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शिवसेना किसकी? शिंदे ने EC को सौंपे दस्तावेज, उद्धव अभी भी कर रहे इंतजार

महाराष्ट्र में शिवसेना पर कब्जे की तैयारी में लगे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अभी चुनाव आयोग को इससे जुड़े जरूरी दस्तावेज सौंप दिए हैं. लेकिन उद्धव ठाकरे को जो दस्तावेज चुनाव आयोग को देने थे, उन्होंने वो अभी तक नहीं दिए हैं

उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे
ऐश्वर्या पालीवाल/संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 08 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 11:00 PM IST

महाराष्ट्र में शिवसेना पर कब्जे की तैयारी में लगे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अभी चुनाव आयोग को इससे जुड़े जरूरी दस्तावेज सौंप दिए हैं. लेकिन उद्धव ठाकरे को जो दस्तावेज चुनाव आयोग को देने थे, उन्होंने वो अभी तक नहीं दिए हैं आज दोपहर एक बजे तक दोनों खेमों को अपने-अपने दस्तावेज देने थे.

अब जब डेडलाइन निकल चुकी है, ऐसे में उद्धव खेमा क्या करने वाला है, क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेगा या फिर कोई दूसरी रणनीति, इसी पर सभी की नजर रहने वाली है. सवाल ये भी उठ रहे हैं कि जब उद्धव की तरफ से लगातार दावा किया जा रहा है कि असल शिवसेना वहीं हैं, ऐसी स्थिति में वे इतनी देरी क्यों कर रहे हैं? अभी तक ना शिंदे खेमे ने इस देरी पर कोई प्रतिक्रिया दी है और ना ही उद्धव खेमे की तरफ से कोई जवाब आया है. 

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जानकारी के लिए बता दें कि आज सोमवार तक दोनों उद्धव खेमे और शिंदे खेमे को अपने दावों को पुख्ता करने के लिए कुछ दस्तावेज सौंपने थे. इन दस्तावेजों में आंतरिक चुनावों का इतिहास, नेताओं को मिली जिम्मेदारी जैसे पहलू शामिल थे. इसके अलावा पार्टी का क्या संविधान रहा है, इस पर भी विस्तृत रिपोर्ट देनी थी. लेकिन सिर्फ शिंदे गुट की तरफ से जरूरी दस्तावेज आए हैं. अगर उद्धव खेमा भी दस्तावेज दे देता तो चुनाव आयोग इस मामले में आगे की सुनवाई कर सकता था.

वैसे सुप्रीम कोर्ट ने जरूर अपनी पिछली सुनवाई में कहा था कि इस मामले में चुनाव आयोग जल्दबाजी में कोई फैसला ना सुनाए, लेकिन अगर दोनों खेमों की तरफ से जरूरी दस्तावेज जमा करवा दिए जाते तो इस मामले में कुछ बड़े डेवलपमेंट हो सकते थे.

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यहां ये जानना जरूरी हो जाता है कि सुप्रीम कोर्ट में दोनों गुटों की तरफ से कुछ बड़े दावे पहले ही किए जा सकते हैं. पिछली सुनवाई के दौरान शिंदे गुट की ओर से कहा गया था कि एक लोकतांत्रिक पार्टी के सदस्यों ने अपनी स्वतंत्र इच्छा से फैसला किया है. लेकिन अब इस लोकतांत्रिक निर्णयों को चुनौती देने का प्रयास ठाकरे गुट कर रहा है. ये अलोकतांत्रिक, गैरकानूनी और असंवैधानिक है. वहीं उद्धव गुट ने मांग की थी कि 27 जून 2022 की स्थिति को फिर बहाल किया जाए.

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