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Paola Maino: सोनिया गांधी के जीवन और उनके भाग्य को आकार देने वाली महिला

Paola Maino 1980 के दशक की शुरुआत में भारत आई थीं. उस समय इंदिरा गांधी की बतौर प्रधानमंत्री वापसी हुई थी. सोनिया ने 1986 में गार्डियन न्यूज सर्विस से कहा था, मेरी परवरिश ऐसी है कि मुझे लगता है कि मेरे पति सबसे श्रेष्ठ हैं और उनकी मां और भी अधिक श्रेष्ठ हैं.

पाओला माइनो पाओला माइनो
रशीद किदवई
  • नई दिल्ली,
  • 01 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 1:01 PM IST

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की मां पाओला माइनो (Paola Maino) का 27 अगस्त को निधन हो गया था. मां पाओला माइनो के निधन के साथ ही इटली के उनके होमटाउन ओर्बासानो (Orbassano) से उनका गहरा जुड़ाव ही टूट गया. वह 98 वर्ष की थीं और नियमित तौर पर भारत आती रहती थीं. सोनिया दरअसल पाओला और स्टेफानो की दूसरी संतान थीं, जिन्होंने सोनिया को सिंड्रेला की तरह पाला-पोसा. उन्हें बहुत पहले ही यह महसूस हो गया था कि सोनिया अपनी बहनों नादिया और अनुष्का की तरह नहीं थी बल्कि वह हमेशा से लीक से हटकर करना चाहती थीं. सोनिया का लालन-पालन इटली के बाहरी इलाके ट्यूरिन में हुआ लेकिन इस धूलभरे औद्योगिक कस्बे में वह कभी सहज नहीं रहीं.
  
घर पर माइनो परिवार इटली और स्पैनिश के बजाए अक्सर रूसी भाषा में बातचीत किया करता था. परिवार यह तीनों ही भाषाएं आसानी से बोल लेता था. परिवार पर रूसी प्रभाव इसलिए भी पड़ा क्योंकि स्टेफानो ने जर्मन सैनिकों के साथ रूस में लड़ाई लड़ी थी. माइनो रूसी भाषा, संस्कृति, खानपान से बहुत प्रभावित हुए थे. उनका रूस से बहुत स्नेह था इसलिए उन्होंने अपनी तीनों बेटियों के रूसी नाम रखे. सोनिया की मां पाओला मेहनती और अनुशासित थीं. यह एक ऐसा गुण था, जिसके बीज उन्होंने अपने परिवार विशेष रूप से सोनिया में भी बोए. 
  
पारिवारिक मित्रों का कहना है कि 1965 की शुरुआत में स्टेफानो ने इतना पैसा कमा लिया था कि वह अपनी बेटियों को कैंब्रिज में पढ़ा सके. जब सोनिया कैंब्रिज के लेनॉक्स कूक स्कूल में अंग्रेजी पढ़ने गई तो पाओला और स्टेफानो भी ब्रिटेन गए. जॉन लेनॉक्स कूक ने इस स्कूल की स्थापना की थी. वह कैंब्रिज के बेल स्कूल के पूर्व वरिष्ठ शिक्षक थे. इस संस्थान को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने के बाद कूक 1985 में रिटायर हो गए थे. इसके बाद एंग्लो वर्ल्ड एजुकेशन लिमिटेड ने इसका टेक ओवर कर लिया. दरअसल एंग्लो वर्ल्ड एजुकेशन दुनियाभर में इस तरह के स्कूल चलाती है.
  
पाओला और स्टेफानो ने अपनी बेटियों की परवरिश पारंपरिक कैथोलिक तरीके से की. जब सोनिया ने अपने माता-पिता को बताया कि वह भारत की प्रधानमंत्री  इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी से शादी करने जा रही हैं तो वे मंत्रमुग्ध नहीं हुए. स्टेफानो सोनिया के फैसले से खफा थे इसी वजह से उन्होंने सोनिया की शादी में शिरकत भी नहीं की. पाओला और उनके भाई मारियो प्रेडेबोन फरवरी 1968 में भारत आए. सोनिया की 25 फरवरी 1968 में सिविल तरीके से शादी संपन्न कराई गई.
  
ऐसा कहा गया कि स्टेफानो के इस सख्त और रुखे रवैये से उनका परिवार में मतभेद होता रहता था और इन मतभेदों की वजह से पाओला और स्टेफानो के बीच अक्सर झगड़े होने लगे. इन झगड़ों की वजह से सोनिया अपनी मां पाओला के और नजदीक आ पाईं. मां और बेटी का यह अटूट जोड़ अगस्त 2022 तक कायम रहा. 
  
जब भारतीय पत्रकारों के एक समूह ने 1998 में ओर्बासानो का दौरा किया था. उस समय सोनिया के साथ पढ़ने का दावा करने वाले एक पड़ोसी ने बताया था कि माइनो दंपति को अच्छा बताया था.  
  
इटली के कुछ कारोबारियों ने माइनो की सफलता का श्रेय 1980 के दशक में कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में आई सफलता को दिया. लेकिन भारत में माइनो परिवार की संपत्तियों की रिपोर्टों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया और उन्हें संदेह ही नजर से देखा गया. 

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नेहरू-गांधी परिवार के मित्र मोहम्मद यूनुस उन मुट्ठीभर लोगों में से एक थे, जो माइनो परिवार के घर गए थे. मोहम्मद यूनुस पेशे से पत्रकार और एडमिनिस्ट्रेटर थे. माइनो परिवार बेलिनी में दोमंजिली इमारत में रहा करता था. यूनुस ने बाद में अपनी किताब 'पर्संस, पैशंस, पॉलिटिक्स' में लिखा, ''मैं बिना किसी विरोधाभास के कह सकता हूं कि वह एक सभ्य मध्यवर्गीय परिवार था. उनके आलीशान घर और भारतीय गठजोड़ से करोड़ों कमाने की कहानियों को कोरी बकवास कहा जा सकता है.''

पाओला 1980 के दशक की शुरुआत में भारत आई थीं. उस समय इंदिरा गांधी की बतौर प्रधानमंत्री वापसी हुई थी. सोनिया ने 1986 में गार्डियन न्यूज सर्विस के एरिक सिल्वर को कहा था, मेरी परवरिश ऐसी है कि मुझे लगता है कि मेरे पति सबसे श्रेष्ठ हैं और उनकी मां और भी अधिक श्रेष्ठ हैं. सोनिया ने उस समय भारत आए इटली की एक पत्रिका के पत्रकार को बताया था कि इंदिरा गांधी उनकी मां की तरह ही बहुत प्यार करती हैं. सोनिया ने कहा था कि उनके (इंदिरा गांधी) साथ रहना एक बेहतरीन अनुभव रहा. उन्होंने बताया कि वह कभी नहीं भूल सकती की शादी के बाद जब उनकी मां पाओला इटली रवाना हो गई थीं तो उन्होंने (इंदिरा) मेरे लिए एक छोटा  सा नोट छोड़ा था. 

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सोनिया ने कहा था, मैं अकेली और हताश महसूस कर रही थी. जैसे ही मैं हवाईअड्डे से लौटी, मुझे वह नोट मिला. जिसमें कहा गया था कि तुम्हें बस यह बताना चाहती हूं कि हम सभी तुमसे बेइंतहा प्यार करते हैं. 
  
मार्च-अप्रैल 2004 के दौरान पाओला भारत में ही थीं लेकिन लोकसभा नतीजों के ऐलान और सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद ठुकराने के एक हफ्ते पहले ही वह इटली रवाना हो गई थीं. पाओला 34 लोधी एस्टेट में प्रियंका के घर पर रहा करती थीं और अक्सर अपने पर पड़पौत्र और पड़पौत्री (Great-Grandchildren) रेहान और मिराया के साथ समय बिताया करती थीं. जब सोनिया और प्रियंका अमेठी-रायबरेली में प्रचार के लिए जाया करती थीं तो पाओला ही बच्चों के साथ वक्त बिताती थीं.

पाओला नियमित तौर पर अपनी बेटी सोनिया के घर आती थीं. वह इससे पहले अप्रैल 1999 में भारत आई थीं, उस समय अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया गया था. सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री पद दिए जाने की कवायद चल रही थीं लेकिन समाजवादी पार्टी और कुछ अन्य के विरोध की वजह से ऐसा नहीं हो सका.

  
भारत में पाओला अक्सर दिल्ली की खान मार्किट जाती थीं. वह वहां से फल और सब्जियां खरीदती थीं. कई बार प्रियंका गांधी भी उनके साथ होती थीं. वह उनके लिए कार का दरवाजा खोलती थीं और उनके साथ चाय पीती थीं. 
  
जब पाओला बीमार थीं तो वह अक्सर राहुल से उनसे मिलने आने को कहती थीं. 2017 में जब राहुल गांधी अचानक अवकाश पर चले गए थे. यह वह समय था जब किसान आंदोलन चरम पर था और राष्ट्रपति पद के दावेदारों की तलाश चल रही थीं. यह पाओला की इच्छा थी कि वह उस समय राहुल के 47वें जन्मदिन का जश्न उनके साथ मना सकें. भाजपा के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने इस पर चुटकी लेते हुए कहा था, जब हम छोटे थे, तब हम गर्मियों की छुट्टियों के दौरान ननिहाल जाया करते थे. विजयवर्गीय ने कहा था, आप राहुल जी से देश और किसानों की चिंता करने की उम्मीद नहीं कर सकते. वह अपनी पिकनिक का आनंद उठाने के लिए राजनीति करते हैं. 
  
दिसंबर 2020 में भी राहुल अपनी बेहद उम्रदराज दादी पाओला से मिलने गए थे. इसे लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उनकी काफी आलोचना की गई और यह कहकर उन पर निशाना साधा गया कि किस तरह कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष पार्टी के 136वें स्थापना दिवस में शामिल होना छोड़ सकते हैं. किसान आंदोलन, आगामी बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुद्दुचेरी के विधानसभा चुनाव की तैयारियों से मुंह मोड़ सकते हैं.  लेकिन राहुल गांधी, मार्क ट्वेन की उन पंक्तियों को दोहराने से नहीं चूके, 'लेकिन इसी तरह तो हम बने हैं, हमारे पास कोई कारण नहीं है कि हम कब, कहां और क्या महसूस करें, हम सिर्फ महसूस करते हैं.'
 

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