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चाचा का नाम, चाचा की फोटो और चाचा से ही बगावत... शिंदे से अजित पवार ने ये क्या सीखा!

अजित पवार की बगावत के बाद अब एनसीपी पर कब्जे की जंग शुरू हो गई है. दोनों गुटों ने एनसीपी के नाम और पार्टी सिंबल को लेकर चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया है. अजित पवार भले ही असली एनसीपी होने का दावा कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद वे अपने चाचा शरद पवार के नाम और फोटो का इस्तेमाल करने में कोई हिचक नहीं दिखा रहे हैं. माना जा रहा है कि अजित पवार एकनाथ शिंदे के नक्शेकदम पर आगे बढ़ रहे हैं.

अजित पवार और शरद पवार (फाइल फोटो) अजित पवार और शरद पवार (फाइल फोटो)
प्रभंजन भदौरिया
  • मुंबई,
  • 05 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 6:14 PM IST

एनसीपी नेता अजित पवार अपने चाचा शरद पवार से बगावत कर 8 बागी विधायकों के साथ रविवार को एकनाथ शिंदे सरकार में शामिल हो गए. इसके बाद अजित पवार ने एनसीपी पर भी दावा ठोक दिया. अजित गुट का दावा है कि उनके साथ 40 विधायक हैं. उन्होंने पार्टी के नाम और सिंबल की लड़ाई चुनाव आयोग में भी लड़ने की तैयारी कर ली है. खास बात ये है कि भले ही अजित पवार ने शरद पवार के साथ बगावत की हो, लेकिन उनके प्रति रुख नरम अपनाए हुए हैं. इतना ही नहीं अजित पवार अब शरद पवार के नाम और फोटो के सहारे आगे बढ़ने की कोशिश में जुटे हैं. जब उनसे पूछा गया कि एनसीपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन होगा...? इस पर अजित ने कहा, क्या आप भूल गए हैं कि शरद पवार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. इसके साथ ही उन्होंने शरद पवार के सामने सुलह का भी फॉर्मूला रखा. 

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गुरु हैं शरद पवार- भुजबल और प्रफुल्ल पटेल

अजित पवार ही नहीं, बल्कि छगन भुजबल और प्रफुल्ल पटेल समेत उनके गुट के सभी नेताओं का शरद पवार के प्रति नरम है. माना जा रहा है कि यह सब अजित गुट की रणनीति के तहत हो रहा है. यही वजह है कि भले ही शरद पवार ने राज्यसभा सांसद प्रफुल्ल पटेल को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. इसके बावजूद पटेल ने शरद पवार को राजनीतिक गुरु बताया. प्रफुल्ल पटेल ने कहा, शरद पवार हमारे मेंटर और गुरु हैं. हम हमेशा उनका और उनके पद का सम्मान और आदर करेंगे. वे हमारे लिए पिता के समान हैं. 

वहीं, अजित गुट में शामिल छगन भुजबल ने कहा, हमने अपना काम किया. ये फैसले एक दिन में नहीं लिए जाते. हमने पार्टी के लिए जो अच्छा है, वह किया है. हमने एनसीपी को सत्ता में लाकर शरद पवार को गुरुदक्षिणा दी है. उनके भतीजे डिप्टी सीएम बने हैं. हमने यह सब योजना के तहत किया है. अगर शरद पवार 60 सालों से राजनीति में हैं, तो हम भी 56 साल से राजनीति कर रहे हैं. हम इस लड़ाई को चुनाव आयोग में लड़ेंगे.  

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शरद पवार की फोटो का इस्तेमाल कर रहा अजित गुट

अजित पवार गुट चाचा से बगावत करने के बावजूद उनकी फोटो का इस्तेमाल करने में हिचक नहीं दिखा रहे हैं. अजित पवार ने मंगलवार को एनसीपी के नए दफ्तर का उद्घाटन किया था. इस दौरान भी शरद पवार की फोटो लगाई गई थी. इतना ही नहीं उनके सभी कार्यक्रमों में लगे पोस्टरों में शरद पवार नजर आ रहे हैं. बुधवार को बुलाई गई विधायक दल की बैठक में भी शरद पवार के पोस्टर लगाए गए हैं.   

हालांकि, शरद पवार ने मंगलवार को उनकी फोटो का इस्तेमाल करने पर आपत्ति जताई थी. शरद पवार ने कहा था, मेरी तस्वीर मेरी अनुमति के बिना न इस्तेमाल की जाए. जो मेरे विचारों के खिलाफ है, जिनसे मेरे वैचारिक मतभेद हैं, वे मेरी तस्वीर का इस्तेमाल ना करें. मेरी तस्वीर कौन इस्तेमाल करेगा, वो मेरा अधिकार है. मैं जिस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष हूं, उस पार्टी के महाराष्ट्र के अध्यक्ष जयंत पाटील है और यही पार्टी मेरी तस्वीर का इस्तेमाल कर सकती है. 

आपत्ति के बावजूद लगाई गई शरद पवार की फोटो
 
शरद पवार की आपत्ति के बावजूद बुधवार को अजित पवार खेमे की बैठक के दौरान लगे पोस्टरों में उनकी फोटो का इस्तेमाल किया गया. वहीं, जब प्रफुल्ल पटेल से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, हम उनकी तस्वीर का इस्तेमाल अनादर के लिए नहीं कर रहे हैं, बल्कि हम उनके प्रति अपनी श्रद्धा दिखा रहे हैं. 

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- क्या एकनाथ शिंदे की राह पर अजित पवार?

माना जा रहा है कि अजित पवार एकनाथ शिंदे की राह पर चल रहे हैं. एक साल पहले जब एकनाथ शिंदे ने शिवसेना से बगावत की थी, तो उन्होंने नई पार्टी का गठन नहीं किया था. बल्कि 40 विधायकों के साथ पूरी शिवसेना पर ही दावा ठोक दिया था. इसके साथ ही उन्होंने अपने गुट वाली शिवसेना को बालासाहेब की असली शिवसेना बताया था. एकनाथ शिंदे अपने बयानों में यह लगातार दोहराते रहे थे कि उद्धव ठाकरे ने सीएम की कुर्सी के लिए बाला साहेब के विचारों से समझौता किया और कांग्रेस-एनसीपी से हाथ मिलाया. 

इतना ही नहीं सीएम की कुर्सी संभालने के बाद भी एकनाथ शिंदे बालासाहेब के नाम और फोटो का इस्तेमाल कर रहे हैं. हालांकि, बाद में चुनाव आयोग ने विधायकों और सांसदों के समर्थन के आधार पर एकनाथ शिंदे गुट को ही असली शिवसेना माना और उन्हें ही पार्टी का सिंबल 'तीर कमान' सौंपा. चुनाव आयोग के इस फैसले पर एकनाथ शिंदे ने कहा था कि यह बालासाहेब के विचारों और विरासत की जीत है. 

 

दरअसल, महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना का वजूद ही बालासाहेब ठाकरे और उनकी विचारधारा से है. बालासाहेब ने शिवसेना का न सिर्फ गठन किया, बल्कि उसे राज्य में पहचान दिलाई और सत्ता तक पहुंचाया. बालासाहेब के नाम पर ही पार्टी का कैडर शिवसेना से जुड़ा हुआ है. ऐसे में  एकनाथ शिंदे को एहसास है कि भले ही उन्होंने उद्धव ठाकरे से बगावत कर राज्य की सत्ता हासिल कर ली हो, लेकिन उन्हें राजनीति में आगे बढ़ना है, तो बालासाहेब के नाम के बिना ये संभव नहीं है. यही वजह है कि वे बालासाहेब के नाम पर ही शिवसेना के असली कैडर को अपने आप से जोड़े रखने की कोशिश में जुटे हैं.

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- अजित के लिए शरद पवार का नाम कितना जरूरी?

वहीं, बालासाहेब की तरह ही शरद पवार ने एनसीपी की नींव रखी. कांग्रेस जैसी पार्टी से अलग होकर एनसीपी को शून्य से कई बार महाराष्ट्र की सत्ता तक पहुंचाया. शरद पवार की वजह से ही  पार्टी का कैडर एनसीपी के साथ है. ऐसे में अजित पवार यह दिखाने की कोशिश में लगे हैं, भले ही मुद्दों को लेकर उनके टकराव हैं, लेकिन वे अभी अजित पवार से अलग नहीं हैं. यही वजह है कि उन्होंने अपने गुट की एनसीपी के महाराष्ट्र अध्यक्ष का ऐलान तो किया, लेकिन जब राष्ट्रीय अध्यक्ष के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, आप भूल गए क्या कि शरद पवार एनसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. 

 

 

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