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महाराष्ट्र की Inside Story: MLC चुनाव, उद्धव से नाराजगी और हिंदू वोटों का गणित, समझिए कैसे बदल गया सियासी सीन

एकनाथ शिंदे की बगावत कुछ ही घंटों की नहीं है, बल्कि इसकी शुरुआत 2019 में ही शुरू हो गई थी. एकनाथ शिंदे हमेशा से बीजेपी के साथ गठबंधन के पक्ष में थे. जब 2019 में उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस-एनसीपी के साथ सरकार बनाने का फैसला किया तब भी वो बीजेपी के साथ गठबंधन में सरकार बनाने के पक्ष में थे.

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aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 22 जून 2022,
  • अपडेटेड 3:23 PM IST
  • आदित्य ठाकरे ने अपने ट्विटर बॉयो से मंत्री पद हटाया
  • चर्चा है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस्तीफा दे सकते हैं

महाराष्ट्र में बड़ा सियासी संकट खड़ा हो गया है. शिवसेना नेता और उद्धव सरकार में मंत्री एकनाथ शिंदे के बागी तेवर से महा विकास अघाड़ी सरकार खतरे में आ गई है. कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस्तीफा दे सकते हैं. बेटे आदित्य ठाकरे ने अपने ट्विटर बॉयो से मंत्री पद हटा लिया है. गठबंधन के साथी कांग्रेस और एनसीपी तसल्ली के लिए ये कह रहे हैं कि हम स्थिति से निपट लेंगे, लेकिन वर्तमान सियासी समीकरण MVA के पक्ष में नहीं दिख रहा है. 

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बताया जा रहा है कि हाल ही में हुए MLC चुनाव, शिवसेना में सीएम उद्धव से नाराजगी और हिंदू वोटों का सटीक गणित ना बैठने से MVA सरकार की नैया बीच मझधार में फंसी है. महाराष्ट्र में ये पूरा घटनाक्रम विधान परिषद की 10 सीटों पर हुए चुनाव के बाद सामने आया. विधानपरिषद की कुल दस सीटों के लिए 11 उम्मीदवार मैदान में थे. इनमें से पांच उम्मीदवार भाजपा के और 6 महाविकास अघाड़ी गठबंधन के थे. बीजेपी के सभी पांचों उम्मीदवार जीत गए थे और MVA को तगड़ा झटका लगा था.

कहा जाता है कि चुनाव से पहले ही महाविकास अघाड़ी गठबंधन का समीकरण बिगड़ा हुआ था. सहयोगी दलों द्वारा एक-दूसरे को अपने सरप्लस वोट ट्रांसफर करने पर भी सहमति नहीं थी. इसके बाद शिवसेना ने कहा था कि सभी दल अपने-अपने उम्मीदवारों के लिए खुद से वोट जुटाएंगे. इसकी बुनियाद राज्यसभा चुनाव में मिली हार के बाद पड़ चुकी थी, जब शिवसेना को उम्मीदवार को वहां मुंह की खानी पड़ी थी. वहीं, MLC चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस के भाई जगताप ने कहा था कि हमारे अपनों ने ही गद्दारी की है. सोनिया गांधी से इसकी शिकायत की जाएगी.  

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बगावत कुछ ही घंटों की नहीं है... 

वहीं, एकनाथ शिंदे की बगावत कुछ ही घंटों की नहीं है, बल्कि इसकी शुरुआत 2019 में ही शुरू हो गई थी. एकनाथ शिंदे हमेशा से बीजेपी के साथ गठबंधन के पक्ष में थे. जब 2019 में उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस-एनसीपी के साथ सरकार बनाने का फैसला किया तब भी वो बीजेपी के साथ गठबंधन में सरकार बनाने के पक्ष में थे. लेकिन आखिर में उद्धव ठाकरे की मर्जी के मुताबिक, एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन की सरकार बनी.

आदित्य ठाकरे के साथ कई मुद्दों पर रहा विवाद

महाविकास अघाड़ी में शिंदे को शहरी विकास मंत्रालय दिया गया, लेकिन आदित्य ठाकरे के साथ कई मुद्दों पर विवाद रहा. बताया जा रहा है कि शिंदे अपने मंत्रालय में आदित्य ठाकरे के दखल से भी नाराज थे. यहां तक ​​कि अन्य विभाग एमएसआरडीसी (राज्य सड़क विकास) में भी आदित्य को बड़ी परियोजनाओं के लिए चेहरे के रूप में पेश किया जा रहा था. एकनाथ शिंदे ने राज्यसभा चुनाव में भी बीजेपी के साथ आने की राय रखी थी. यहां तक की बैठक में भी उन्होंने इसका प्रस्ताव रखा था, लेकिन संजय राउत ने इसका विरोध किया था. 

शेर चला गया तो सवा शेर आ गया...

शिवसेना के स्थापना दिवस पर उद्धव ठाकरे ने कहा था कि जो लोग बगावत करना चाहते हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि अगर शेर चला गया, तो सवा शेर आ गया है. ऐसे में एकनाथ शिंदे को एहसास हो गया था कि उनके दिन गिने चुने बचे हैं. शिवसेना के कई विधायक एनसीपी के खिलाफ चुनाव लड़कर जीते थे. ऐसे में शिवसेना के विधायक नाखुश थे कि एनसीपी नेतृत्व अपने विधायकों को ज्यादा फंड के साथ मजबूत कर रहा है, जबकि शिवसेना के विधायकों को खाली हाथ रहना पड़ रहा है. इतना ही नहीं शिवसेना विधायकों की शिकायत रही है कि उद्धव ठाकरे उन्हें मिलने के लिए समय नहीं देते थे. यहां कि वो कई बार शिवसेना के वरिष्ठ नेताओं से भी मुलाकात नहीं करते थे. 

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बगावत की वजह दोस्ती!

'ऑपरेशन लोटस' के सबसे बड़े किरदार मतलब एकनाथ शिंदे और पूर्व CM देवेंद्र फडणवीस की दोस्ती का सभी भी को पता है. फडणवीस सरकार में उनके पास PWD मंत्रालय था. बाला साहब के जाने के बाद एकनाथ शिंदे ही BJP और शिवसेना के बीच एक अहम कड़ी थे. समृद्धि एक्सप्रेसवे प्रोजेक्ट के दौरान फडणवीस और शिंदे की राजनीतिक दोस्ती और मजबूत हुई. इस बगावत को उसी दोस्ती का परिणाम माना जा रहा है.

किसके पास कितने विधायक? 

2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना के 56 विधायक जीतकर आए थे, जिनमें से एक विधायक का निधन हो चुका है. इसके चलते 55 विधायक फिलहाल शिवसेना के हैं. एकनाथ शिंदे का दावा है कि उनके साथ 40 विधायक हैं. ऐसे में ये सभी 40 विधायक अगर शिवसेना के हैं तो फिर उद्धव ठाकरे लिए संकट काफी बड़ा है. इस तरह से एकनाथ शिंदे अगर कोई कदम उठाते हैं तो दलबदल कानून के तहत कार्रवाई भी नहीं होगी. 

दरअसल, दलबदल कानून कहता है कि अगर किसी पार्टी के कुल विधायकों में से दो-तिहाई के कम विधायक बगावत करते हैं तो उन्हें अयोग्य करार दिया जा सकता है. इस लिहाज से शिवसेना के पास इस समय विधानसभा में 55 विधायक हैं. ऐसे में दलबदल कानून से बचने के लिए बागी गुट को कम के कम 37 विधायकों (55 में से दो-तिहाई) की जरूरत होगी जबकि शिंदे अपने साथ 40 विधायकों का दावा कर रहे हैं. ऐसे में उद्धव ठाकरे के साथ 15 विधायक ही बच रहे हैं. इस तरह उद्धव से ज्यादा शिंदे के साथ शिवसेना के विधायक खड़े नजर आ रहे हैं. वहीं, एकनाथ शिंदे ने कहा है कि हम बाला साहेब ठाकरे के हिंदुत्व को आगे बढ़ाएंगे. ऐसे में शिवसेना में टूट के आसार भी बन गए हैं. 

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