सिंह कभी यूपी पुलिस में थे और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर पर पहचान रखते थे. मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि ये भी बीजेपी ज्वाइन कर सकते हैं और यूपी में विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं. 

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गुप्तेश्वर पांडेय VRS लेकर आए थे चर्चा में 

यूपी विधानसभा चुनाव कोरोना की तीसरी लहर के बीच  हो रहा है, इस वायरस की एक लहर तब भी चली थी जब 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव हुए थे. इस चुनाव में बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह की मौत चर्चा का केंद्र थी और इस केंद्र में एक अहम बिंदु बिहार के तत्कालीन डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय भी थे. 

गुप्तेश्वर पांडेय ने डीजीपी का पद छोड़कर VRS लिया और नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो गए. गुप्तेश्वर पांडेय का इरादा बक्सर सीट से चुनाव लड़ने का था, लेकिन ये सीट गठबंधन में बीजेपी के पास चली गई थी और इस तरह वीआरएस लेकर भी गुप्तेश्वर पांडेय के अरमानों पर पानी फिर गया था. 

अरविंद कुमार शर्मा: 1988 बैच के गुजरात कैडर के IAS अरविंद कुमार शर्मा यानी ए.के शर्मा फिलहाल यूपी बीजेपी में उपाध्यक्ष हैं.  ए.के शर्मा ने 2021 की शुरुआत में VRS लिया था. शर्मा को पीएम नरेंद्र मोदी का करीबी माना जाता है. गुजरात से लेकर केंद्र सरकार तक ए.के शर्मा ने मोदी के साथ सरकार में काम किया है. पिछले साल जब वो सर्विस छोड़कर लखनऊ आए तो चर्चाएं हुईं कि यूपी की योगी सरकार में उन्होंने अहम भूमिका दी जाएगी. खींचतान की खबरें भी आईं और अंतत: उन्हें पार्टी में उपाध्यक्ष का पद दिया गया.

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ओपी चौधरी: ओम प्रकाश चौधरी वो नाम है जिसने सिविल सर्विस में बाजी मारकर छत्तीसगढ़ का नाम रोशन किया था. 2005 बैच के IAS ऑफिसर ओपी चौधरी ने जब सर्विस ज्वाइन की थी, तब उनकी उम्र महज 23 साल थी. पूरे राज्य के लिए ये गौरव का विषय था, क्योंकि साल 2000 में जबसे छत्तीसगढ़ का गठन हुआ था, उसके बाद ये पहला मौका था जब यहां की मिट्टी का कोई सपूत IAS बना था. 

सर्विस करते हुए भी ओपी चौधरी ने नाम कमाया. रमन सिंह के नेतृत्व में बीजेपी सरकार का कार्यकाल देखा और जब 2018 के विधानसभा चुनाव आए तो नौकरी छोड़ दी. बीजेपी के टिकट पर खरसिया सीट से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. बता दें कि इस चुनाव में कांग्रेस की एकतरफा लहर चली थी और बीजेपी पूरी तरह ध्वस्त हो गई थी, उसी रौ में ओपी चौधरी भी बह गए. बताया जाता है कि चुनाव हार के बाद ओपी चौधरी को सर्विस ज्वाइन करने का मौका मिला लेकिन उन्होंने स्वीकार नहीं किया.

शाह फैसल: 2010 में UPSC टॉप करने वाले शाह फैसल ने भी VRS लिया था. शाह फैसल ने जम्मू-कश्मीर से पहली बार टॉपर बनने का रिकॉर्ड बनाया था. और इसी जम्मू-कश्मीर के हालात का हवाला देते हुए उन्होंने 2019 में वीआरएस ले लिया. अपनी अलग पॉलिटिकल पार्टी भी बनाई. लेकिन जल्दी ही उनका मोहभंग हो गया और वो राजनीति से दूर हो गए.

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जब चुनाव में भिड़े दो IPS

IPS हुमायूं कबीर ने जनवरी 2021 में अपनी सर्विस से इस्तीफा दिया था. वो पश्चिम बंगाल में चंदननगर के पुलिस कमिश्नर थे. इसके कुछ दिन बाद ही उन्होंने ममता बनर्जी की मौजूदगी में एक रैली के दौरान तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन कर ली थी. ममता बनर्जी ने उन्हें देबरा विधानसभा सीट से टिकट दिया और वो चुनाव जीत गए. 

दिलचस्प बात ये है कि हुमायूं कबीर ने जिन भारती घोष को हराया था वो खुद कभी IPS थीं. भारती घोष ने जनवरी 2018 में ही VRS ले लिया था और बीजेपी ज्वाइन कर ली थी. 2019 में भारती घोष ने घाटल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा लेकिन मोदी लहर में भी टीएमसी प्रत्याशी से हार गईं. इसके बाद 2021 में बीजेपी ने उन्हें देबरा सीट से हुमायूं कबीर के खिलाफ उतारा, और इस बीच ममता लहर उन पर भारी पड़ गई और वो फिर हार गईं. 

बता दें कि भारती घोष एक काबिल और तेजतर्रार ऑफिसर के तौर पर जानी जाती रही हैं. वो हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़ी हुई हैं. भारती घोष फिलहाल बीजेपी की राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं, जबकि हुमायूं कबीर ममता सरकार में मंत्री हैं. 

आर.एस प्रवीन कुमार: 1995 बैच के IPS ऑफिसर आर.एस प्रवीन कुमार के VRS को जुलाई 2021 में मंजूरी मिली थी. 26 साल की सेवा के बाद उन्होंने ये फैसला किया था. अपने इस फैसले का ऐलान करते हुए प्रवीन कुमार ने कहा था कि वो सामाजिक न्याय से जुड़े बाबा साहब अंबेडकर और कांशीराम के अधूरे सपनों को पूरा करना चाहते हैं. इसी मकसद के साथ प्रवीन कुमार ने मायावती की पार्टी बसपा को ज्वाइन किया. फिलहाल, वो बसपा के तेलंगाना स्टेट कॉर्डिनेटर हैं और सक्रिय तौर पर राजनीति कर रहे हैं. 

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सत्यपाल सिंह: मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर और यूपी के बागपत से लोकसभा सांसद सत्यपाल सिंह भी मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं. 1980 बैच के महाराष्ट्र कैडर के IPS सत्यपाल सिंह जनवरी 2014 में वीआरएस लिया था. जब उन्होंने ये फैसला किया था, तब वो मुंबई के पुलिस कमिश्नर की जिम्मेदारी संभाल रहे थे. यहां से मुक्त होकर सत्यपाल सिंह ने बीजेपी ज्वाइन कर ली और 2014 में पार्टी के टिकट पर पश्चिमी यूपी की बागपत लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा. वो जीते और केंद्र में मंत्री भी बने. 2019 में वो फिर यहीं से सांसद बने, लेकिन इस बार मंत्री नहीं हैं.

HK Patel: 2005 बैच के IAS ऑफिसर एच.के पटेल ने भी पिछले साल ही VRS लिया है. वो गुजरात सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पटेल इसी साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं. 

ऊपर जिन लोगों के बारे में बताया गया ये वो ऑफिसर रहे हैं जिन्हें सर्विस छोड़कर राजनीति में आए बहुत ज्यादा वक्त नहीं हुआ है. मगर, अफसर से नेता बनने वालों की सूची में पुराने और बड़े-बड़े नाम भी काफी रहे हैं. 

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ये नामचीन नेता भी रहे हैं अधिकारी

•    छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम अजित जोगी IPS और IAS दोनों सेवाओं के लिए चयनित हुए थे. वो डीएम भी रहे हैं. 
•    बिहार कैडर के IAS यशवंत सिन्हा बीजेपी में बड़े पदों पर रहे हैं. भारत सरकार में वित्त मंत्री भी रहे हैं. फिलहाल टीएमसी में हैं. 
•    मीरा कुमार एक IFS अफसर थीं, जो बाद में लोकसभा की स्पीकर भी रहीं. 
•    पूर्व केंद्रीय मंत्री कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर भी IFS रहे हैं. 
•    नटवर सिंह एक IFS अफसर थे, जो कांग्रेस के नेतृत्व वाली मनमोहन सरकार में विदेश मंत्री भी रहे. 
•    IRS रहे अरविंद केजरीवाल फिलहाल आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक हैं और दिल्ली के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. 
•    देश की पहली महिला IPS किरण बेदी ने 2007 में वीआरएस लिया था. किरण बेदी अन्ना आंदोलन का हिस्सा रहीं. इसके बाद राजनीति भी की. बीजेपी के टिकट पर दिल्ली में चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं. उपराज्यपाल बनाई गईं.

इनके अलावा मौजूदा मोदी कैबिनेट में मंत्री हरदीप सिंह पुरी भी IFS रहे हैं. एक और केंद्रीय मंत्री आरके सिंह IAS रहे हैं. विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी पहले मोदी सरकार में ही एक सचिव के तौर पर थे. जयशंकर IFS अधिकारी रहे हैं. 

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