
कहा जाता है कि राजनीति में कुछ भी बेवजह नहीं होता. हर गतिविधि के पीछे कुछ मैसेज होता है, भविष्य के संकेत होते हैं. लोकसभा चुनाव करीब हैं और ऐसे में नेताओं की गतिविधियां भी बढ़ गई हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली की दौड़ लगा रहे हैं तो वहीं चारा घोटाला केस में सजा सुनाए जाने के बाद सियासत से दूर हो चले लालू यादव भी एक्टिव हो गए हैं. क्या ये बिहार में बदलते सियासी सीन का संकेत है?
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दरअसल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली में हैं. नीतीश ने पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि पर उनके समाधि स्थल सदैव अटल पहुंचकर श्रद्धांजलि अर्पित की. नीतीश का दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात करने का भी कार्यक्रम है. नीतीश का पहले सदैव अटल जाकर पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी को श्रद्धांजलि अर्पित करना और फिर केजरीवाल से मुलाकात, इन दो कार्यक्रमों के मायने तलाशे जाने लगे हैं.
सदैव अटल जाने के मायने क्या?
नीतीश कुमार ने पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के बादकहा कि उन्होंने किस तरह मुझे कितना काम दिया और हमने किया, ये भूल नहीं सकते. जब पहली बार मुख्यमंत्री बना था तब भी शपथ ग्रहण में शामिल होने अटलजी पटना आए थे. हम उन्हें (अटल बिहारी वाजपेयी को) नमन करने आए हैं. अब सवाल ये भी खड़े हो रहे हैं कि नीतीश कुमार पांच साल में पहली बार अटलजी की समाधि पर क्यों पहुंचे?
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि इसके पीछे दो कारण हैं. पहला ये कि बीजेपी नीतीश के पाला बदलने के बाद से ही पहली बार सीएम बनने से लेकर फंडिंग तक, तमाम वाकये याद दिलाकर उनको घेर रही है. दूसरा ये कि अटलजी की इमेज बीजेपी के लिबरल नेता और गठबंधन की सियासत के पितामह की है. नीतीश का अटलजी की समाधि पर जाना और उनका गुणगान करना, सुशासन बाबू की ओर से ये संदेश देने की कोशिश है कि वे नहीं बदले हैं, बीजेपी बदली है. हमें वाजपेयी वाली बीजेपी से परहेज नहीं है.
दिल्ली का ख्वाब, स्वीकार्यता बढ़ाने का प्रयास
बीजेपी सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए कहा बिहार संभल नहीं रहा और सपना दिल्ली का देख रहे हैं. सच तो ये है कि नीतीश कुमार से लालू यादव ने दिल्ली शिफ्ट होवे और तेजस्वी यादव के लिए गद्दी छोड़ने के लिए कहा था. नीतीश का दिल्ली में सदैव अटल जाने के बाद अरविंद केजरीवाल से मिलने के कार्यक्रम को राष्ट्रीय राजनीति में उभार के प्रयास से जोड़कर देखा जा रहा है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि नए-नवेले विपक्षी गठबंधन की मुंबई में बैठक होनी है और इस बैठक में संयोजक का चयन होना है.
अमिताभ तिवारी कहते हैं कि नीतीश भले ही प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी से इनकार करते रहे हैं लेकिन कुर्सी किसे अच्छी नहीं लगती? नीतीश जानते हैं कि 2024 के चुनाव में अगर ऐसी स्थिति बनी कि एनडीए या I.N.D.I.A. में से किसी को भी बहुमत न मिले जिसकी संभावना कम ही है. ऐसे में वे पार्टियां जो दोनों गठबंधन में से किसी तरफ नहीं है, उनका रुख अहम हो जाएगा. ऐसी स्थिति में गठबंधन के बाहर की पार्टियां शायद उनके नाम पर साथ आ जाएं, नीतीश इसीलिए कांग्रेस के साथ होते हुए भी उससे अलग अपनी लकीर खींचने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं.
लालू की सक्रियता के क्या मायने?
बिहार के सत्ताधारी महागठबंधन के सबसे बड़े घटक दल राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव भी इन दिनों सक्रिय नजर आ रहे हैं. लालू यादव विपक्षी एकजुटता की कवायद के तहत पटना और बेंगलुरु, दोनों ही बैठकों में मौजूद थे. वे कभी बैडमिंटन खेलते नजर आ रहे हैं तो कभी पटना के मरीन ड्राइव पहुंचकर आइसक्रीम खाते. हंसने-हंसाने वाले अंदाज के लिए खास पहचान रखने वाले नेता लालू की राजनीति का मिजाज भी ऐसा ही रहा है. लालू की सक्रियता से भी हलचल बढ़ी है.
क्या बदल रहा है सियासी सीन?
नीतीश कुमार का दिल्ली और लालू का बिहार में एक्टिव नजर आना सूबे में बदल रहे सियासी सीन का संकेत तो नहीं? नीतीश कुमार ने बिहार चुनाव के तीसरे और अंतिम चरण के मतदान से पहले प्रचार के अंतिम दिन कहा था कि ये मेरा आखिरी चुनाव है. नीतीश कुमार के समय-समय पर बयानों से भी ये कयास लगाए जाते रहे हैं कि उनके बाद तेजस्वी बिहार के सीएम बन सकते हैं. आरजेडी के नेता भी पीएम पद के लिए नीतीश का नाम आगे करते रहे हैं. लालू की सक्रियता और नीतीश की सक्रियता भविष्य के लिए सियासी संकेत तो नहीं?