
नगालैंड की सियासत के बेताज बादशाह कहे जाने वाले नेफ्यू रियो मंगलवार को पांचवी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं. नगालैंड की राजनीति में कोई भी दल सत्ता में आए, लेकिन मुख्यमंत्री का ताज नेफ्यू रियो के सिर सजता है. करीब साढ़े तीन दशक पहले कांग्रेस के साथ सियासी पारी का आगाज करने वाले नेफ्यू रियो को राज्य की सियासत का जादूगर कहा जाता है, जिन्होंने नगालैंड में विपक्ष का सफाया कर दिया है. रियो लगभग सभी दलों में रह चुके हैं और दूसरी बार बीजेपी के साथ मिलकर नगालैंड में सरकार बनाने जा रहे हैं. आखिर नेफ्यू रियो कौन हैं और नगालैंड की सियासत में कैसे धुरी बने हुए हैं.
जानें, नेफ्यू रियो कौन हैं
नेफ्यू रियो का जन्म 11 नवंबर 1950 को हुआ है. वह कोहिमा जिले के तुफेमा गांव के स्वर्गीय गुलहॉली रियो के बेटे हैं और अंगामी नागा जनजाति से ताल्लुक रखते हैं. नेफ्यू ने बैप्टिस्ट इंग्लिश स्कूल कोहिमा से पढ़ाई की. इसके बाद पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के सैनिक स्कूल, दार्जलिंग के सेंट जोसेफ कॉलेज और कोहिमा आर्ट्स कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की. नेफ्यू रियो छात्र जीवन में ही सियासत में कदम रख दिए थे. इस तरह से बहुत कम उम्र में राजनीति की पिच पर उतर गए थे और फिर वक्त के साथ सियासत की सीढ़ी चढ़ते गए.
विधायक से मंत्री तक का सफर
नेफ्यू रियो ने 1974 में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की युवा शाखा के अध्यक्ष के तौर पर अपनी राजनीतिक पारी को आगे बढ़ाया, और 1984 में नॉदर्न अंगामी एरिया काउंसिल के चेयरमैन रहे. इसके बाद नेफ्यू रियो ने कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया. नगालैंड चुनाव में पहली बार नेफ्यू रियो कांग्रेस के टिकट पर 1989 में उत्तरी अंगामी सेकेंड सीट से किस्मत आजमाया और जीतकर विधायक बने और खेल एवं शिक्षा मंत्री बने.1993 में नेफ्यू रियो दूसरी बार विधायक बने और तीसरी बार 1998 में जीतकर रियो गृहमंत्री बने. नगालैंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री एससी जमीर के साथ मतभेद होने के चलते नेफ्यू रियो ने सितंबर 2002 में विधानसभा सदस्यता और मंत्री पद से इस्तीफा देने के साथ-साथ कांग्रेस छोड़ दी.
कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया
नगालैंड की सत्ता से कांग्रेस को बाहर का रास्ता नेफ्यू रियो ने दिखाया. कांग्रेस को अलविदा कहने के बाद नेफ्यू ने अक्टूबर 2002 में नगालैंड पीपुल्स काउंसिल नाम से पार्टी बनाई, जिसका नाम बाद में बदलकर एनपीएफ कर दिया था. नेफ्यू रियो का ही करिश्मा था कि 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को नगालैंड की सत्ता से बाहर कर दिया, जिसके बाद पार्टी दोबारा से सत्ता में नहीं आ सकी. इससे पहले कांग्रेस यहां लगातार दस साल से सत्ता पर काबिज थी.
नेफ्यू रियो पहली बार सीएम बने
कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने के बाद साल 2003 में नेफ्यू रियो पहली बार नगालैंड के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद उन्होंने पलटकर नहीं देखा और चुनाव दर चुनाव उनका सियासी कद बढ़ता गया, जिसका लाभ उनकी पार्टी को भी मिला. इस तरह से 2008, 2013 और 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर एनपीएफ की सरकार बनाई. चारों चुनावों में एनपीएफ का वोटशेयर नागालैंड में लगातार बढ़ा.
जनवरी 2018 को एनपीएफ के बीजेपी से गठबंधन टूटने के बाद नेफ्यू रियो एनडीपीपी का गठन किया. रियो ने बागियों के साथ मिलकर नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) की नींव रखी. इसके बाद 2018 में बीजेपी से गठबंधन कर सरकार बनाने में कामयाब हुए. 2023 में एनडीपीपी और बीजेपी ने मिलकर चुनाव लड़ा और विपक्ष का सफाया कर दिया है और अब नेफ्यू रियो पांचवी बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं.
नेफ्यू रियो का सियासी संघर्ष
नेफ्यू रियो भले ही दो दशक से नगालैंड की सियासत पर पूरी तरह से काबिज हों, लेकिन उन्हें राज्य में अपनी जगह बनाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा है. कांग्रेस में रहते हुए 30 मई 1995 को नगालैंड में दीमापुर में जानलेवा हमले में बच गए जब कुछ सशस्त्र लोगों ने उनकी मोटरसाइकिल पर हमला किया था. नेफ्यू रियो उस समय नागालैंड के पीडब्लूडी मंत्री के रूप में कार्यरत थे. इस हमले में उनके चालक की मृत्यु हो गई थी व उनके कई सशस्त्र बाडीगार्ड घायल हो गए थे. इतना ही नहीं नगालैंड के आदिवासी समुदाय के बीच उनकी गहरी पैठ है. इसके दम पर नेफ्यू रियो को नगालैंड की सियासत के जादूगर कहा जाता है, जिसके आगे न कांग्रेस और न ही बीजेपी. नगालैंड में सियासत की धुरी नेफ्यू रियो के हाथों में है.