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Vice President Election: विपक्ष की उप-राष्ट्रपति कैंडिडेट मार्गरेट अल्वा से ममता बनर्जी ने क्यों बनाई दूरी?

Vice President Election: टीएमसी का कहना है कि विपक्ष ने TMC से सलाह किए बिना आल्वा को उप राष्ट्रपति पद के लिए मैदान में उतारा है. मसलन, ममता बनर्जी ने साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी उप राष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग से दूर रहेगी. ममता का यह निर्णय विपक्ष के लिए झटका हो सकता है. वहीं मार्गरेट अल्वा ने ममता के इस फैसले को निराशाजनक बताया है. उन्होंने कहा कि यह समय अहंकार या क्रोध का नहीं है. यह साहस, नेतृत्व और एकता का समय है.

मार्गरेट अल्वा और ममता बनर्जी (फाइल फोटो) मार्गरेट अल्वा और ममता बनर्जी (फाइल फोटो)
रोमिता दत्ता
  • कोलकाता,
  • 24 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 10:04 AM IST
  • 6 अगस्त को उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग
  • विपक्ष ने मार्गरेट आल्वा को बनाया है उम्मीदवार

Vice President Election: 6 अगस्त को उप-राष्ट्रपति चुनाव होना है. लेकिन तृणमूल कांग्रेस (TMC) प्रमुख ममता बनर्जी ने साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी उप-राष्ट्रपति चुनाव में मतदान से दूर रहेगी. हालांकि इस फैसले को विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा ने निराशाजनक बताया है. उन्होंने कहा कि यह समय अहंकार या क्रोध का नहीं है. यह साहस, नेतृत्व और एकता का समय है. वहीं ममता बनर्जी ने कहा कि अल्वा की उम्मीदवारी को लेकर उनसे "परामर्श" नहीं किया गया था. मतलब साफ है कि विपक्षी कैंडिडेट मार्गरेट अल्वा से ममता बनर्जी ने दूरी बना ली है. ऐसे में सवाल है कि आखिर कौन से कारण हैं, जिसके ममता ने ये कदम उठाया है.

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विपक्ष के उप-राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चयन में भी ममता का रुख अलग था. क्योंकि जब अल्वा के नाम की घोषणा की गई तो ममता की ओर से इस मामले में कोई भी बयान नहीं आया. जबकि टीएमसी ने कहा कि वह शहीद दिवस (21 जुलाई) की तैयारियों में व्यस्त थी.

TMC के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार ममता बनर्जी बिना सहमति के अल्वा को चुने जाने से नाराज हैं. इसके साथ ही उप-राष्ट्रपति चुनाव से ममता के खुद को दूर करने की एक वजह ये भी हो सकती है कि उन्हें विपक्षी नेताओं ने विश्वास में नहीं लिया. इसके अलावा एक कारण ये भी माना जा रहा है कि अपने कार्यकाल के दौरान अल्वा के साथ ममता के बहुत-सौहार्दपूर्ण समीकरण नहीं रहे. 

साल 1997 में ममता ने कोलकाता में एक पार्टी सम्मेलन के साथ कांग्रेस को चुनौती दी थी. वहीं, अल्वा ने अपनी आत्मकथा 'करेज एंड कमिटमेंट' में ममता के विभिन्न मौकों पर 'विद्रोही' रवैये के बारे में लिखा है. साथ ही बताया है कि कैसे कांग्रेस ने उनके पास शांति के लिए दूत भेजे. 

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ममता ने बैठकों से भी किया परहेज

ममता बनर्जी ने हाल ही में विपक्ष की ओर से बुलाई गई बैठकों से परहेज किया था. इसमें एक बैठक कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा बुलाई गई थी, जबकि दूसरी मीटिंग राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) सुप्रीमो शरद पवार द्वारा बुलाई गई थी. वहीं ममता बनर्जी ने विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को भेज दिया था. वहीं, जब उनके लिए प्रचार करने की बात आई तो ममता ने खुद को दूर कर लिया. इतना ही नहीं, उन्होंने सिन्हा को बंगाल में प्रचार करने के लिए भी आमंत्रित नहीं किया, बल्कि उन्हें TMC के सभी विधायकों और सांसदों के वोट का आश्वासन दिया था.

विपक्ष के हो सकता है बड़ा झटका
 

राष्ट्रपति पद की दौड़ में सिन्हा की हार के बाद टीएमसी में एक वर्ग ने दावा करना शुरू कर दिया है कि वह ममता की पसंद नहीं थे और उन्हें कांग्रेस और सीपीआई (M) द्वारा संयुक्त रूप से उन्हें उतारा गया था. जहां तक ​​विपक्ष के उप-राष्ट्रपति पद की लड़ाई का सवाल है, तो ममता बनर्जी स्पष्ट रूप से अलग दिख रही हैं. ममता का उप-राष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग से दूर रहने का निर्णय विपक्ष के लिए झटका हो सकता है. 

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टीएमसी के कुणाल घोष ने दिया संकेत!
 

टीएमसी के प्रवक्ता कुणाल घोष पहले ही कह चुके हैं कि ममता के लिए धनखड़ का सम्मान और प्रशंसा किसी से छिपी नहीं है. बंगाल के राज्यपाल और मुख्यमंत्री के रूप में दोनों नेताओं के बीच महत्वपूर्ण संबंध रहे हैं, उन्होंने एक-दूसरे पर भले ही तीखा हमला किया हो, लेकिन जब जरूरी मौके आए तो कई मुद्दों पर साथ बैठकर चर्चा भी की और चाय की चुस्कियां भी लीं. दार्जिलिंग में हाल ही में एक बैठक हुई थी, इसमें ममता बनर्जी, जगदीप धनखड़ के अलावा असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा भी मौजूद थे.

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