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कांग्रेस-BJP छोड़ बाकी दलों से मुलाकात, अब UPA पर सवाल, ममता की रणनीति से किसे नफा-किसे नुकसान?

बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने सपने को साकार करने के लिए इन दिनों एक तरफ दूसरे दलों के नेताओं को तोड़कर अपने साथ मिलाने में जुटी हैं तो दूसरी तरफ बीजेपी-कांग्रेस को छोड़कर बाकी अन्य दलों के साथ मेल-मिलाप कर उन्हें एकजुट करने की मुहिम पर लगी है.

ममता बनर्जी और शरद पवार ममता बनर्जी और शरद पवार
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 02 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 2:05 PM IST
  • ममता विपक्षी दलों को एकजुट करने में जुटी
  • कांग्रेस का विकल्प बन पाएंगीं ममता बनर्जी?
  • ममता अब राहुल पर भी खड़े कर रही सवाल

प्रधानमंत्री मोदी के सामने 2024 में विपक्ष का चेहरा बनने के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अभी से कवायद में जुट गई है. ममता अपने सपने को साकार करने के लिए इन दिनों एक तरफ दूसरे दलों के नेताओं को तोड़कर अपने साथ मिलाने में जुटी हैं तो दूसरी तरफ बीजेपी-कांग्रेस को छोड़कर बाकी अन्य दलों के साथ मेल-मिलाप कर उन्हें एकजुट करने की मुहिम पर लगी है. इतना ही नहीं ममता अब तो कांग्रेस के अगुवाई वाले यूपीए गठबंधन की प्रासंगिकता पर भी सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि ममता की रणनीति से किसे नफा और किसे नुकसान होगा? 

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ममता बनर्जी ने दो दिनों से महाराष्ट्र में डेरा जमा रखा है. शिवसेना प्रमुख व महाराष्ट्र सीएम उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे और एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाकात कर कांग्रेस को आईना दिख रही. ममता ने कहा कि अगर सारे क्षेत्रीय दल एक साथ आ जाएं तो बीजेपी को आसानी से हराया जा सकता है. इसी के साथ उन्होंने कांग्रेस के अगुवाई वाले यूपीए पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि यूपीए क्या है? अब कोई यूपीए नहीं है. 

ममता बनर्जी ने सीधे-सीधे सबकुछ दिया कि गैर एनडीए दलों का नेतृत्व कांग्रेस करे यह बात उन्हे मंजूर नहीं. साथ ही राहुल गांधी की राजनीतिक क्षमता पर भी ममता ने सवाल खड़े किए. उन्होंने कहा कि कोई व्यक्ति कुछ ना करे और सिर्फ विदेश में ही रहे तो काम कैसे चलेगा? साफ तौर पर कहा कि कांग्रेस को अब विपक्षी एकता में बड़े भाई की भूमिका से दूर हो जाना चाहिए, क्योंकि उसकी पहली वाली हैसियत नहीं रही. ममता जब कांग्रेस पर हमलावर थी तो उनके बगल में शरद पवार खडे थे.

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ममता का क्षेत्रीय दलों को जोड़ने में जुटी

क्षेत्रीय दलों के साथ ममता के मुलाकात का संकेत है कि कांग्रेस फिलहाल बीजेपी को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है. साथ ही वह यह बताने की कोशिश कर रही हैं कि क्षेत्रीय ताकत वैकल्पिक समूह बनने के लिए बेहतर स्थिति में है. बनर्जी शायद संकेत दे रही थीं कि यह ऐसे समूह बनाने का समय है, जिसमें कांग्रेस न हो. इसीलिए उन्होंने यूपीए की प्रासंगिकता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिए. 

कांग्रेस के विकल्प बनने का ममता प्लान

ममता अब खुलकर कांग्रेस के खिलाफ उतर चुकी हैं. ऐसे में उनके इरादे साफ-साफ नजर आ रहे हैं. देश में कल तक जो जगह कांग्रेस की थी, वहां पर ममता बनर्जी खुद को खडी देख रही हैं..पिछली बार में कोलकाता से दिल्ली दौरे पर आईं तो सोनिया गांधी से शिष्टाचार मुलाकात की थी, लेकिन इस बार दिल्ली आना हुआ तो कांग्रेस से दूरियां बना रखा. उन्होंने न तो सोनिया से मिली और न ही राहुल से. गांधी परिवार से मुलाकात न होने के सवाल पर उन्होंने कहा था कि कोई जरूरी नहीं है कि हर बार मिला जाए. वहीं, ममता बनर्जी ने गांधी परिवार के धुर विरोधी माने जाने वाले बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी से मिली. 

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कांग्रेस के अगुवाई में 2004 में यूपीए का गठन

2004 लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी को सत्ता से बाहर रखना रखने के लिए सोनिया गांधी ने धर्मनिरपेक्ष विपक्ष दलों को एकजुट कर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) का गठन किया. यूपीए की अगुवाई कांग्रेस ने किया, जिसमें वामपंथी दलों के साथ आरजेडी, डीएमके, एनसीपी, पीएमके, टीआरएस, जेएमएम, एलजेपी, एमडीएमके, एआईएमआईएम, पीडीपी, आईयूएमएल, आरपीआई (ए), आरपीआई (जी) और केसी (जे) 14 दल शामिल हुए. 

कांग्रेस के अगुवाई वाले यूपीए में क्षेत्रीय दलों को साथ लाने में वामपंथी नेता हरकिशन सिंह सुरजीत की अहम भूमिका रही. हालांकि, साल 2008 में वामपंथी दलों ने यूपीए का साथ छोड़ दिया. इस तरह साल 2004 और साल 2014 के बीच कई दल इससे बाहर आए और साल 2014 में मिली हार के बाद गठबंधन अपने आप बिखरने लगा. डीएमके, एनसीपी और जेएमएम को छोड़कर बाकी दलों के साथ कांग्रेस के संबंध अब पहले की तरह नहीं है. 

कांग्रेस का गिरता सियासी ग्राफ 

2014 के बाद से कांग्रेस को लगातार असफलताओं का सामना करना पड़ रहा है. है. कांग्रेस को राज्यों में एक हार से दूसरी हार का सामना करना पड़ा है. राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर आंतरिक असंतोष और नेतृत्व के सवाल का समाधान करने में असमर्थता ने इस गति को और बढ़ा दिया है. विपक्ष में कई लोगों का मानना है कि कांग्रेस जरूरी नेतृत्व नहीं कर पा रही है.ऐसे में ममता बनर्जी ने मौके की नजाकत को देखते हुए कांग्रेस की भूमिका में खुद को स्थापित करने की कवायद में जुट गई हैं. 

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वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई कहते हैं कि बंगाल में तीसरी बार सीएम बनने के बाद से ममता बनर्जी राष्ट्रीय राजनीति में खुद को स्थापित करने में जुटी हैं. उन्हें लगता है कि वो विपक्षी दलों को जोड़कर 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का विकल्प बनी सकती हैं, लेकिन बिना कांग्रेस की कोई भी विपक्षी एकजुटता केंद्र की राजनीति में नहीं आ सकती है. ममता बनर्जी भले ही अभी कांग्रेस के कुछ नेताओं और कुछ क्षेत्रीय दलों को अपने साथ ले लिया हो, लेकिन पांच राज्यों के चुनाव के बाद सही तस्वीर सामने आएगी. 

पांच राज्यों के चुनाव के बाद असल तस्वीर

राशिद किदवाई कहते हैं कि कांग्रेस अगर पांच राज्यों में दो से तीन राज्य में सरकार बनाने में सफल रहती है तो ममता बनर्जी की सारी कवायद फेल हो जाएगी. कांग्रेस एक बार फिर से विपक्षी के तौर पर सबसे बड़ी दावेदार के रूप में होगी. कांग्रेस से कई दल टूटे, लेकिन कांग्रेस अपने वजूद को बचाए रखने में सफल रही है. ममता की रणनीति से अभी फिलहाल को कांग्रेस के लिए टेंशन बढ़ा रहा है, लेकिन 2024 का चुनाव अभी दूर है. ऐसे में 2018 में भी ममता इस तरह की कवायद कर चुकी हैं, लेकिन सफल नहीं रहीं. क्षेत्रीय दलों का आधार अपने राज्य से बाहर किसी दूसरे राज्य में नहीं रहा है जबकि कांग्रेस अभी का आधार अभी भी कई राज्यों में है. 

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शरद पवार विपक्षी खेमे को जरूरी नेतृत्व मुहैया नहीं कराने को लेकर कांग्रेस से नाराज हैं. बनर्जी के साथ उनकी मुलाकात के बाद पवार ने कहा कि विपक्षी दलों को एक मजबूत विकल्प देना होगा. यह पूछे जाने पर कि क्या कांग्रेस इस मजबूत विकल्प का हिस्सा होगी, उन्होंने कहा 'भाजपा का विरोध करने वाले सभी लोगों का हमारे साथ आने पर स्वागत है. किसी को बाहर करने का सवाल ही नहीं है. इससे साफ है कि ममता की तरह पवार अभी कांग्रेस को छोड़ने को तैयार नहीं है बल्कि वो साथ लेकर भी विपक्षी एकजुटता बनाने के पक्ष में है.  


 

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