
केंद्र की मोदी सरकार द्वारा किसानों के लिए लाए गए कृषि संबंधी विधेयकों को लेकर संसद से सड़क तक संग्राम छिड़ गया है. ऐसे में बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सहयोगी ने भी बगावती तेवर अख्तियार कर लिए हैं. बीजेपी के संकट के दौर में भी मजबूती से खड़े रहे सबसे पुराने सारथी भी अब दूर होते जा रहे हैं.
पिछले साल शिवसेना सत्ता के लिए बीजेपी का साथ छोड़कर अलग हो गई है. वहीं, किसानों के मुद्दे पर अब दूसरी सबसे पुरानी सहयोगी शिरोमणी अकाली दल ने खुद को मोदी सरकार से अलग कर लिया है. ऐसे में अब एनडीए का किला दरकता नजर आ रहा है, जो बीजेपी के लिए चिंता का सबब है.
अकाली ने मोदी सरकार का साथ छोड़ा
शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने लोकसभा में इन विधेयकों को किसान विरोधी कदम बताया और कहा कि उनकी पार्टी की एकमात्र मंत्री इस्तीफा दे देंगी. इसके फौरन बाद केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने गुरुवार को मोदी कैबिनेट से कृषि संबंधी विधेयकों का विरोध करते हुए इस्तीफा दे दिया. इसके बाद उन्होंने कहा, 'मैं उस सरकार का हिस्सा नहीं रहना चाहती जो किसानों की आशंकाओं को दूर किए बिना कृषि क्षेत्र से जुड़े विधेयक लेकर आती है और किसानों की परेशानियों का हल सुझाए बिना ही सदन में बिल पास करा लेती है. किसानों के साथ उनकी बेटी और बहन के रूप में खड़े होने का मुझे गर्व है.'
हालांकि, अकाली दल ने मोदी सरकार से बाहर आने का ऐलान तो कर दिया, लेकिन एनडीए से बाहर निकलने का फैसला पार्टी ने नहीं लिया है. शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि हम किसानों के साथ खड़े हैं और उनके लिए कुछ भी करेंगे. अकाली दल के केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेने के सवाल पर उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी का अलग कदम क्या होगा ये हम पार्टी की बैठक के बाद जल्द ही बताएंगे. इससे साफ जाहिर है कि फिलहाल अकाली ने सरकार से खुद को अलग किया है, लेकिन गठबंधन तोड़ने पर कोई फैसला नहीं लिया है.
बता दें कि शिरोमणी अकाली दल और बीजेपी का साथ 27 साल पुराना है. अकाली का राजनीतिक आधार सिर्फ पंजाब तक सीमित है, वह बीजेपी के जूनियर पार्टनर के तौर पर है. अकाली दल के साथ बीजेपी का गठबंधन 1997 में हुआ था. पंजाब में 1999 के लोकसभा और 2002 और 2017 के विधानसभा चुनावों में गठबंधन के खराब प्रदर्शन के बावजूद समझौता जारी है. इस दौरान बीजेपी की जितनी भी केंद्र में सरकार बनी सबसे में अकाली दल के नेता मंत्री बने. 2014 और 2019 में हरसिमरत कौर मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री है, लेकिन अब उन्होंने सरकार से खुद को अलग कर लिया है. इस तरह से अकाली ने एनडीए सरकार का साथ फिलहाल छोड़ दिया है.
कुर्सी के लिए शिवसेना-बीजेपी की दोस्ती टूटी
अकाली दल से पहले 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद बीजेपी की 30 साल पुरानी सहयोगी शिवसेना ने साथ छोड़ दिया था. मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर छिड़ी जंग से बीजेपी और शिवसेना की राह जुदा हो गई. हिंदुत्व के नाम पर बीजेपी-शिवसेना का गठबंधन 1989 में शुरू हुआ था. शिवसेना ने 1995 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के साथ गठबंधन कर शानदार सफलता हासिल की. इस दोस्ती में तब तक दरार नहीं आई जब तक बीजेपी छोटे भाई की भूमिका में रही और शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे जीवित थे. इतना ही नहीं महाराष्ट्र और केंद्र की सत्ता से बीजेपी के बाहर होने के बाद भी शिवसेना ने नाता नहीं छोड़ा था.
2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद शिवसेना और बीजेपी के रिश्ते में खटास आनी शुरू हो गई थी. शिवसेना और बीजेपी केंद्र में साथ रहते हुए भी 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अलग-अलग किस्मत आजमाया था, क्योंकि दोनों के बीच सीट शेयरिंग को लेकर फॉर्मूला नहीं बन सका था. हालांकि, नतीजे आने के बाद शिवसेना ने बीजेपी को समर्थन देकर सरकार में भागीदार हो गई थी. इसके बाद 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में दोनों ने मिलकर लड़ा.
2019 के विधानसभा के नतीजा आने के बाद बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला था. इसके बावजूद दोनों दलों के रिश्तों के बीच सत्ता की कुर्सी ने दरार डाल दी. राज्य की सत्ता के लिए 30 साल की दोस्ती एक झटके में खत्म हो गई. यह फासला इतना बढ़ गया कि शिवसेना ने न सिर्फ बीजेपी से दोस्ती तोड़ी, बल्कि खुदको एनडीए से अलग कर लिया और कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर सत्ता की कमान उद्धव ठाकरे ने अपने हाथ में ले ली.
इन दलों ने भी एनडीए का साथ छोड़ा
दिलचस्प बात यह है कि अटल बिहारी वाजपेयी ने तमाम छत्रपों को एकजुट करके 1997 से 2004 तक सरकार चलाई. इसी फॉर्मूले को लेकर बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव की सियासी जंग को फतह किया था. नरेंद्र मोदी जिन दलों के साथ मिलकर सत्ता पर काबिज हुए थे, उनमें से चार सहयोगी दल साथ छोड़कर अलग हो गए हैं. 2018 मार्च में आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) एनडीए से बाहर हुई. अगस्त में जम्मू-कश्मीर में बीजेपी ने महबूबा मुफ्ती से साथ गठबंधन तोड़ा. 2019 के चुनाव से ठीक पहले बीजेपी के सहयोगी दल आरएलएसपी के चीफ उपेंद्र कुशवाहा नाता तोड़कर महागठबंधन का हिस्सा बन गए हैं.