
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 अप्रैल गुरुवार को सिख गुरु तेग बहादुर के 400वें प्रकाश पर्व के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करेंगे. इस मौके पर पीएम मोदी गुरु तेग बहादुर के नाम से एक सिक्का और डाक टिकट भी जारी करेंगे. यह पहला मौका है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी धार्मिक कार्यक्रम पर लाल किले से देश को संबोधित करते नजर आएंगे.
गौरतलब है कि लाल किले से चंद कदम की दूरी पर ही गुरु तेग बहादुर की याद में बना शीशगंज गुरुद्वारा है, जहां पर उनकी शहादत हुई थी. गुरु हरगोविंद सिंह जी के पांचवें पुत्र गुरु तेग बहादुर सिखों के 9वें गुरु थे, जिन्होंने 14 वर्ष की आयु में ही अपने पिता के साथ मुगलों के हमले के खिलाफ हुए युद्ध में अपनी वीरता का परिचय दिया था. मुगल शासक औरंगजेब की तमाम कोशिशों के बावजूद गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम नहीं अपनाया और मुगल बादशाह के सामने सिर झुकाने के बजाय शहादत देना पसंद किया. ऐसे में पीएम मोदी लाल किले से जब गुरु तेग बहादुर के प्रकाश पर्व पर देश को संबोधित करेंगे तो उनके बलिदान और राष्ट्र प्रेम का भी जिक्र कर सकते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी लगातार सिख समाज से भावनात्मक रूप से जुड़ने की कवायद करते रहे हैं. पंजाब में करतारपुर कॉरिडोर खोलने का फैसला हो या फिर तीन कृषि कानून वापस लेने के लिए गुरु परब का दिन चुनाना और अब उन्होंने गुरु तेग बहादुर के 400वें प्रकाश पर्व पर देश को संबोधित करने के लिए लाल किले को चुना है. इसके सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं.
पंजाब चुनाव से ठीक एक दिन पहले पीएम मोदी ने अपने आवास पर सिख समुदाय के नेताओं से मुलाकात की थी. इस दौरान उन्होंने बताया था कि उनके सत्ता में आने के बाद सिख समुदाय के लिए किस तरह के कदम उठाए गए हैं. पीएम ने यहां तक कहा था कि उनका पंजाब से खून का रिश्ता है. गुरुगोविंद सिंह के जो पहले पंचप्यारे थे, उनमें से एक गुजरात से थे.
पीएम मोदी ने इस दौरान करतारपुर कॉरिडोर की बात करते हुए कहा था कि जिस जगह पर गुरुनानक जी के जीवन का सबसे ज्यादा समय बीता, उस जगह पर ना जा पाना काफी दुखद था. ऐसे में उनके मन में हमेशा रहा कि सिखों की आस्था को ध्यान में रखते हुए कुछ करना होगा. उनकी सरकार ने काफी कम समय में करतारपुर कॉरिडोर का काम करवा दिया.
पंजाब में विपक्ष की खाली जगह पर नजर
दरअसल किसान आंदोलन का असर भले ही उत्तर प्रदेश के चुनाव में न दिखा हो, लेकिन पंजाब में ये भरपूर दिखा. उत्तराखंड में तो सीएम पुष्कर सिंह धामी की हार में सिख वोटरों की ही अहम भूमिका मानी जा रही है. पंजाब में आम आदमी पार्टी ने जिस तरह से विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया और सारे सियासी दिग्गजों को धूल चटा दी उससे भी ये मैसेज गया है कि पंजाब का सिख समुदाय कांग्रेस-अकाली दल से इतर नई लीडरशिप खोज रहा है. ऐसे में बीजेपी अब सिख समुदाय के दिल में अपनी जगह बनाने की कवायद कर रही है.
पंजाब की लगभग 58 फीसदी जनता सिख धर्म को मानती है. हिंदू 38.49 फीसदी के साथ दूसरे नंबर पर हैं, लेकिन व्यवहार में समाज का बड़ा हिस्सा सिख धर्म से प्रभावित है. सिख राजनीति में अकाली दल सबसे प्रभावी रही है, जिस कारण पंजाब में किसी दूसरे धर्म की राजनीतिक ताकत नगण्य ही रही.
हालांकि, अब पंजाब के सियासी समीकरण बदल रहे हैं. पंजाब चुनाव नतीजों से साफ है कि सिख समुदाय के बीच अकाली दल की पकड़ कमजोर हुई है, जिसके चलते बीजेपी अब वहां विकल्प बनना चाहती है. बीजेपी अब पंजाब में अकाली दल के भरोसे नहीं है. अकालियों से समझौते के कारण उसने पंजाब में कभी अपने स्वतंत्र विकास के बारे में कोई ठोस रणनीति नहीं अपनाई थी, लेकिन गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी अब विस्तार करने में जुटी है ताकि 2024 में सिख समुदाय के बीच बेहतर कर सके.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ हमेशा से मानता रहा है कि सिख हिंदू धर्म से अलग नहीं हैं बल्कि जैन, बौद्ध की तरह ही एक अलग पंथ है. पंजाब में सिख समुदाय के बीच अपनी मजबूत पकड़ बनाने के लिए संघ ने राष्ट्रीय सिख संगत का गठन कर रखा है. आरएसएस की हजारों शाखाएं पंजाब में भी लगातार चल रही हैं और संघ से जुड़े अन्य संगठन भी काम कर रहे हैं. पंजाब पाकिस्तान की सीमा से लगा है, जिसके चलते आरएसएस का राष्ट्रवाद के मुद्दा भी यहां ज्यादा धारदार रहा है.
दिल्ली में भी बड़ी ताकत हैं सिख वोटर
पंजाब के बाद अब हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और दिल्ली में भी एमएसीडी चुनाव होने हैं. इन चुनावों में सिख वोटों की भूमिका काफी अहम होगी. दिल्ली में सिख समुदाय की 12 फीसदी आबादी है, जो एक दर्जन विधानसभा सीटों और करीब 60 नगर निगम सीटों पर अहम भूमिका में है. दिल्ली का राजौरी गार्डन, हरी नगर, तिलक नगर, जनकपुरी, मोती नगर, राजेंद्र नगर, ग्रेटर कैलाश, जंगपुरा और गांधी नगर, पंजाबी बाग, चांदनी चौक, कालकाजी जैसे इलाके हैं, जो सिख बहुल माने जाते हैं. लेकिन विधानसभा चुनाव में बीजेपी सिर्फ दो सिख बहुल सीटों पर जीत सकी थी, बाकी सीटें आम आदमी पार्टी को मिली थी.
दिल्ली में सिख समुदाय को साधने के लिए आरपी सिंह और तेजिंदर सिंह बग्गा के बाद मनजिंदर सिंह सिरसा की बीजेपी में एंट्री हुई है, जिन्हें बीजेपी ने सिख नेता के तौर पर पंजाब में भी बढ़ाया और दिल्ली में भी आगे कर रखा है. आरपी सिंह और मनजिंदर सिंह की जहां गंभीर नेता की छवि है तो बग्गा फायर ब्रांड युवा नेता हैं. इन्हीं के जरिए दिल्ली में बीजेपी सिख वोटों को अपने पाले में करने में जुटी है. पीएम मोदी के लाल किले से भाषण से इन नेताओं के लिए भी अपने समुदाय के बीच पहुंच बढ़ाना आसान होगा.