Advertisement

बिहार में बेस, जीतना है देश... नेशनल मिशन पर निकले नीतीश के दिल में क्या है?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ताबड़तोड़ राजनीतिक दौरे कर रहे हैं. ममता बनर्जी और अखिलेश यादव से मुलाकात के बाद नीतीश कुमार के दिल में क्या चल रहा है, इसे लेकर सियासी चर्चा और अटकलों का बाजार गर्म है. दिल्ली की तरफ देख रहे नीतीश कुमार के बारे सवाल पूछे जा रहे हैं कि आखिर उनके दिल में क्या है?

नीतीश कुमार (फाइल फोटो) नीतीश कुमार (फाइल फोटो)
सुजीत झा
  • पटना,
  • 26 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 12:42 PM IST

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दिल में क्या चल रहा है? ये शायद ही कोई जान सके लेकिन इतना तय है कि राज्य की सियासी चर्चा के केंद्र में वे हमेशा बने रहते हैं. फिलहाल, नीतीश कुमार के राजनीतिक दौरों की चर्चा बिहार ही नहीं उसके बाहर भी हो रही है. नीतीश कुमार ने हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव से मुलाकात की है. नीतीश कुमार बार-बार ये दोहरा भी रहे हैं कि वे प्रधानमंत्री पद की दौड़ में नहीं हैं.

Advertisement

इन सबके बीच सियासत के जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार सियासत में सधे कदम उठाने वाले नेता है. अभी उनके मन में क्या चल रहा है, इसका अंदाजा लगाने से पहले कुछ बातें समझ लेना जरूरी है. नीतीश की सियासी मंशा समझने से पहले अंबेडकर जयंती पर दिया गया उनका बयान याद कर लीजिए. पटना में अंबेडकर जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे नीतीश कुमार ने सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए भारतीय जनता पार्टी पर जमकर हमला बोला था.

कार्यक्रम में जेडीयू कार्यकर्ताओं ने जब नीतीश कुमार के पीएम बनने को लेकर नारे लगाने लगे, तब सुशासन बाबू ने हाथ जोड़ लिए. नीतीश कुमार ने कहा था, "एगो बात हम हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं कि मेरे बारे में मत नारा लगाइए. यही बनेंगे नेता... ये सब छोड़ दीजिए. हमको तो सबको एकजुट करना है. बिलकुल अच्छे ढंग से हो जाए माहौल जिससे देश को फायदा हो. खाली मेरा नमावा लीजिएगा तो बिना मतलब का चर्चा होगा. तो मेरा नाम मत लीजिए. हम हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं सब लोगों से. भाई मेरा नाम मत लीजिए, हम घूम रहे हैं तो हमहीं बनेंगे, ऐसा मत बोलिए प्लीज." नीतीश कुमार के इस बयान के बड़े मायने हैं.

Advertisement

जानकार कहते हैं कि नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति में बैक सपोर्ट कर हलचल लाना चाहते हैं. नीतीश सधे कदम उठाते हैं. उन्हें पता है कि देश में बहुमत वाली सरकार के विरोध में फ्रंट कभी सक्सेस नहीं रहा है. इसलिए वे सामने आकर खेलने से बच रहे हैं.  

राजनीति के कछुआ हैं सुशासन बाबू!

नीतीश कुमार के बारे में जेडीयू के एक नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं कि देखिए नीतीश बाबू कछुए के सेल की तरह हैं. वक्त पड़ने पर अपना सिर बाहर निकालते हैं. वक्त उनके मन मुताबिक नहीं हो तो सिर को अंदर कर लेते हैं. साल 2020 के विधानसभा चुनाव को याद कीजिए. जेडीयू मात्र 43 सीटों पर सिमट गई थी. सहयोगी बीजेपी के पास ज्यादा सीटें थी. नीतीश कुमार तब तक चुप होकर बैठे रहे, जब तक बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से उनके सीएम बनने की बात पर मुहर नहीं लगी. इतना ही नहीं बीजेपी को चिरौरी तक करनी पड़ी. उसके बाद वे सीएम के पद पर आसीन हुए. नीतीश कुमार कई मौकों पर खुद अपने मन की बात नहीं कहते हैं. वे पार्टी के नेताओं या फिर अन्य दलों के राजनेताओं से खुद की बात कहलवाना पसंद करते हैं.

वे आगे कहते हैं कि विपक्षी एकता की कवायद में उनकी एक्टिविटी पर ध्यान दीजिए. वे बिहार का दौरा करने के बाद दिल्ली के साथ देश के तमाम नेताओं के संपर्क में हैं. वे भले बार-बार ये कहें कि वे पीएम पद के उम्मीदवार नहीं हैं. सूत्रों की मानें, तो नीतीश कुमार का असली दर्द प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं. कहते हैं कि लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी के गुट के नेताओं ने उन्हें भरोसा दिया था कि भविष्य में जब भी मौका मिलेगा, वे नीतीश को पीएम बनाएंगे. नरेंद्र मोदी के केंद्र में आने के बाद नीतीश के सपने को झटका लगा. नीतीश कुमार के अंदर 2010 से ही पीएम बनने की इच्छा रही है.

Advertisement

महागठबंधन में आना रणनीति का हिस्सा!

बीजेपी को छोड़कर महागठबंधन में आना नीतीश की रणनीति का खास हिस्सा है. नीतीश को पता था कि वे बीजेपी के साथ रहते हुए राष्ट्रीय स्तर पर नहीं उभर पाएंगे. वे तीसरी पंक्ति के नेता भर बनकर रह गए थे. बीजेपी की नजर में सीएम नीतीश की सियासी वैल्यू मध्य प्रदेश और बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से ज्यादा कुछ नहीं थी. नीतीश को यही बात कचोट रही थी. उन्हें पता है कि वे पहली पंक्ति के राजनेता हैं. बीजेपी के साथ रहते हुए उन्हें पहली पंक्ति वाला भाव नहीं मिलेगा. उसके बाद उन्होंने बीजेपी से नाता तोड़ लिया. महागठबंधन में आते ही एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर उनका चेहरा चर्चा का विषय बना हुआ है.

नीतीश कुमार के मन में एक और सवाल भी है. उन्हें लगता है कि गुजरात का मुख्यमंत्री रहने वाला कोई व्यक्ति पीएम बन सकता है, वो विपक्षी एकता की कवायद के जरिए बिहार का मुख्यमंत्री होकर पीएम क्यों नहीं बन सकते हैं. जानकार कहते हैं कि पीएम मोदी और नीतीश में शुरू से ही सियासी प्रतियोगिता चलती रही है. नरेंद्र मोदी जब गुजरात में महज सीएम थे, तब बीजेपी के बड़े केंद्रीय नेताओं के साथ नीतीश कुमार के गहरे संबंध थे.

Advertisement

क्षेत्रीय क्षत्रपों के सरदार, नीतीश कुमार

फिलहाल, नीतीश कुमार के मन को टटोलने में क्षेत्रीय क्षत्रपों के साथ ही बीजेपी भी लगी हुई है. जानकार मानते हैं कि भले नीतीश आज की तारीख में पीएम पद के लिए ना करें, लेकिन क्षेत्रीय क्षत्रपों की महात्वाकांक्षा को अगर वे शांत करने में कामयाब हो जाते हैं तो उन्हें पीएम की कुर्सी भी मिल सकती है. आगामी लोकसभा चुनाव में महागठबंधन में रहते हुए नीतीश की पार्टी को अगर सम्मानजनक सीटें मिल जाती हैं, जेडीयू 16 या 17 सीटें जीत जाती है तो फिर नीतीश का कद केंद्र की राजनीति में काफी बढ़ जाएगा. राष्ट्रीय स्तर पर वे मजबूत हो जाएंगे. इतना ही नहीं उन्होंने बाकायदा इसके लिए महागठबंधन में समय तक ले लिया है. उन्होंने आरजेडी के उतावलेपन को ठंडा करते हुए एक तारीख तय कर दी कि आने वाले दिनों में यानी 2025 में तेजस्वी के नेतृत्व में बिहार का चुनाव लड़ा जाएगा. यानी कि जब तक पीएम का पद उन्हें साफ तौर पर नहीं दिखेगा, वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहेंगे.

जब चाहें तब मोड़ लेते हैं राजनीति

नीतीश कुमार जब चाहें, अपने अनुसार राजनीति को मोड़ देते हैं. बिहार के सभी राजनीतिक दलों को वो अपने चश्मे में उतार चुके हैं, चाहे आरजेडी हो या बीजेपी. स्थिति ये है कि जो आरजेडी 2020 में उन्हें मुख्यमंत्री भी नहीं बनने देना चाहती थी, आज प्रधानमंत्री बनाना चाहती है और उसके लिए मेहनत भी कर रही है. ऐसा इसलिए कि नीतीश कुमार पीएम बनें तो बिहार कि गद्दी तेजस्वी यादव को मिल जाए. इससे नीतीश कुमार की राजनीतिक हैसियत का अंदाजा लगाया जा सकता है.

Advertisement

नीतीश को समझना नामुमकिन

नीतीश कुमार को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है. कारण कई हैं. वे सधे सियासतदां हैं. उनके पॉलिटिकल मूव को पकड़ लेना सबके बस की बात नहीं. वे सियासत में अपना कदम फूंक-फूंक कर रखते हैं. जानकार मानते हैं कि बीजेपी से अलग हटने के बाद उनकी विपक्ष में स्वीकार्यता बढ़ गई है. मोदी के खिलाफ विपक्ष को तगड़ा चेहरा चाहिए था. नीतीश में वो बात दिखती है. इंजीनियर हैं. आंकड़ों का खेल समझते हैं. देश की नब्ज पहचानते हैं. शासन चलाने का अच्छा खासा अनुभव रखते हैं. केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं. हालांकि, मोदी तो पीएम बनने से पहले केंद्र में किसी पद पर भी नहीं रहे. नीतीश कुमार बाद में इस बात को भी भुना सकते हैं. नीतीश कुमार फिलहाल किस ओर कदम बढ़ा रहे हैं, इसे लेकर सिर्फ अटकलें ही लगाई जा रही हैं.

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement