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PFI पर इस राज्य में 4 साल पहले भी लगा था बैन, तब कोर्ट से यूं मिल गई थी राहत

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के खिलाफ केंद्र सरकार ने कड़ा रुख अपनाया है. सरकार ने पीएफआई पर पांच साल का प्रतिबंध लगाया है. पीएफआई पर भले ही राष्ट्रीय स्तर पहली बार बैन लगाया गया हो, लेकिन झारखंड में चार साल पहले ही इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.

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कुबूल अहमद/सत्यजीत कुमार
  • नई दिल्ली/रांची,
  • 28 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 2:19 PM IST

मोदी सरकार ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) और उसके 8 सहयोगी संगठनों को 5 साल के लिए बैन कर दिया है. पीएफआई के ठिकानों पर एनआईए समेत तमाम जांच एजेंसियों की ताबड़तोड़ छापेमारी के बाद सरकार ने ये कदम उठाया. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने PFI और उससे जुड़े संगठनों की गतिविधियों को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताया और अनलॉफुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट यानी UAPA के तहत इसे बैन कर दिया है. वैसे झारखंड राज्य में पीएफआई पर बैन चार साल पहले भी लगा था, लेकिन तब कोर्ट से उसे राहत मिल गई थी. 

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PFI पर मार्च 2018 में लगा था बैन

साल 2006 में बने पीएफआई पर राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार बैन लगा है, लेकिन झारखंड में चार साल पहले ही उसपर ये एक्शन ले लिया गया था. राज्य की तत्कालीन बीजेपी की रघुवर दास सरकार ने पीएफआई को पहली बार 12 फरवरी 2018 को प्रतिबंधित किया. तब सरकार ने संगठन पर बैन लगाने वाले अपने आदेश में कहा था कि खुफिया सूचना मिली है कि पीएफआई के सदस्यों का रिश्ता आईएसआईएस से है और ये संगठन उससे प्रभावित है. झारखंड के पाकुड़ और साहिबागंज जिले में पीएफआई सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का काम कर रहा है. 

बैन के खिलाफ कोर्ट में चुनौती

झारखंड सरकार के एक्शन के बाद PFI झारखंड चैप्टर के महासचिव अब्दुल बदूद ने प्रतिबंध हटाने के लिए हाईकोर्ट में अर्जी दायर की. पीएफआई की याचिका में कहा गया था कि 'सरकार ने आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम 1908 की धारा 16 के तहत पीएफआई पर प्रतिबंध लगाया है, जबकि यह धारा 1932 से ही अस्तित्व में नहीं है. 

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पढ़ें- PFI पर बैन की पूरी क्रोनोलॉजी...

पीएफआई की याचिका में संविधान के अनुच्छेद 19 का हवाला देते हुए कहा गया था कि देश में सभी को बोलने और लिखने का मौलिक अधिकार मिला है. बैन का विरोध करते हुए याचिका में आगे कहा गया कि सरकार ने शो-कॉज नोटिस दिए बिना संस्था पर सीधे प्रतिबंध लगा दिया. कोर्ट में दायर अर्जी में इस बात का भी दावा किया गया था कि सरकार के पास प्रतिबंध लगाने के पर्याप्त सबूत भी नहीं हैं इसलिए संस्था पर प्रतिबंध लगाना उचित नहीं है.

हाईकोर्ट में मिली थी ऐसी राहत

रांची हाईकोर्ट के जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए पीएफआई पर सरकार द्वारा लगाए बैन को 28 अगस्त 2018 को हटा दिया था. कोर्ट ने सरकारी अधिसूचना को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि इसे राजपत्र में प्रकाशित नहीं किया गया. हालांकि, हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि सरकार त्रुटियों को दूर कर पीएफआई को दोबारा प्रतिबंधित कर सकती है. ऐसे में तकनीकी त्रुटियों को दूर कर झारखंड सरकार ने मार्च 2019 में पीएफआई पर फिर से प्रतिबंध लगा दिया. 

पढ़ें-सरकार ने गिनाईं PFI पर बैन की वजहें...

देशभर में पीएफआई पर लगा बैन

बता दें कि पीएफआई को बैन करने के लिए अलग-अलग राज्य सरकारें मांगें उठाती रही हैं. केरल से लेकर कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और असम सरकार इस संगठन को प्रतिबंधित करने की केंद्र सरकार से डिमांड कर चुकी हैं. केंद्र की मोदी सरकार ने अब जाकर राष्ट्रीय स्तर पर बैन का कदम उठाया है. हालांकि, सरकार के बैन करने से पहले एनआईए समेत तमाम जांच एजेंसियों की ताबड़तोड़ छापेमारी करके पीएफआई के सदस्यों को गिरफ्तार किया है.
 

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