
लोकसभा चुनाव में अभी करीब एक साल का समय बचा है लेकिन 2024 की चुनावी जंग के लिए सियासी बिसात अभी से ही बिछने लगी है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को चुनावी शिकस्त देने के लिए विपक्षी एकजुटता की बात चल रही है. इसे लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक्टिव नजर आ रहे हैं.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले दिनों डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के साथ दिल्ली पहुंचकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ मुलाकात की थी. नीतीश कुमार आज यानी 24 अप्रैल को फिर से तेजस्वी यादव के साथ यात्रा पर हैं.
साल 2024 की चुनावी जंग से पहले विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में जुटे बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने डिप्टी सीएम तेजस्वी के साथ कोलकाता पहुंचकर तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की. इसके बाद वे सीधे लखनऊ पहुंचेंगे जहां उन्हें यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात करनी है.
इन तीन नेताओं की मुलाकात 2024 लोकसभा चुनाव के लिए इसलिए भी अहम है क्योंकि केंद्र में सरकार गठन के लिहाज से ये तीनों राज्य बहुत अहम हैं. यूपी से लोकसभा की 80 सीटें, बिहार से 40 और बंगाल से 42 सीटें आती हैं यानी इन तीन नेताओं की 545 सदस्यों वाली लोकसभा की 162 सीटों के लिए चुनाव में अहम भूमिका होगी.
नीतीश कुमार की इन मुलाकातों के सियासी निहितार्थ तलाशे जाने लगे हैं. इसके पीछे प्रमुख कारण है नीतीश कुमार की विपक्षी एकजुटता की कवायद, उनके यूपी से चुनाव लड़ने की चर्चा और लोकसभा चुनाव को लेकर सपा का स्टैंड. नीतीश कुमार पहले ही ये साफ कर चुके हैं कि 2024 के चुनाव को लेकर विपक्षी एकजुटता के पीछे उनकी अपनी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है.
दूसरी तरफ, नीतीश कुमार के यूपी से लोकसभा चुनाव लड़ने की भी चर्चा है. ऐसे में ये भी माना जा रहा है कि नीतीश कुमार, अखिलेश यादव के साथ अपनी मुलाकात के दौरान इस विषय पर भी बात कर सकते हैं. तीसरा है लोकसभा चुनाव को लेकर सपा का स्टैंड. सपा ने पहले ही साफ कर दिया था कि वह यूपी में अपने दम पर, अपने गठबंधन के साथ लोकसभा चुनाव लड़ेगी.
सपा की ओर से ये भी कहा गया था कि अब ये कांग्रेस को तय करना है कि बीजेपी को हराने के लिए वह क्या करेगी. ऐसे में नीतीश कुमार की ये मुलाकात सपा को अन्य विपक्षी दलों के साथ एकजुट होकर चुनाव लड़ने के लिए अखिलेश यादव को राजी करने की कोशिश के तहत हो. गौरतलब है कि यूपी में सपा का अभी जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के साथ गठबंधन है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ ही कुछ और नेता भी विपक्षी दलों को एक ही छतरी के नीचे लाने की कोशिश में जुटे हैं. तेलंगाना के मुख्यमंत्री और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के प्रमुख के चंद्रशेखर राव, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन भी 2024 के चुनाव से पहले विपक्षी एकजुटता की वकालत कर चुके हैं. तेलंगाना के सीएम केसीआर की पार्टी की ओर से हैदराबाद में आयोजित कार्यक्रम में सपा प्रमुख अखिलेश यादव, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत कई विपक्षी दलों के नेताओं ने शिरकत भी की थी.
साल 2024 की चुनावी लड़ाई का मैदान सजने में अभी एक साल का समय शेष बचा है. लेकिन अभी से ही चुनावी बिसात पर सत्ताधारी बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन को मात देने के लिए अपने मोहरे बिछाने शुरू कर दिए हैं. नीतीश कुमार की राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और अरविंद केजरीवाल से मुलाकात के बाद अब ममता बनर्जी और अखिलेश यादव से मिलने जाने को इसी दिशा में एक और कदम माना जा रहा है. चर्चा ये भी तेज हो गई है कि क्या विपक्षी दल 2024 के आम चुनाव में एनडीए को शिकस्त देने के लिए फिर से 2004 के फॉर्मूले की ओर लौटेंगे?
साल 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले 2003 में कांग्रेस पार्टी का हिमाचल प्रदेश के शिमला में अधिवेशन हुआ था. कांग्रेस के इस अधिवेशन में समान विचारधारा वाले विपक्षी दलों को साथ लाने, गठबंधन कर आम चुनाव लड़ने का निर्णय लिया गया था. तब कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी के हाथ में थी. कांग्रेस ने बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को मजबूत चुनौती देने के लिए पांच राज्यों में समान विचारधारा वाले छह दलों से गठबंधन किया और नींव रखी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी यूपीए की.
यूपीए में तब कांग्रेस के साथ महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), अविभाजित आंध्र प्रदेश में तेलंगाना राष्ट्र समिति (अब भारत राष्ट्र समिति), तमिलनाडु में डीएमके, झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम), यूपी में राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) और बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) थे. यूपीए ने प्रधानमंत्री पद के लिए एनडीए का चेहरा अटल बिहारी वाजपेयी के मुकाबले अपने पत्ते नहीं खोले थे.
कांग्रेस ने 545 सदस्यों वाली लोकसभा की 417 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और बाकी की सीटें सहयोगी दलों के लिए छोड़ दी थीं. चुनाव नतीजे आए तो कांग्रेस को बीजेपी की 138 सीटों के मुकाबले सात सीटें अधिक मिली थीं. कांग्रेस 145 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और यूपीए की सीटों का आंकड़ा जादुई आंकड़े से 58 सीट कम यानी 215 पर ही रुक गया था. ऐसे में बीजेपी सरकार का विरोध कर रहे दल या तो बहुमत से पीछे रह गए यूपीए में शामिल हो गए या फिर सरकार को बाहर से समर्थन दे दिया. सपा और बसपा जैसी पार्टियों के साथ तब वाम दलों ने भी यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन दिया था.
2024 में भी 2004 वाला फॉर्मूला दोहराया जाएगा, उसके कई संकेत हैं. शिमला अधिवेशन की ही तर्ज पर पिछले दिनों रायपुर अधिवेशन में भी कांग्रेस ने समान विचारधारा वाले दलों से गठबंधन का प्रस्ताव पारित किया. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद इसे विपक्षी एकजुटता की दिशा में ऐतिहासिक कदम बताया था.
साल 2004 में लोकसभा चुनाव होने थे. इससे पहले, साल 2003 के अंत में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव हुए. 2004 का सेमीफाइनल माने जा रहे इन चुनावों के लिए बीजेपी ने राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया और मध्य प्रदेश में उमा भारती को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया था. इन तीन राज्यों में बीजेपी को बड़ी जीत मिली. विधानसभा चुनाव के नतीजों से उत्साहित बीजेपी ने शाइनिंग इंडिया का नारा दिया लेकिन जब चुनाव नतीजे आए, सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन पिछड़ गया. तब सरकार का नेतृत्व अटल बिहारी वाजपेयी कर रहे थे.
साल 2024 के आम चुनाव से पहले फिर से 2004 की ही तर्ज पर कांग्रेस ने समान विचारधारा वाले दलों से गठबंधन की बात कही है. नीतीश कुमार भी पूरे देश का दौरा करने का ऐलान कर चुके हैं. विपक्षी एकजुटता की बातें हो रही हैं, मेल-मिलाप का दौर चल रहा है. कई नेता विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की मुहिम छेड़े हुए हैं लेकिन कोई भी नरेंद्र मोदी के मुकाबले विपक्ष का चेहरा कौन होगा? इसे लेकर अपने पत्ते नहीं खोल रहा.