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संसद में बहस करने और सड़क बनवाने तक सीमित नहीं है सांसद का काम, यहां जानें डिटेल

संसद में प्रश्न काल से लेकर शून्य काल और फिर विशेष उल्लेख के दौरान एक सांसद सदन के भीतर जनता के मुद्दे ही उठा रहे होते हैं. यह कानून बनाने की प्रक्रिया से बाहर का हिस्सा है लेकिन जनता के सरोकार का हर छोटा-बड़ा मुद्दा इन सवालों के जरिए सदन में उठाया जाता है.

संसद भवन संसद भवन
अनुग्रह मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 09 सितंबर 2020,
  • अपडेटेड 1:14 PM IST
  • संसद में चर्चा तक सीमित नहीं सांसद का काम
  • नीतियां और कानून बनाने में अहम भूमिका
  • क्षेत्र के विकास और समितियों में भागीदारी

देश की संसद में आपने अक्सर सांसदों को विभिन्न मुद्दों पर बहस करते देखा होगा. सत्ता पक्ष और विपक्षी दलों के सांसद अलग-अलग मुद्दों को लेकर संसद में भिड़ते नजर आते हैं. लेकिन एक सांसद के तौर पर उनका काम सिर्फ जनता के लिए कानून बनाने और अपने संसदीय क्षेत्र के विकास तक सीमित नहीं है. देश के लिए नीति निर्धारण से लेकर विदेश नीति और जनसरोकारों के हर मुद्दे पर एक सांसद का दखल रहता है. 

जनता की आवाज हैं सांसद
राज्यसभा में बीजेपी सांसद हरनाथ सिंह यादव एक सांसद के काम की उपयोगिता पर बात करते हुए कहते हैं कि मुख्यत एक सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्र की जनता के मुद्दों को सदन के भीतर उठाने का काम करते हैं. वह उनके प्रतिनिधि के तौर पर संसद में उनकी आवाज बनता है. इससे इतर संसदीय समितियों में भागीदारी से लेकर अधिकारियों के कामकाज की समीक्षा भी उसका दायित्व है. 

हरनाथ सिंह कृषि समिति, मानव संसाधन विकास समिति, पिछड़ा वर्ग कल्याण समिति के सदस्य रहे हैं. वह बताते हैं कि किसानों की समस्याएं सदन के भीतर उठाना सबसे ज्यादा जरूरी है क्योंकि कभी मानव निर्मित तो कभी प्राकृतिक आपदाओं की वजह से देश का किसान हर वक्त चुनौतियों का सामना करता है. कृषि और कृषक कल्याण के लिए केंद्र सरकार लगातार काम कर रही है और किसानों की आय से लेकर अत्याधुनिक खेती को आगे बढ़ाना सरकार की प्राथमिकता है. 

समितियों में भागीदारी अहम
सांसदों के कामकाम पर बातचीत करते हुए राज्य सभा टीवी में संसदीय मामलों के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह कहते हैं कि मुख्य रूप से सांसद का काम कानून बनाना ही है लेकिन इसके अलावा भी एक सांसद के कई ऐसे काम हैं जिनसे आम लोग अवगत नहीं हैं. वह बताते हैं कि हर सांसद किसी न किसी स्थाई समिति का सदस्य होता है या फिर अन्य समितियों में भी उनकी भागीदारी होती है. इन समितियों के जरिए ही नीतियां बनाई जाती हैं.

अरविंद सिंह बताते हैं कि सांसदों के दवाब से ही कई बार नीतियां बनती हैं और कई बार उनके ही दवाब पर नीतियों में बदलाव भी किया जाता है. वह बताते हैं कि प्राइवेट मेंबर विधेयकों के जरिए विपक्षी सांसद भी कई बार नीतियों में बड़े बदलाव कराने में सफल रहे हैं. वह कहते हैं कि डीएमके सांसद तिरुचि सिवा का ही दवाब था जिसके चलते ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) बिल- 2019 को संसद की मंजूरी मिल सकी.

अरविंद सिंह ने कहा कि सांसद किसी भी बने बनाए कानून को बदलने की क्षमता रखता है लेकिन वह निर्भर करता है कि उस विषय पर सांसद का अध्ययन और रुचि कैसी है. कई सांसद कामकाज में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं और तब सदन के भीतर एक स्वस्थ और तर्कसंगत बहस देखने को मिलती है. 

जनता के सवाल और सरकार के जवाब
वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह बताते हैं कि संसद के भीतर हर वक्त सांसद जनसरोकार से जुड़े मुद्दे ही उठाते हैं. एक सत्र के दौरान आम तौर पर 5-6 हजार सवाल पूछे जाते हैं और वह सभी जनता से जुड़े ही होते हैं. प्रश्न काल से लेकर शून्य काल और फिर विशेष उल्लेख के दौरान सांसद सदन के भीतर जनता के मुद्दे ही उठा रहे होते हैं. यह कानून बनाने की प्रक्रिया से बाहर का हिस्सा है लेकिन जनता के सरोकार का हर छोटा-बड़ा मुद्दा इन सवालों के जरिए सदन में उठाया जाता है.

आमजन की नजर में एक सांसद के काम को उनके क्षेत्र के विकास कार्यों से जोड़कर ही देखा जाता है लेकिन इस क्षेत्रीय विकास निधि का दायरा भी अब काफी बढ़ चुका है. इस MPLADS फंड का इस्तेमाल सांसद अपने क्षेत्र में तमाम विकास कार्यों के लिए करता है. 
कानून बनाने की प्रक्रिया और उसपर विमर्श के अलावा भी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में सांसद की अहम भूमिका होती है. सदन में जिसके पास संख्या बल ज्यादा होता है उसी पक्ष के उम्मीदवार को इन पदों पर चुना जाता है. हालांकि कई बार राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव निर्विरोध भी होता है. 

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