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तीन IPS अधिकारियों पर ममता और मोदी सरकार में ठनी, लेकिन क्या कहते हैं नियम?

नरेंद्र मोदी सरकार ने गुरुवार को पश्चिम बंगाल सरकार से कहा कि तीन आईपीएस अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर तुरंत रिलीव किया जाए. ये टकराव केंद्र और राज्य के संबंधों में एक और गिरावट का संकेत है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (फाइल फोटो- PTI) पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (फाइल फोटो- PTI)
राहुल श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 18 दिसंबर 2020,
  • अपडेटेड 10:35 PM IST
  • केंद्र और बंगाल सरकार के बीच छिड़ी जंग
  • तीनों अधिकारियों को नई जिम्मेदारी दी गई है
  • बंगाल सरकार बोली- रिलीव करने में असमर्थ

तीन आईपीएस अधिकारियों को लेकर केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच जंग छिड़ गई है. नरेंद्र मोदी सरकार ने गुरुवार को पश्चिम बंगाल सरकार से कहा कि तीन आईपीएस अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर तुरंत रिलीव किया जाए. ये टकराव केंद्र और राज्य के संबंधों में एक और गिरावट का संकेत है.

सूत्रों ने बताया कि केंद्र सरकार की ओर से राज्य को सूचित किया गया है कि तीनों अधिकारियों को नई जिम्मेदारी दे दी गई है. ये तीनों अधिकारी हैं: राजीव मिश्रा, एडीजी, दक्षिण बंगाल; भोलानाथ पांडे, एसपी, डायमंड हार्बर; और प्रवीण त्रिपाठी, डीआईजी, प्रेसीडेंसी रेंज.

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9-10 दिसंबर को बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा पश्चिम बंगाल यात्रा पर थे. इस दौरान डायमंड हार्बर में उनके काफिले पर हमला किया गया था. संयोगवश, ये तीनों अधिकारी अपनी पोस्टिंग के आधार पर उनकी सुरक्षा के लिए जिम्मेदार थे.

यात्रा के दौरान नड्डा के काफिले में कई वाहनों पर कथित रूप से हमला किया गया. डायमंड हार्बर क्षेत्र के सिरकोल में बीजेपी के कई नेताओं और कार्यकर्ताओं पर प्रदर्शनकारियों ने पत्थरबाजी की जिसमें उन्हें चोटें आईं. बीजेपी नेताओं ने आरोप लगाया था कि हमलावर टीएमसी के झंडे लिए हुए थे.

सीएम ममता की तीखी प्रतिक्रिया

पश्चिम बंगाल में तृणमूल सरकार ने इस घटना पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और केंद्र के आदेशों की अवहेलना करने की धमकी दी है. बंगाल सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को सूचना दी है कि वह तीनों अधिकारियों को रिलीव करने में असमर्थ है, इसके बाद केंद्र ने और सख्त रुख अपनाया है.

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सीएम ममता बनर्जी ने ट्विटर पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "राज्य की आपत्ति के बावजूद, पश्चिम बंगाल के तीन सेवारत IPS अधिकारियों की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए केंद्र सरकार का आदेश, IPS कैडर रूल 1954 के एमरजेंसी प्रावधानों और पॉवर का घोर दुरुपयोग है."

उन्होंने कहा, "यह और कुछ नहीं, बल्कि राज्य के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करने और पश्चिम बंगाल में सेवारत अधिकारियों को हतोत्साहित करने का जानबूझकर किया गया प्रयास है. यह कदम, खासकर चुनाव से पहले, संघीय ढांचे के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है. यह असंवैधानिक और पूरी तरह से अस्वीकार्य है."

उन्होंने कहा, "हम केंद्र को छद्म रूप से राज्य मशीनरी को नियंत्रित करने की अनुमति नहीं देंगे. पश्चिम बंगाल सरकार विस्तारवादी और अलोकतांत्रिक ताकतों के सामने झुकने वाली नहीं है." ममता बनर्जी के एक मंत्री सुब्रत मुखर्जी ने कहा, "हम इस आदेश को स्वीकार नहीं करते. हम उन अधिकारियों को नहीं भेजेंगे."

क्या कहती है रुलबुक

तीनों अधिकारियों को लेकर केंद्र और राज्य अब राजनीति को हवा देने वाली एक बेकार की लड़ाई में उलझ गई हैं. लेकिन रूलबुक क्या कहती है? यूपी पुलिस के पूर्व डीजी डॉ विक्रम सिंह ने कहा, "नियम एकदम साफ हैं. किसी IPS अधिकारी की प्रतिनियुक्ति के मामले पर अगर केंद्र और राज्य के बीच असहमति है तो केंद्र की इच्छा प्रबल होगी."

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पूर्व वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी और रिटायर्ड आईपीएस ऑफिसर्स एसोसिएशन की कार्यकारी समिति के सदस्य डीएन श्रीवास्तव कहते हैं, "IPS कैडर की नियुक्ति का प्राधिकारी भारत का राष्ट्रपति है. ये अधिकारी राज्यों में केंद्र की ओर से 'भेजे' जाते हैं और केंद्र का फैसला अंतिम है."

हालांकि, इंटेलिजेंस ब्यूरो का नेतृत्व कर चुके एक और पूर्व आईपीएस अधिकारी ने कहा, "राज्य कोर्ट जा सकता है. यह रूलबुक से अलग राज्य के पास एक रास्ता है. लेकिन अदालत के पुराने आदेश मौजूद हैं जहां राज्य की चुनौती को दरकिनार कर दिया गया." उन्होंने कहा, "IPS की नियुक्ति का अधिकार भारत के राष्ट्रपति के पास है और किसी भी विवाद की स्थिति में केंद्र की बात मानी जाएगी." अगर कोई भी इस बारे में निर्देश देने वाली रूलबुक देखे तो केंद्र का पलड़ा भारी है.

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इंडियन पुलिस सर्विस (कैडर) रूल्स, 1954

(1) रूल 5 (1) के मुताबिक,  "विभिन्न कैडर्स में अधिकारियों को कैडर आवंटन संबंधित राज्य सरकार या राज्य सरकारों की सलाह पर केंद्र सरकार द्वारा किया जाएगा." इसके अलावा केंद्र सरकार संबंधित राज्य सरकारों की सहमति से एक कैडर अधिकारी को दूसरे कैडर में स्थानांतरित कर सकती है. इसलिए एक राज्य के अधिकारी का दूसरे कैडर में तबादला करने के लिए राज्य सरकार की सहमति आवश्यक है.

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(2) रूल 6(1) ये भी कहता है कि "किसी भी असहमति की स्थिति में, केंद्र सरकार द्वारा लिया गया निर्णय माना जाएगा और संबंधित राज्य सरकार या राज्य सरकारें पर केंद्र सरकार का निर्णय प्रभावी होगा."

ऑल इंडिया सर्विस एक्ट 1951

आईएएस और अन्य ऑल इंडिया सर्विसेज के मामले में, अधिकारियों की एक कैडर से दूसरे में तैनाती के बारे में केंद्र का निर्णय मान्य होगा. नियम 6 कहता है, "राज्य के अधिकारी की प्रतिनियुक्त को राज्य सरकार के परामर्श से अंतिम रूप दिया जाएगा. अगर उनके बीच कोई मतभेद है तो इस मामले को भारत सरकार के पास भेजा जा सकता है."

IPS अधिकारियों पर टकराव के पिछले उदाहरण

इस तरह के टकराव का सबसे नाटकीय उदाहरण 2001 में तमिलनाडु का है जब केंद्र ने तमिलनाडु से तीन आईपीएस अधिकारियों को वापस बुलाने का फैसला किया. ये अधिकारी थे- चेन्नई के पुलिस कमिश्नर के मुथुकरुप्पन, ज्वाइंट कमिश्नर एस जॉर्ज और डिप्टी ​कमिश्नर क्रिस्टोफर नील्सन.

अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को उसके सहयोगी डीएमके के कारण यह सख्त निर्णय लेना पड़ा था. डीएमके की उस समय मुख्यमंत्री जे जय​ललिता से ठनी हुई थी. डीएमके का दावा था कि 30 जून को डीएमके प्रमुख एम करुणानिधि के ओलिवर रोड, चेन्नई स्थित आवास पर देर रात जो हमला हुआ उसमें ये तीनों अधिकारी मुख्यमंत्री जयललिता के आदेश पर संलिप्त थे.

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डीएमके ने संसद में अपनी संख्या इस्तेमाल करते हुए, यहां तक कि लोकसभा की विशेषाधिकार समिति की ओर से पुलिस अधिकारियों को संसद में पेश होने का नोटिस भिजवाया. केंद्र ने राज्य सरकार के खिलाफ अपने अधिकार का इस्तेमाल किया. लेकिन ममता बनर्जी की तरह जयललिता ने भी न सिर्फ केंद्र के अनुरोध को ​दरकिनार कर दिया, बल्कि तीखा सियासी हमला किया.

यह पहली बार नहीं है जब पीएम मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार का  आईपीएस अधिकारियों को लेकर किसी राज्य सरकार के साथ टकराव हुआ हो. 2017 में वरिष्ठ IPS अधिकारी और सशस्त्र सीमा बल की महानिदेशक अर्चना रामासुंदरम ने सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (CAT) में उनके खिलाफ तमिलनाडु सरकार की "अनुशासनात्मक कार्रवाई" के खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई जीती थी.

अर्चना रामासुंदरम का संकट फरवरी 2014 में शुरू हुआ. वे ​तमिलनाडु में यूनीफॉर्म बोर्ड की प्रमुख थीं जिन्हें केंद्र ने सीबीआई का एडिशनल डायरेक्टर नियुक्त किया. लेकिन राज्य सरकार ने उन्हें रिलीव करने से इनकार कर दिया. केंद्र ने तीन रिमाइंडर भेजा लेकिन राज्य ने कोई जवाब नहीं दिया. नवनिर्वाचित मोदी सरकार ने 7 मई 2014 को अर्चना को सीबीआई पोस्ट ज्वाइन करने का आदेश दिया. उन्होंने यूनिफ़ॉर्म सर्विसेज बोर्ड में अपने बाद के अधिकारी को प्रभार सौंप दिया और उन्होंने नई दिल्ली में सीबीआई पोस्टिंग का चार्ज ले लिया. 

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8 मई को तमिलनाडु सरकार ने उन्हें सस्पेंड कर दिया और केंद्र को सूचना दी कि उन्हें चेन्नई भेजा ​जाए. 16 मई को केंद्र ने तमिलनाडु सरकार के आदेश को चुनौती दी और महीनों तक जवाब न देने के लिए राज्य सरकार की विफलता का हवाला देकर अपनी कार्रवाई को सही ठहराया.

जून, 2017 में तमिलनाडु सरकार ने अर्चना पर ड्यूटी नहीं निभाने का आरोप लगाया है और उन्हें फिर से सस्पेंड कर दिया. चूंकि राज्य द्वारा आईपीएस अधिकारी के निलंबन को केंद्र का अनुमोदन चाहिए होता है, इसलिए मोदी सरकार ने अर्चना की अपील पर सुनवाई करते हुए उनके निलंबन को रद्द कर दिया. लेकिन ये जंग यहीं खत्म नहीं हुई. राज्य सरकार अर्चना के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट गई लेकिन हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी. इस बीच अर्चना ने तमिलनाडु सरकार की कार्रवाई के खिलाफ CAT में अपील की और केस जीत गईं.ऐसा नहीं है कि सिर्फ बीजेपी सरकार का ही अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर राज्यों से टकराव हुआ हो. अक्सर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच ऐसे टकराव होते रहते हैं.


 

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