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क्या है आरक्षण से जुड़ा वो सवाल जिसमें देश के हर राज्य को सुनना चाहता है सुप्रीम कोर्ट?

मराठा आरक्षण पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने सभी राज्यों को नोटिस जारी कर पूछा है कि क्या आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से बढ़ाया जा सकता है? हालांकि, मौजूदा समय में देश के कई राज्यों में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण दिया जा रहे है. यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट इसके पीछे राज्य सरकारों का तर्क जानना चाह रहा है

कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 08 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 10:07 PM IST
  • मराठा आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू
  • सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच कर रही सुनवाई
  • देश के तमाम राज्यों में 50 फीसदी से ऊपर आरक्षण

महाराष्ट्र के मराठा समुदाय के आरक्षण मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है. पांच जजों की बेंच इस मामले को 18 मार्च तक सुनेगा. सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि आरक्षण के मसले पर सभी राज्यों को सुना जाना जरूरी है. इसीलिए सुनवाई के दौरान संवैधानिक बेंच ने सभी राज्यों को नोटिस जारी कर पूछा है कि क्या आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से बढ़ाया जा सकता है? हालांकि, मौजूदा समय में देश के कई राज्यों में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण दिया जा रहा है. यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट इसके पीछे राज्य सरकारों का तर्क जानना चाह रहा है. 

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मराठा आरक्षण पर सरकार से कोर्ट तक

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग काफी लंबे समय से हो रही थी, जिसे लेकर राज्य सरकार ने 2018 में मराठा समुदाय को 16 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया था. सरकार के इस फैसले को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई, जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने जून 2019 में आरक्षण के दायरे को 16 फीसदी से घटाकर शिक्षा में 12 और नौकरी में 13 फीसदी तय कर दिया. साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि अपवाद के तौर पर राज्य में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50 फीसदी आरक्षण की सीमा पार की जा सकती है. 

बॉम्बे हाईकोर्ट के मराठा आरक्षण पर दिए गए फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई. सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने मराठा आरक्षण पर सुनवाई करते हुए इंदिरा साहनी केस या मंडल कमीशन केस का हवाला देते हुए इस पर रोक लगा दिया. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले की सुनवाई के लिए बड़ी बेंच बनाए जाने की आवश्यकता है. मराठा आरक्षण के लिए पांच जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है. 

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मराठा आरक्षण पर वकीलों ने क्या कहा?

मराठा आरक्षण पर वकील गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि आरक्षण के मसले पर कई राज्यों द्वारा मुद्दे उठाए गए हैं, जो अलग-अलग विषयों के हैं. आरक्षण से जुड़े अलग-अलग मामले हैं, जो कहीं न कहीं इस मामले से जुड़े हैं. सुप्रीम कोर्ट में बताया गया कि 122वीं अमेंडमेंट, आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण, जातियों में क्लासिफिकेशन जैसे मसलों को भी उठाया गया है. 

वहीं, महाराष्ट्र सरकार के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि इस मामले में आर्टिकल 342ए की व्याख्या भी शामिल है, ये सभी राज्य को प्रभावित करेगा. इसलिए सभी राज्यों को सुने बिना इस मामले में फैसला नहीं किया जा सकता. साथ ही कपिल सिब्बल ने कहा कि सभी राज्यों से संवैधानिक सवाल किया गया, कोर्ट को सिर्फ केंद्र और महाराष्ट्र की सुनवाई नहीं करनी चाहिए बल्कि सभी राज्यों को नोटिस जारी करना चहिए.

कोर्ट ने राज्यों को दिया नोटिस

सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने कहा कि हम सहमत हैं कि मामले का असर सभी राज्यों पर पड़ेगा. उन्हें भी सुनना जरूरी है, बेंच इस मामले में अब अगली सुनवाई 15 मार्च को करेगी.15 मार्च से मराठा आरक्षण और इससे जुड़े संवैधानिक प्रश्नों पर सुनवाई शुरू होगी, सुनवाई के दौरान पूछा गया है कि क्या आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से बढ़ाया जा सकता है? इसे लेकर कोर्ट ने देश के तमाम राज्यों के विचार को जानना चाहा है. 

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याचिकाकर्ता ने क्या कहा?
आरक्षण मामले में मुख्य हस्तक्षेपकर्ता राजेन्द्र दाते पाटिल ने कहा कि यह मामला इंदिरा साहनी मामले से संबंधित है, जिस पर 11 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया था. इसलिए सोमवार को मसले पर होने वाली सुनवाई के दौरान मराठा आरक्षण को भी 11 जजों की पीठ के समक्ष भेजने की मांग रखी जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि मराठा एसईबीसी आरक्षण मसला गायत्री बनाम तमिलनाडु इस केस के साथ टैग करके बड़ी बेंच इस पर सुनवाई करे. तमिलनाडु में भी 69 प्रतिशत आरक्षण लागू है और मराठा एसईबीसी आरक्षण के चलते राज्य में भी आरक्षण का प्रतिशत 65 तक बढ जाएगा. इसलिए प्रारंभिक मुद्दों को सबसे पहले सुना जाना चाहिए.

क्या है इंदिरा साहनी केस?
साल 1991 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने आर्थिक आधार पर सामान्य श्रेणी के लिए 10 फीसदी आरक्षण देने का आदेश जारी किया था, जिसे इंदिरा साहनी ने कोर्ट में चुनौती दी थी. इंदिरा साहनी केस में नौ जजों की बेंच ने कहा था कि आरक्षित स्थानों की संख्या कुल उपलब्ध स्थानों के 50 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए. 

सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले के बाद से कानून ही बन गया कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता. इसके चलते राजस्थान में गुर्जर, हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पटेल जब भी आरक्षण मांगते तो सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आड़े आ जाता है.
 

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जानें किसे कितना मिलता है आरक्षण 

बता दें कि देश में आरक्षण का प्रावधान इस प्रकार है, अभी 15 प्रतिशत आरक्षण अनुसूचित जाति को दिया जाता है. जबकि अनुसूचित जनजाति को 7.5 प्रतिशत आरक्षण है. वहीं, 27 प्रतिशत आरक्षण अन्य पिछड़ा वर्ग यानी कि ओबीसी को दिया जाता है.  इसके अलावा 10 फीसदी आरक्षण आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग के लोगों को मिल रहा है. वहीं, राज्य की अलग-अलग सरकारें अपने यहां की आबादी के लिहाज से एससी, एसी और ओबीसी के बीच आरक्षण का वर्गीकरण करके दे रही हैं. 

वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी राज्यों से पूछा है कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण देने पर उनके विचार क्या हैं, क्योंकि देश के तमाम राज्यों में 50 फीसदी से ऊपर आरक्षण दिया जा रहा है. हालांकि, आरक्षण सामान्य वर्ग को आर्थिक आधार पर 10 फीसदी का आरक्षण केंद्र सरकार कानूनी अमलीजामा पहनाकर दे रही है, जिसके चलते 50 फीसदी का दायरा 2019 में ही टूट गया था. 

किस राज्य में कितना आरक्षण?

राज्यों की ओर देखा जाए तो मौजूदा व्यवस्था में सबसे ज्यादा आरक्षण हरियाणा में दिया जाता है. यहां कुल 70 फीसदी आरक्षण है, जबकि तमिलनाडु में 68 और झारखंड में 60 फीसदी आरक्षण है. वहीं, राजस्थान में कुल 54 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 50 फीसदी, बिहार में 50 फीसदी, मध्य प्रदेश में भी कुल 50 फीसदी और पश्चिम बंगाल में 35 फीसदी आरक्षण व्यवस्था है. वहीं, पूर्वोत्तर की बात की जाए तो अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम में 80 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है. 

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