
उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. ठाकरे के इस्तीफे के साथ ही महा विकास अघाड़ी की 31 महीने पुरानी सरकार गिर गई है. उद्धव ठाकरे सरकार का काउंटडाउन 21 जून की रात से ही तब शुरू हो गया था, जब एकनाथ शिंदे अपने साथ 13 विधायकों को लेकर सूरत के एक होटल में चले गए थे. वहीं, जैसे-जैसे दिन गुजरते गए, वैसे-वैसे शिंदे के खेमा बढ़ता गया और उद्धव ठाकरे के हाथों से सत्ता की डोर खिसकती गई और बुधवार शाम पूरी तरह से निकल गई.
महाराष्ट्र में शिवसेना और उद्धव ठाकरे के लिए एकनाथ शिंदे भले ही 'विलेन' बन गए, लेकिन बीजेपी के लिए वो 'हीरो' बन गए. अब महा विकास अघाड़ी सरकार गिरने के बाद अब बीजेपी की दोबारा वापसी लगभग तय हो गई है. बताया जा रहा है कि जल्द ही शिंदे गुट और बीजेपी मिलकर राज्यपाल के सामने सरकार बनाने का दावा पेश कर सकते हैं. सूत्रों का कहना है कि अगले 48 घंटे में मुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम पद की शपथ भी हो जाएगी. हालांकि, अभी तक नाम नहीं आया है कि कौन सीएम बनेगा और कौन डिप्टी सीएम?
2019 में बीजेपी महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन शिवसेना के नाता तोड़ने के चलते सरकार बनाने से महरूम रह गई थी. बीजेपी के लिए यह सियासी तौर पर काफी बड़ा झटका था, क्योंकि साल 2014 के बाद पहली बार किसी ने सियासी मात दी थी. उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर सरकार ही नहीं बनाई बल्कि मुख्यमंत्री बन गए थे.
बीजेपी इसी के बाद से उद्धव ठाकरे की सरकार के तख्ता पलट की योजना बना रही थी, लेकिन अमलीजामा नहीं पहना पा रही थी. ऐसे में बीजेपी को उद्धव ठाकरे और शिवसेना के मजबूत सिपहसलार एकनाथ शिंदे का साथ मिला, जिसके जरिए सत्ता में वापसी की इबारत लिखी गई. यही वजह है कि शिंदे का सियासी कद बीजेपी की सरकार में बढ़ना तय है, क्योंकि उनके दम पर बीजेपी का सपना साकार होने जा रहा है.
बहरहाल, महाराष्ट्र चौथा राज्य है जहां अपनी ही पार्टी की चूलें हिलाकर नेताओं ने बीजेपी को सत्ता तक पहुंचा दिया. इससे पहले मध्य प्रदेश, अरुणाचल और उत्तराखंड में भी ऐसा ही हो चुका है.
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उत्तराखंडः हरक सिंह रावत और विजय बहुगुणा
- मार्च 2016 में कांग्रेस के 36 में से 9 विधायक बागी हो गए. इनमें कांग्रेस के दिग्गज नेता विजय बहुगुणा और हरक सिंह रावत का नाम सामने आया. ये दोनों नेता कांग्रेस के 9 बागी विधायक को लेकर बीजेपी के साथ चले गए. बीजेपी के तब 27 विधायक थे. कांग्रेस के बागी विधायकों के साथ मिलकर बीजेपी ने सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया.
- हालांकि, विधानसभा के तत्कालीन स्पीकर ने कांग्रेस के बागी विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया. राज्यपाल ने उसी दिन राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर फ्लोर टेस्ट हुआ. बागी विधायकों को इससे दूर रहने का आदेश दिया गया.
- फ्लोर टेस्ट में हरीश रावत ने अपनी सरकार तो बचा ली, लेकिन अगले साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बगावत का बहुत भारी नुकसान हुआ. बीजेपी 69 में से 57 सीट जीतने में कामयाब रही जबकि कांग्रेस 11 सीटों पर सिमट कर रह गई. हरक सिंह रावत से लेकर कांग्रेस के कई बागी नेता बीजेपी सरकार में मंत्री बने. हालांकि, हरक सिंह रावत और यशपाल आर्य जैसे नेता 2022 के चुनाव में घर वापसी कर गए हैं.
अरुणाचलः पेमा खांडू पूरी कांग्रेस को ले गए
- 2016 अरुणाचल प्रदेश की राजनीति के लिए उठा-पठक वाला रहा. 2014 में यहां विधानसभा चुनाव हुए थे. कांग्रेस ने 60 में से 47 सीटें जीतीं. नबाम टुकी मुख्यमंत्री बनाए गए. लेकिन डेढ़ साल बाद ही टुकी के खिलाफ कांग्रेस के 21 विधायक बागी हो गए. बाद में यहां राष्ट्रपति शासन लग गया.
- फिर बीजेपी के समर्थन से कालिखो पुल मुख्यमंत्री बने. कांग्रेस ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने नबाम टुकी की सरकार बहाल करने का निर्देश दिया. लेकिन चार दिन बाद टुकी की जगह पेमा खांडू को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बना दिया.
- पेमा खांडू का 44 विधायकों ने समर्थन किया. इनमें कांग्रेस समेत वो असंतुष्ट विधायक भी शामिल थे, जो पहले पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल में शामिल हो गए थे. पीपीए बीजेपी की सहयोगी थी. दो महीने बाद कांग्रेस को झटका तब लगा, जब पेमा खांडू और 42 अन्य विधायक पीपीए में शामिल हो गए और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई.
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मध्य प्रदेशः ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत
- 2018 के विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. कांग्रेस ने बीएसपी और निर्दलीयों के समर्थन से सरकार बनाई और मुख्यमंत्री का ताज कमलनाथ के सिर सजा. लेकिन, 15 महीने के बाद ही कमलनाथ के खिलाफ ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बगावत कर दी.
- मार्च 2020 में सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी. सिंधिया के साथ-साथ उनके समर्थक 22 कांग्रेसी विधायक भी बागी हो गए. बाद में सभी बागी विधायकों को बेंगलुरु ले जाया गया. हालांकि, कांग्रेस ने सिंधिया को मनाने की तमाम कोशिशें कीं, लेकिन वो नहीं माने.
- सिंधिया की बगावत से कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गई और 20 मार्च 2020 को कमलनाथ ने इस्तीफा दे दिया. बीजेपी के शिवराज सिंह चौहान फिर से मुख्यमंत्री बन गए. बाद में बागी कांग्रेसी विधायकों ने बीजेपी के टिकट पर उपचुनाव लड़ा. सिंधिया को बीजेपी ने राज्यसभा भेजा.