Advertisement

चुनाव 2024: विपक्षी एकता की मुहिम तेज, सीन में क्यों नहीं दिख रहे मायावती और ओवैसी?

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने के लिए विपक्षी एकजुटता की कवायद हो रही है. नीतीश कुमार से लेकर ममता बनर्जी और केसीआर तक इसी मुहिम में जुटे हैं, लेकिन इस पूरे सीन में न तो बसपा प्रमुख मायावती नजर आ रही हैं और न ही असदुद्दीन ओवैसी.

मायावती और असदुद्दीन ओवैसी मायावती और असदुद्दीन ओवैसी
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 08 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 6:29 PM IST

लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर डेढ़ साल पहले से ही सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. बीजेपी जीत की हैट्रिक लगाने के लिए बेताब है तो विपक्षी खेमा नरेंद्र मोदी को फिर सत्ता में आने से रोकने के लिए मशक्कत कर रहा है. ममता बनर्जी से लेकर केसीआर और नीतीश कुमार तक बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने के लिए विपक्षी दलों को एकजुट करने की कवायद कर रहे हैं, जिसके लिए गैर-बीजेपी पार्टियों के नेताओं से मुलाकात की जा रही है. विपक्ष की इस सारी कवायद में न तो बसपा प्रमुख मायावती कहीं नजर आ रही हैं और न ही AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी को जगह मिल रही है. 

Advertisement

हालांकि, असदुद्दीन ओवैसी और मायावती दोनों ही ऐसे नेता हैं, जो कांग्रेस और बीजेपी दोनों से बराबर की दूरी बनाकर चल रहे हैं. इसके बावजूद विपक्षी खेमे से एकजुटता की मुहिम में जुटे नेता न तो मायावती और न ही ओवैसी से मेल-मिलाप कर रहे हैं. ऐसे में इन दोनों ही नेताओं के बिना क्या विपक्ष 2024 के चुनाव में पीएम मोदी को चुनौती दे पाएगा. इसके अलावा यह भी सवाल है कि विपक्षी गठबंधन से दोनों ही नेता क्या बाहर खड़े नजर आएंगे? 

नीतीश के एजेंडे में क्या मायावती-ओवैसी नहीं
बता दें कि एनडीए से नाता तोड़ने के बाद विपक्षी एकता की कोशिश में जुटे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तीन दिन के अपने दिल्ली प्रवास के दौरान बीजेपी विरोधी 10 नेताओं से मुलाकात की है. नीतीश राहुल गांधी से लेकर अखिलेश यादव, शरद पवार, अरविंद केजरीवाल, सीताराम येचुरी, डी राजा, शरद यादव, कुमारस्वामी और ओपी चौटाला से मिले हैं. इसके अलावा नीतीश ने पटना में केसीआर से मुलाकात की हैं तो ममता बनर्जी, हेमंत सोरेन और जयंत चौधरी से फोन पर बात हो चुकी है, लेकिन न तो मायावती से अभी तक उनकी बात हुई और न ही बसपा के बड़े नेता से मुलाकात. ऐसे ही असदुद्दीन ओवैसी से नहीं मिले. 

Advertisement

पश्चिम बंगाल सीएम ममता बनर्जी अपना अलग ताल ठोक रही हैं और आए दिन दिल्ली का दौरा करके विपक्षी नेताओं से मेल-मिलाप कर अपनी पीएम उम्मीदवारी की दावेदारी को मजबूत कर रही है. वहीं, अरविंद केजरीवाल और केसीआर अपने अलग ही मिशन में जुटे हैं. केसीआर भी दिल्ली से लेकर बिहार तक दौरा करके विपक्षी नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं तो केजरीवाल दिल्ली और पंजाब चुनाव जीतने के बाद हौसले बुलंद हैं. हर कोई विपक्षी दलों को साथ लेने के लिए सक्रिय है, लेकिन मायावती और ओवैसी से नहीं मिल रहा है. 

मायावती क्यों विपक्षी खेमे के साथ नहीं खड़ीं 
2024 के चुनाव को लेकर विपक्षी खेमे से जो कवायद हो रही है, उससे मायावती खुद को बाहर रखे हुए हैं. मायावती ने 2024 के चुनाव को लेकर अभी तक किसी तरह के संकेत नहीं दिए हैं और न ही किसी विपक्षी कवायद में खड़ी दिखी हैं. बसपा के नेता भी कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं हैं. ऐसे में विपक्ष को जोड़ने की जो भी कवायद हो रही है, उसमें बसपा से ज्यादा सपा को तवज्जो मिल रही है.

नीतीश कुमार ने अखिलेश यादव से मुलाकात के बाद उन्हें यूपी में महागठबंधन को लीड करने की जिम्मेदारी सौंपी है, जिसके चलते साफ है कि मायावती के लिए कोई राजनीतिक विकल्प नहीं बचा. ऐसे में बसपा विपक्षी एकता की कवायद में अलग-थलग पड़ गई है. 

Advertisement

मायावती की सियासी ताकत 
बसपा प्रमुख मायावती देश में दलितों की सबसे बड़ी नेता हैं, लेकिन लगातार उनका सियासी आधार सिमटता जा रहा है. मायावती ने 2019 के लोकसभा चुनाव यूपी में सपा के साथ मिलकर लड़े और उनके 10 सांसद जीतने में कामयाब रहे. बसपा ने देश भर में 351 कैंडिडेट उतारे थे, लेकिन जीत उसे यूपी में ही मिली. हालांकि, एक समय बसपा यूपी से बाहर हरियाणा, पंजाब और एमपी में जीत दर्ज करती रही है. बसपा के दलित वोटबैंक का बड़ा हिस्सा छिटक कर कुछ बीजेपी के साथ तो कुछ दूसरी पार्टियों के साथ चला गया है. 

मायावती क्या अकेले लड़ेंगी चुनाव
मायावती की राजनीति देखें तो वे बीजेपी और नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष की दूसरी पार्टियों की तरह खुलकर मोर्चा खोलने के बजाय कई मुद्दों पर सरकार के साथ खड़ी नजर आती हैं. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में भी मायावती ने एनडीए का समर्थन किया था. ऐसे में विपक्षी दल बसपा पर बीजेपी की बी-टीम होने का आरोप लगाते हैं. यही वजह है कि विपक्षी खेमे की मोर्चाबंदी में बीएसपी कहीं भी नजर नहीं आती.

मायावती के अभी तक के स्टैंड से लगता है कि यूपी विधानसभा चुनाव की तरह ही बीएसपी लोकसभा चुनाव में भी अकेले किस्मत आजमा सकती है. 

Advertisement

ओवैसी से क्यों सेकुलर दल बना रहे दूरी
2024 के चुनाव को लेकर विपक्षी की ओर से जो सियासत हो रही है, उसमें असदुद्दीन ओवैसी भी अलग-थलग पड़े नजर आ रहे हैं.  ममता बनर्जी से लेकर नीतीश कुमार, केजरीवाल और कांग्रेस तक असदुद्दीन ओवैसी से दूरी बनाए हुए हैं. हालांकि, ओवैसी देश के तमाम राज्यों में अपना सियासी आधार बढ़ा रहे हैं, जिसके चलते वो खुद को विपक्षी खेमे के साथ जोड़कर रखना चाहते हैं. इसके बावजूद विपक्ष उन्हें साथ नहीं ले रहा. इसके पीछे उनकी कट्टर मुस्लिम छवि भी है. 

ओवैसी जब अकेले चुनावी मैदान में उतरते हैं, तो मुस्लिम मतों को अपने पाले में लाकर सेकुलर दलों का सियासी खेल बिगाड़ देते हैं. अगर उन्हें मुस्लिम वोट नहीं भी मिलते तो वो अपनी राजनीति के जरिए ऐसा ध्रुवीकरण करते हैं कि हिंदू वोट एकजुट होने लगता है. सेकुलर दल अगर ओवैसी के साथ मैदान में उतरे तो उनपर मुस्लिम परस्त और कट्टरपंथी पार्टी के साथ खड़े होने का आरोप लगेगा जो मौजूदा दौर में राजनीति चौपट करने के लिए पर्याप्त है. यह वजह रही है कि ओवैसी से यूपी से लेकर बिहार और बंगाल तक में किसी ने गठबंधन नहीं किया और लोकसभा में भी कोई हाथ नहीं मिलाता दिखता.  

Advertisement

ममता ने भी बनाए रखी ओवैसी से दूरी
ममता बनर्जी ने 2021 का बंगाल चुनाव जीतने के बाद दिल्ली दौरा किया था. इस दौरान उन्होंने राहुल-सोनिया से लेकर अखिलेश यादव, शरद पवार, अरविंद केजरीवाल, डीएमके की कनिमोझी, आरजेडी नेता और सपा के रामगोपाल यादव से मुलाकात की थी.

इसके बाद ममता लखनऊ जाकर अखिलेश यादव से भी मिली थी. राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ममता बनर्जी ने 22 विपक्षी दलों के पत्र लिखकर साथ आने का न्योता दिया था. शिवसेना से लेकर लेफ्ट पार्टियों, बीजेडी, जेएमएम, कांग्रेस, सपा और आरजेडी नेता शामिल हुए थे, लेकिन बैठक से आम आदमी पार्टी, बीजेडी, बसपा जैसे दलों ने पूरी तरह दूरी बनाए रखी थी.

केसीआर की मायावती से दूरी, ओवैसी की नजदीकी
तेलंगाना के सीएम केसीआर भी 2024 में विपक्षी एकता बनाने की कवायद कर रहे हैं. इस कड़ी में उन्होंने लगातार विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात की है. वे केजरीवाल से लेकर शरद पवार, अखिलेश यादव, नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और कुमारस्वामी तक से मिल चुके हैं, लेकिन मायावती और बसपा के किसी नेता से उनकी मुलाकात नहीं हुई.

हालांकि, ओवैसी के साथ केसीआर के संबंध अच्छे हैं, क्योंकि तेलंगाना में उनकी सरकार को AIMIM समर्थन करती है. इस तरह केसीआर के एजेंडे में ओवैसी तो शामिल हैं, लेकिन मायावती को लेकर स्टैंड स्पष्ट नहीं है.  

Advertisement

मायावती-ओवैसी के बिना विपक्षी एकता कैसे?
सवाल ये है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मायावती और ओवैसी के बिना विपक्षी एकजुटता कैसे होगी. देश में दलित आबादी 20 फीसदी के करीब है तो मुस्लिम 14 फीसदी हैं. ऐसे में मायावती और ओवैसी के बिना विपक्ष मोदी के खिलाफ मजबूत गठबंधन कैसे खड़ा कर पाएगा, ये बड़ा सवाल है.

यूपी में मायावती के पास अब भी 13 फीसदी के करीब वोट हैं. दूसरे राज्यों में भी दलित समुदाय के बीच उनका सियासी आधार है. बसपा के पास अभी 10 लोकसभा सांसद भी हैं.

वहीं, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के दो सांसद हैं. तेलंगाना से लेकर महाराष्ट्र और बिहार तक में उनकी पार्टी के विधायक हैं. देश के दूसरे राज्यों में भी ओवैसी मुस्लिम समुदाय के बीच अपनी जगह बनाने की कवायद कर रहें हैं. वे इसके लिए मुस्लिम प्रतिनिधित्व का एजेंडा सेट कर रहे हैं.

ऐसे में अगर ओवैसी और मायावती विपक्षी एकता से बाहर रहकर अकेले चुनाव लड़ेंगे तो वो भले ही जीत न पाएं, लेकिन विपक्ष को भी जीतने नहीं देंगे. इससे बीजेपी को यूपी में बड़ा फायदा तय है. देश के दूसरे राज्यों में भी विपक्ष का खेल खराब हो सकता है. 
 

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement