Advertisement

NDA या 'INDIA'... किधर जाएंगी मायावती? जानें गठबंधन को लेकर बदले रुख के मायने

बसपा प्रमुख मायावती के रुख में बदलाव आया है. गठबंधन को लेकर मायावती ने कहा है कि चार राज्यों के चुनाव के बाद पार्टी सरकार में शामिल होने पर विचार करेगी. गठबंधन को लेकर मायावती के रुख में आए बदलाव के मायने क्या हैं?

बसपा प्रमुख मायावती (फाइल फोटो) बसपा प्रमुख मायावती (फाइल फोटो)
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 26 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 11:40 PM IST

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती ने एक हफ्ते पहले गठबंधन की संभावनाओं को साफ नकार दिया था. मायावती ने कहा था कि बसपा न तो भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल होगी और ना ही विपक्षी इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (I.N.D.I.A.) में. मायावती का रुख अब बदल गया है. मायावती ने गठबंधन को लेकर बड़ा बयान दिया है.

Advertisement

ये भी पढ़ें- मायावती ने दिल्ली में डाला डेरा, चंद्रशेखर के बढ़ते प्रभाव की काट के लिए बनाया ये प्लान

मायावती ने कहा है कि मजबूत और अहंकारी सरकार की बजाय सत्ता में ऐसी सरकार हो जो लोगों के कल्याण के लिए काम करने को बाध्य हो. बसपा ने कई राज्यों में सत्ता संतुलन स्थापित कर दलित समुदाय का राजनीतिक सम्मान बढ़ाने का काम किया है. चार राज्यों के चुनाव के बाद बसपा जरूरत पड़ने पर गठबंधन को लेकर विचार करेगी जिससे दलित-मुस्लिम का उत्थान सुनिश्चित किया जा सके.

मायावती के बयान के मायने क्या हैं?

मायावती ने पहले कहा था कि हम किसी गठबंधन में शामिल नहीं होंगे. मायावती ने एनडीए के साथ दूरी बनाए रखी तो वहीं विपक्षी एकजुटता की पूरी कवायद से भी. मायावती के रुख में बदलाव आया है और उन्होंने चुनाव बाद गठबंधन के संकेत दिए हैं तो इसके भी अपने मायने हैं. जिन चार राज्यों में इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें से तीन में बीजेपी और कांग्रेस मुख्य प्रतिद्वंदी है. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधे मुकाबले का इतिहास रहा है.

Advertisement

ये भी पढ़ें'अखिलेश यादव ने सीट बंटवारे में दिया था धोखा', मायावती को लेकर ओपी राजभर ने कही ये बात

विधानसभा चुनाव के बाद इन राज्यों में सरकार बीजेपी या कांग्रेस, इन्हीं दोनोों में से किसी दल की बनेगी. ऐसे में अगर बसपा किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन करती है तो निश्चित रूप से वह या तो एनडीए के पाले में खड़ी होगी या फिर विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. के. बसपा जब किसी एक खेमे में खड़ी हो जाएगी फिर लोकसभा चुनाव में उसके लिए न्यूट्रल स्टैंड रखना काफी मुश्किल होगा. बसपा के लिए उस राज्य या दूसरे राज्यों में उसी पार्टी को घेरना, उसपर तीखे वार करना आसान नहीं होगा जिसके साथ वह सरकार चला रही होगी.

क्या हवा का रुख भांपना चाहती हैं मायावती

मायावती उत्तर प्रदेश जैसे बड़े और महत्वपूर्ण प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रही हैं. सियासी समीकरण कैसे सेट किए जाते हैं? मायावती बखूबी जानती हैं. मायावती का चार राज्यों के चुनाव के बाद गठबंधन की संभावनाओं पर विचार की बात करना किस बात का संकेत है? पहले गठबंधन से इनकार फिर विचार की बात, मायावती के बदले रुख के मायने क्या हैं? मायावती गठबंधन को लेकर फैसले से पहले लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माने जा रहे इन चुनावों में हवा का रुख भांप लेना चाहती हैं. 

Advertisement

दलित-मुस्लिम की बात, BSP जाएगी किसके साथ?

साल 2007 में सोशल इंजीनियरिंग से चौंका देने वाली बसपा अब नया समीकरण सेट करने की कोशिश कर रही है. मायावती ने अब गठबंधन को लेकर जो बयान दिया है, उसमें भी कहा है कि सरकार ऐसी हो जिसमें दलित-अल्पसंख्यक का उत्थान हो. बसपा ने हाल के यूपी निकाय चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी अधिक मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे. बसपा की कोशिश है कि दलित के साथ एकमुश्त मुस्लिम वोट आ जाए तो पार्टी की स्थिति मजबूत हो जाएगी.

यूपी की बात करें तो लोकसभा की 80 सीटों वाले इस सूबे में करीब 21 फीसदी दलित और 20 फीसदी अल्पसंख्यक हैं. ऐसे में अगर दलित और अल्पसंख्यक एकजुट होकर किसी एक पार्टी के पक्ष में चले जाएं तो उसके जीतने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी. मायावती की कोशिश यही समीकरण तैयार करने की है. ऐसे में मायावती के लिए कांग्रेस से गठबंधन मुफीद माना जा रहा है. हालांकि, बसपा कई मौकों पर सत्ताधारी एनडीए के साथ खड़ी नजर आई है. बसपा और बीजेपी गठबंधन कर यूपी में सरकार भी चला चुके हैं. ऐसे में देखना होगा कि बसपा किसके साथ जाएगी.     

गठबंधन पर नरम रुख की वजह क्या है?

गठबंधन को लेकर मायावती के रुख में आई नरमी की वजह क्या है? मायावती की पार्टी कभी जिस उत्तर प्रदेश में मजबूत मानी जाती थी, उसी सूबे में उसकी हालत खस्ता हो गई है. साल 2012 के बाद यूपी में बसपा के प्रदर्शन का ग्राफ लगातार गिरता गया. 2022 के यूपी चुनाव में बसपा एक सीट पर सिमट गई थी. वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने 10 सीटें जीती थीं लेकिन तब बसपा, सपा के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरी थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का खाता भी नहीं खुल सका था. मायावती को भी कहीं न कहीं इस बात का एहसास है कि अकेले चुनाव मैदान में उतरने पर बसपा की राह आसान नहीं रहने वाली.

Advertisement

छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की पार्टी से था गठबंधन

बसपा 2018 के छत्तीसगढ़ चुनाव में अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरी थी. हालांकि तब कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बना ली थी. पिछले राजस्थान चुनाव में बसपा ने छह सीटें जीती थीं. बसपा ने कांग्रेस सरकार का समर्थन किया था. बाद में बसपा के सभी विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे.

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement