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प्रह्लाद सिंह पटेल, नरेंद्र तोमर, रेणुका सिंह... केंद्रीय मंत्री पद छोड़ने वाले 3 नेताओं के सीएम बनने का कितना चांस?

पांच दिन बाद भी तीन राज्यों में नए मुख्यमंत्री पद के नाम को लेकर सस्पेंस बना हुआ है. मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में हलचल है. तमाम नामों को लेकर कयासबाजी चल रही है. इस बीच, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नई सरकार के चेहरे स्पष्ट होने लगे हैं. गुरुवार को नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद सिंह पटेल और रेणुका सिंह के केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफे मंजूर कर लिए गए हैं.

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में नए सीएम को लेकर पिक्चर साफ होने लगी है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में नए सीएम को लेकर पिक्चर साफ होने लगी है.
उदित नारायण
  • नई दिल्ली,
  • 08 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 1:42 PM IST

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में नए सीएम चेहरे को लेकर बीजेपी हाईकमान लगातार मंथन कर रहा है. हालांकि, अभी किसी नाम पर सहमति नहीं बनी है. इस बीच, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नरेंद्र तोमर, प्रह्लाद पटेल, रेणुका सिंह सरुता का केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा स्वीकार कर लिया है. इन तीनों नेताओं ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ चुनाव में जीत हासिल की है. एक दिन पहले ही तीनों ने संसद सदस्यता और केंद्रीय मंत्री पद छोड़ा था. ऐसे में अब तीनों दिग्गज नेताओं के सियासी भविष्य को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं. यह तय माना जा रहा है कि बीजेपी जल्द ही इन नेताओं को अपने-अपने राज्यों में बड़ी भूमिका देने जा रही है.

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जानकार तो यह भी कहते हैं कि तीनों नेता सीनियर हैं. मोदी मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी भी संभाल रहे थे. विधानसभा चुनाव में भी इनकी लोकप्रियता देखने को मिली है. पार्टी ने कई हारने वाली सीटों पर जीत हासिल की है. यानी संगठन ने जो चुनावी टास्क दिया था, उस पर खरे उतरे हैं. यही वजह है कि 2024 के चुनाव को ध्यान में रखकर पार्टी नए सिरे से रणनीति तैयार कर रही है और इन तीनों नेताओं को बड़ा ओहदा दिया जा सकता है. तीनों नेता पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के करीबी भी माने जाते हैं.

'MP में CM की रेस में पटेल सबसे आगे?'

बीजेपी सूत्रों का कहना है कि पार्टी हाईकमान ने तोमर, पटेल और रेणुका की भूमिका तय कर दी है. विधायक दल की बैठक के दिन स्थिति और स्पष्ट हो जाएगी. बता दें कि पटेल, तोमर और रेणुका का नाम सीएम की दौड़ में सबसे आगे हैं. मध्य प्रदेश में पटेल ओबीसी (लोध समुदाय) से आते हैं. पीएम मोदी का करीबी माना जाता है. 32 साल के सार्वजनिक जीवन में उनकी छवि भी साफ-सुथरी रही है. राजनीतिक करियर में भी पटेल सबसे वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते हैं. 

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'जातिगत समीकरण के आधार तय होगा चेहरा?'

जानकारों का कहना है कि 2024 के चुनाव से पहले पार्टी पटेल के जरिए बीजेपी सामाजिक समीकरण भी साध सकती है. राज्य में नए चेहरा बदलने के लिहाज से भी पटेल को उपयुक्त माना जा रहा है. इतना ही नहीं, पटेल और शिवराज के बीच राजनीतिक संबंध भी अच्छे बताए जाते हैं. इसलिए विरोध की संभावना भी नहीं रहेगी. 

'ओबीसी कार्ड नहीं चला तो तोमर बड़े दावेदार'

नरेंद्र सिंह तोमर को भी पार्टी बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है. वे स्पीकर या मंत्री भी बनाए जा सकते हैं. चुनाव से पहले तोमर की बड़ी भूमिका रही है. इसको भी ध्यान में रखा जा रहा है. तोमर ने मुरैना संसदीय क्षेत्र में आने वाली दिमनी सीट पर चुनाव भी लड़ा और राज्य की चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक की भूमिका भी बखूबी निभाई है. वे अपनी सीट पर 24 हजार 461 वोटों से चुनाव भी जीते हैं. तोमर की दावेदारी को एक फैक्टर पीछे भी रहा है और वो है- राज्य का जातिगत समीकरण. बीजेपी अगर मध्य प्रदेश में ओबीसी कार्ड खेलती है तो पहला नाम प्रह्लाद पटेल का होगा. और सामान्य श्रेणी में तोमर की दावेदार मजबूत है. इसके अलावा, चुनाव प्रचार के दौरान तोमर के बेटे के कथित वायरल वीडियो ने भी दावेदारी को कमजोर किया है.

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'महिला आदिवासी मुख्यमंत्री का दांव खेल सकती है बीजेपी'

इसी तरह, छत्तीसगढ़ की बात करें तो रेणुका सिंह का नाम सबसे आगे है. वे सरगुजा से प्रतिनिधित्व करती हैं और बड़ा आदिवासी महिला चेहरा हैं. अगर बीजेपी रेणुका पर दांव खेलती है तो यह पहली बार होगा, जब छत्तीसगढ़ में किसी महिला को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा. इसके अलावा, सोशल इंजीनियरिंग भी दुरुस्त करने का मौका रहेगा. इतना ही नहीं, आदिवासी महिला सीएम को बनाकर पार्टी एक और बड़ी लकीर खींचेगी. झारखंड, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी पार्टी को इसका लाभ मिलेगा. इससे पहले बीजेपी ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर आदिवासी समाज में बड़ा संदेश दिया था. रेणुका ने भरतपुर सोनहट  सीट (एसटी रिजर्व) पर जबरदस्त जीत हासिल की है. रेणुका अब तक मोदी मंत्रिमंडल में अनुसूचित जनजाति विभाग की मंत्री थीं. कहा जाता है कि रेणुका का महिलाओं के बीच अच्छा खासा क्रेज है. सरगुजा इलाके में एसटी समाज में भी गहरी पैठ है. वे 2003 में पहली बार विधायक बनी थीं. 2008 में रमन सिंह सरकार में मंत्री बनाई गईं थीं. बाद में 2019 में सरगुजा से सांसद निर्वाचित हुईं. इस बार पार्टी ने विधानसभा चुनाव में उतारा और उन्होंने जीत हासिल की.

'चुनाव जीतने वाले सांसदों ने इस्तीफा दिया'

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बता दें कि इससे पहले विधानसभा चुनाव जीतने वाले बीजेपी के सभी 12 सांसदों ने इस्तीफा दे दिया है. बुधवार को पहले 10 सांसदों ने इस्तीफा दिया था. इनमें दो केंद्रीय मंत्री भी शामिल थे. बाद में गुरुवार को बाबा बालकनाथ ने सांसद और रेणुका सिंह ने केंद्रीय मंत्री और सांसद पद से इस्तीफा दिया. देर रात राष्ट्रपति ने तीनों केंद्रीय मंत्रियों के इस्तीफे मंजूर कर लिए हैं.

अनुभव के लिहाज से कौन नेता वरिष्ठ...

- प्रह्लाद सिंह पटेल (63 साल):  सीएम की रेस में चल रहे नामों के लिहाज से देखा जाए तो प्रह्लाद सिंह पटेल सबसे वरिष्ठ नेता हैं. वे पहली बार 1989 में सिवनी से सांसद चुने गए थे. वे अब तक चार अलग-अलग लोकसभा सीटों सिवनी, बालाघाट, छिंदवाड़ा और दमोह से चुनाव लड़ चुके हैं. पटेल ने कुल सात लोकसभा के चुनाव लड़े और पांच में जीत हासिल की. 1998 और 2004 के चुनाव में पटेल को क्रमश: सिवनी और छिंदवाड़ा से हार का सामना करना पड़ा. इस बार वो पहली बार विधानसभा चुनाव में नरसिंहपुर से मैदान में थे और जीत हासिल की. पटेल के लिए नेगेटिव फैक्टर यही है कि साल 2005 में जब उमा भारती ने बीजेपी छोड़कर ‘भारतीय जनशक्ति पार्टी’ बनाई थी तब वो भी उनके साथ चले गए थे. हालांकि, तीन साल बाद मार्च 2009 में उन्होंने बीजेपी में वापसी की थी.

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- शिवराज सिंह चौहान (64 साल): मध्य प्रदेश के निवर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पहला विधानसभा चुनाव 1990 में बुधनी सीट से लड़ा और जीत हासिल की. 1991 में विदिशा संसदीय सीट पर उपचुनाव जीता और सांसद बने. वे साल 2005 तक कुल पांच बार सांसद बने. उसके बाद 29 नवंबर 2005 को पहली बार मुख्यमंत्री बनाए गए. उन्होंने 2006 में उपचुनाव जीता. उसके बाद से लगातार 2008, 2013, 2018 और 2023 में बुधनी से ही विधायक चुने गए. यानी कुल छह बार विधायक और पांच बार सांसद बने. अब तक के चुनाव में शिवराज अजेय रहे हैं.

- नरेंद्र सिंह तोमर (66 साल): तोमर ने पहला चुनाव 1993 में ग्वालियर सीट से लड़ा, लेकिन 681 वोट से हार गए थे. बाद में वो 1998 और 2003 का विधानसभा चुनाव जीते. राज्य सरकार में उमा भारती कैबिनेट, फिर बाबूलाल गौर की टीम और आखिरी में शिवराज मंत्रिमंडल के सदस्य भी रहे हैं. बाद में वो 2009 में मुरैना से लोकसभा चुनाव लड़े और जीते. 2014 में ग्वालियर और 2019 में फिर मुरैना से बीजेपी सांसद चुने गए. हाल में 2023 में दिमनी से विधायक निर्वाचित हुए हैं. तोमर ने कुल सात चुनाव लड़े हैं. इनमें एक चुनाव में हार मिली है. तीन विधानसभा चुनाव जीते हैं और तीन लोकसभा चुनाव में जीत मिली है. 

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- कैलाश विजयवर्गीय (67 साल): बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय अब तक कुल सात बार विधायक चुने गए हैं. उन्होंने 1990 में पहला विधानसभा लड़ा और जीता था. उसके बाद 1993, 1998, 2003, 2008 और 2013 में विधायक चुने गए. इसके अलावा, 2018 में उनके बेटे आकाश ने विधानसभा चुनाव जीता था. वे 1983 में पार्षद बने और साल 2000 में  इंदौर के मेयर भी रहे हैं. कैलाश साल 2005 से संगठन में जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. कैलाश ने अब तक कोई चुनाव नहीं हारा है. यह भी पॉजिटिव फैक्टर है कि उन्होंने अलग-अलग चार सीटों से चुनाव लड़कर जीत हासिल की.

गोपाल भार्गव (71 साल): सागर जिले की रहली सीट से बीजेपी के गोपाल भार्गव ने 9वीं बार चुनाव जीता है. वे बाबूलाल गौर के बाद ऐसे दूसरे नेता हैं, जो एक ही सीट से लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं. गौर ने भोपाल की गोविंदपुरा सीट से लगातार 10 चुनाव जीते. गोपाल भार्गव ने पहला चुनाव 1985 में लड़ा और जीता. उनके पास 18 साल तक मंत्रालय संभालने का भी अनुभव है. 2018 में नेता प्रतिपक्ष भी बनाए गए थे.

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